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कोरोना के सन्नाटे में जग रही हिन्दू चेतना

पटना : आज 25 मार्च 2020 है। दिन बुधवार। चैत्रशुक्ल पक्ष का प्रथम दिन यानि प्रतिपदा। बासंतिक नवरात्र की शुरुआत और भारतीय नववर्ष का प्रथम दिन। आज का यह नववर्ष भारत के इतिहास में विशेष तौर पर याद किया जाता रहेगा क्योंकि इस दिन भारत के लोगों ने अद्भुत सामूहिक आत्म संयम का परिचय दिया।

कोरोना वायरस के प्रचंड प्रहार के कारण सम्पूर्ण विश्व सहमा हुआ है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस वायरस से बचने का एक मात्र उपाय है एकांत वास। वर्ष प्रतिपदा से लेकर रामनवमी तक भारत में उल्लास का वातावरण रहता है लेकिन, इस वायरस का कमर तोड़ने के लिए भारतीयों ने मठ-मंदिरों में दर्शन करने जाने की जगह अपने-अपने घरों में ही चअनुष्ठान किेया।

गोलघर स्थित अखंडवासिनी काली मंदिर जहां एक साधक की साधना से सिद्ध इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ रहती है लेकिन इस नवरात्र के प्रथम दिन इस मंदिर के पुजारी ने भक्तों से अपने-अपने घरों में रहकर ही संयम-अनुष्ठान करने की अपील की। मंदिर में नौ अखंड दीप जल रहे हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी रात-दिन माता से प्रार्थना कर रहे हैं कि सम्पूर्ण विश्व पर छाया यह संकट शीघ्र टल जाए।

नवरात्र के प्रथम दिन भी मंदिरों के पट भक्तो के लिए बंद रहे लेकिन माता की पूजा आराधना विधि पूर्वक होता रहा। बावन शक्तिपीठों में से एक छोटी पटनदेवीजी की भव्य आरती हुई। वहीं इस मंदिर में भी विश्व के कल्याण के लिए अखंड ज्योति स्थापित की गयी है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पटना स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में हवन यज्ञ करके संयमित तरीके से वर्ष प्रतिपदा मनाया गया। कोरोना को हराने के लिए संघ के स्वयं सेवक भी प्राणपन से जुटे हुए हैं। संघ के क्षेत्रीय कार्यालय विजय निकेतन में केवल वही लोग थे जो यहां व्यवस्था की दृष्टि से निवास करते हैं। इनके अलावा बाहर से कोई मिलने वाला भी नहीं आया।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू वर्ष की प्रथम तिथि है। यह तिथि धार्मिक रूप से बेहद ही महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस साल 25 मार्च को यह तिथि पड़ रही है। यानि 25 मार्च से हिन्दू नववर्ष 2077 प्रारंभ हो रहा है। हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं इस तिथि का धार्मिक रूप से कितना बड़ा महत्व होगा।

वैदिक पंचांग की दृष्टि से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का महत्व वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रति वर्ष की पहली तिथि है। इसी दिन से हिन्दू मान्यता के अनुसार नए साल की शुरुआत होती है। हिन्दू वर्ष में 12 महीने (चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन) होते हैं। हिन्दू पंचांग सार्वभौमिक और वैज्ञानिक कैलेंडर है। यह सौर्य और चंद्रमा की गणना पर आधारित है। इसलिए इसकी गणना बेहद ही सटीक होती है। हिंदू पंचांग के आधार पर यह हजारों साल पहले बता दिया था कि अमुक दिन, अमुक समय पर सूर्यग्रहण होगा।

विक्रम संवत का धार्मिक महत्व

वैदिक शास्त्रों और पुराणों के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा जी ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को इस संसार को रचा था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। नवरात्रि व्रत भी इसी तिथि से प्रारंभ होता है।

नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व है, जिसमें नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों (मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी, मां सिद्धिदात्री) की पूजा अर्चना की जाती है। मां के भक्त नवरात्रि के व्रत रखकर उनकी उपासना करते हैं।