पटना : दक्षिण बिहार के जिलों-नवादा, गया, औरंगाबाद में लू से बड़ी संख्या में होने वाली मौतों ने स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। बात करें औरंगाबाद की, तो यहां जब सदर अस्पताल में जब एक के बाद एक लू के शिकार मरीज पहुंचने लगे तब उनके इलाज के लिए मात्र एक डॉक्टर मौजूद था। इस अस्पताल में चिकित्सकों के कुल 45 पद स्वीकृत हैं। जबकि वहां मात्र 12 चिकित्सक ही तैनात हैं। इनमें स्त्री रोग विशेषज्ञ, निश्चेतना विशेषज्ञ, सर्जन इत्यादि भी शामिल हैं।
औरंगाबाद लू से त्रस्त, अस्पताल डाक्टरों की कमी से पस्त
औरंगाबाद में जब अचानक हीट स्ट्रोक के मरीजों के आने का सिलसिला शुरु हुआ तो वहां के सदर अस्पताल में मात्र तीन चिकित्सक मौजूद थे। इनमें भी मात्र एक डाक्टर लू पीड़ितों के इलाज में सक्षम थे। बाकी दो अन्य विधा के थे। औरंगाबाद के जिला सिविल सर्जन सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने भी स्वीकार किया कि चिकित्सकों की अस्पताल में भारी कमी है।
बिहार के सभी जिलों में यही हाल
स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक सभी जिलों में चिकित्सकों की सख्या स्वीकृत पदों से कम है। सीतामढी में 16 फीसदी और औरंगाबाद में मात्र 17 फीसदी चिकित्सक तैनात हैं जो कि बिहार में सबसे न्यूनतम है। वहीं, भोजपुर, पटना और वैशाली में चिकित्सकों की संख्या स्वीकृत पदों की तुलना में करीब 50 फीसदी है।
डॉक्टरों की भारी कमी, मानक से बेहद कम
बिहार में स्वास्थ्य विभाग के तहत 11373 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं। जबकि बिहार स्वास्थ्य सेवा में 2400 नियमित चिकित्सक है। इनमें भी 450 चिकित्सक प्रशासनिक पद, ट्रेनिंग इस्टीच्यूट, शोध संस्थान और अन्य स्थानों पर तैनात हैं। इनका सामान्य मरीजों के इलाज से कोई वास्ता नहीं है। दूसरी ओर करीब 2000 चिकित्सक मरीजों के इलाज से सीधे जुड़े हैं। इनके अतिरिक्त संविदा पर करीब 700 चिकित्सक तैनात है। इस प्रकार बिहार में 3100 चिकित्सक जिला स्तरीय अस्पतालों में कार्यरत हैं। राज्य के मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में करीब एक हजार चिकित्सक कार्यरत हैं। इनमें आयुष चिकित्सकों की संख्या शामिल नहीं है।
एक हजार व्यक्ति पर एक चिकित्सक जरूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार एक हजार व्यक्ति पर एक चिकित्सक होना चाहिए। यह अंतर्राष्ट्रीय मानक है। वहीं, बिहार में 30 हजार व्यक्ति पर एक चिकित्सक है। राज्य में प्रति वर्ष करीब 1000 डॉक्टर पढ़ाई पूरी कर निकलते हैं। लेकिन उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया काफी जटिल व लंबी होने के कारण वे दूसरे राज्यों या निजी अस्पतालों में पलायन कर जाते हैं। संविधान की धारा 320-(3) के तहत चिकित्सकों की नियुक्ति के लिए विशेष शक्ति प्राप्त बोर्ड के गठन का प्रावधान है। लेकिन बिहार में यह अबतक पूरा नहीं किया जा सका है।