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धनार्जय नदी के अस्तित्व पर संकट, बरसात में भी पानी का दर्शन मुश्किल

नवादा : जिले में बहने वाली सात बरसाती नदियों में से धनार्जय नदी का अपनी अलग पहचान है। इससे जिले के पांच प्रखंडों के हजारों हेक्टेयर भूमि की खरीफ फसलों में सिंचाई हुआ करती थी। यहां तक कि वर्ष 1967 के अकाल में भी रजौली व सिरदला प्रखंड के हजारों एकड़ भूमि में लगी धान फसल को बचाने में सफल रहा था। लेकिन आज इसमें पानी की जगह रेत नजर आने लगा है। जमकर बारिश हुई तो मुश्किल से हिसुआ तक पानी पहुंच पाती है अन्यथा बरसात में भी पानी का दर्शन मुश्किल है । इस दुर्दशा के लिये हर कोई जिम्मेवार है ।

कहां से है उत्पत्ति :

धनार्जय नदी की उत्पत्ति झारखंड राज्य कोडरमा जिला के ढोढाकोल जंगल व पहाड़ से हुई है जो गढ दिवौर से होते हुए नवादा के आषाढी होते गिरियक नदी में समाप्त होती है। इस नदी में कहीं रूकावट नहीं है, बावजूद पानी के बहाव में निरंतर कमी आती जा रही है ।

हुआ था सर्वे :

धनार्जय नदी की पानी का संग्रह करने के लिए वर्ष 1990 में चितरकोली के पास बांध निर्माण के लिए सर्वे का कार्य कराया गया था। लागत राशि अधिक होने के कारण इसे अधर में छोङ दिया गया । अगर ऐसा होता तो फिर नदी का वजूद ही समाप्त हो जाता ।

राजस्व के चक्कर में अस्तित्व पर संकट :

बालू राजस्व के लिए पिछले कुछ वर्षों से नदी से बालू का दोहन होने के कारण लगातार वैध व अबैध खनन कराया जा रहा है । परिणाम है कि कहीं-कहीं नदी की गहराई 20 से 30 फीट तक होने के कारण पानी आगे बढ नहीं पा रहा है । लिहाजा भूजल स्तर में गिरावट के कारण चापाकलों ने टें बोलना आरंभ कर दिया है । 2000 के दशक तक गर्मी के दिनों में भी नदी किनारे बसे लोग नदी में चुंआ खोद पीने से लेकर भोजन बनाने के लिए पानी का उपयोग किया करते थे। वैसे कमोबेश रजौली में सिलसिला वर्ष 2019 तक जारी रहा।

समृध्द्धि की निशानी था नदी :

धनार्जय नदी कभी खेती की समृद्धि का निशानी हुआ करता था । वर्ष 1967 के अकाल के बाद जिले में बिजली व बिजली चालित मोटर पम्प के चलन से पारंपरिक जलश्रोत से लोगों का ध्यान समाप्त होने लगा । अब जब भू-जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है तो किसानों को नदी के साथ पारंपरिक जलस्रोतों की याद आने लगी है।

अतिक्रमण का हुआ शिकार :

जाहिर है जब व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी हो जाता है तब वह पुरानी बातों को भूलने लगता है । सो लोगों पर नदी भूमि का अतिक्रमण करने का जुनून सवार हुआ और रजौली से लेकर नवादा तक हजारों एकड़ नदी भूमि का अतिक्रमण कर खेती से लेकर रिहायशी भवन का निर्माण तक करा लिया गया ।

दूसरी नदी का अस्तित्व हुआ समाप्त :

धनार्जय नदी से सिरदला प्रखंड क्षेत्र के बेररी गांव के पास से दोनैया नदी का उद्गम हुआ था जो खनवां होते नरहट के पश्चिमी भाग से गुजरते हुए हिसुआ के तमसा नदी में मिलता था। वर्ष 1970 तक बरसात में पानी का बहाव होता आ रहा था लेकिन खनवां में नदी की भूमि का सरकारी व निजी स्तर पर विद्युत सब ग्रीड, पोलीटेक्नीक काॅलेज, डा श्रीकृष्ण सिंह स्मारक आदि का निर्माण कराये जाने से नदी का वजूद ही समाप्त हो गया । अब तो खनवां गांव की नयी पीढी तक को नदी का नाम तक मालूम नहीं है ।

अब भी हो रहा अतिक्रमण :

अगर ताजा अतिक्रमण की बात करें तो वह अब भी जारी है । फिलहाल रजौली प्रखंड क्षेत्र के बौढी गांव के कुछ तथाकथित ग्रामीणों के द्वारा नदी की जेसीबी मशीन से धारा मोड़ने के लिए लगातार भराई कराया जा रहा है । ऐसा किये जाने से शेष क्षेत्रों में पानी पहुंच भी पायेगा कहना मुश्किल है ।

क्या कहते हैं समाज सेवी :

कभी धनार्जय नदी रजौली का शान हुआ करता था । खेतों में फसलें इसी के बदौलत लहलहाती थी। अब ऐसी बात नहीं है । गत वर्ष इसने अपना रौद्र रूप दिखाया था। तब नदी की भूमि पर बनायी गयी कस्तूरबा आवासीय विद्यालय की चहारदीवारी को तेज धारा बहा ले गयी थी तो विद्यालय में पानी आने से बच्चों को बचाने के लिए प्रशासन को रेस्क्यू करना पङा था। बावजूद प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है ।
रामरतन गिरी, समाज सेवी,बौढी, रजौली, नवादा ।

धनार्जय नदी की बदहाली के लिए हर कोई जिम्मेवार है । सब अपने अपने में व्यस्त हैं जिसका लाभ अतिक्रमणकारी उठा रहे हैं । परिणाम है कि इसका भुक्तभोगी हर किसी को होना पङ रहा है । बावजूद नदी बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। एक दिन हालात उतराखण्ड का होना तय है । आवश्यकता है नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए जन आन्दोलन की, संजय कुमार यादव, अध्यक्ष, यादव महासभा, रजौली।

क्या कहते हैं अधिकारी :

न्यायालय के आदेश के आलोक में परंपरागत जलस्रोतों पर किये गये अतिक्रमण का सर्वे आरंभ कराया गया है । कोरोना के कारण प्रतिवेदन अप्राप्त है। प्रतिवेदन आते ही अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया आरंभ की की जाएगी, संजय कुमार झा, अंचल अधिकारी, रजौली, नवादा:

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