नवादा : शहनाई वादन से बिहार का गहरा नाता रहा है। बक्सर जिले का डुमराव शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जन्मस्थली है। उनकी शहनाई की धुन का दीवाना आज भी हर कोई है।
नवादा जिले के छोटे से कस्बे ननौरा गांव में शहनाई वादक अमरिका रविदास हैं, जो राग छेड़ते हैं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। कोरोना महामारी के चलते आज उनकी शहनाई की गूंज भी लॉक हो गई। उनकी कमाई का आधार आज पूरी तरह मौन है। जिसके कारण पूरे परिवार के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है।
वे बताते हैं कि लगन के सीजन में अच्छी कमाई हो जाती थी। जिससे परिवार की परवरिश में सहूलियत होती थी, लेकिन इस साल कोरोना के कहर से ग्रहण लग गया और शहनाई की आवाज बंद है। संगत पर साथ देने वाले राजेंद्र रविदास और विशेश्वर रविदास भी आज काफी निराश हैं।
लगन की एडवांस बुकिग हुई रद्द
शहनाई वादक अमरिका बताते हैं कि कोरोना के चलते शादी-ब्याह टल गए। फलस्वरूप जिन लोगों ने एडवांस बुकिग कराई थी, उन्होंने उसे रद कर दी। कोरोना के कहर के चलते एक दर्जन से अधिक बुकिग रद करनी पड़ी है। नतीजतन आर्थिक व्यवस्था डगमगा गई। फिलहाल इससे उबरने की स्थिति भी नहीं दिख रही।
वे बताते हैं कि शादी में तीन लोगों की टीम लेकर शहनाई और ढोल बजाने जाते हैं। एक रात में चार-पांच हजार रुपये मिलते हैं, जिसे तीनों आपस में बांट लेते हैं। यही आजीविका का मुख्य साधन है। बिहार-झारखंड सहित अन्य राज्यों में भी जाकर शहनाई वादन कर चुके हैं।
नई पीढ़ी जुड़ने को नहीं है तैयार
भारतीय संस्कृति में कभी राजे-रजवाड़ों के दौर में शहनाई वादन से मनोरंजन किया जाता था। तब उन कलाकारों को काफी मान-सम्मान मिलता था, लेकिन आज वह बात नहीं रही।
शहनाई वादक अमरिका बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी धंधा है। बाप-दादा भी इसी रोजगार से जुड़े थे। वे खुद पिछले चालीस सालों से शहनाई वादन कर रहे हैं, लेकिन अब नई पीढ़ी इससे जुड़ने को तैयार नहीं है। वे कहते हैं कि एक प्रकार से उनके रूप में यह अंतिम पीढ़ी है, जो शहनाई वादन से जुड़ी है। वे यह भी बताते हैं कि नवादा जिले में ननौरा में गिने-चुने लोगों के अलावा कोई जगह नहीं है, जहां कोई शहनाई वादन से जुड़ा हो। यानि नवादा जिले में शहनाई वादन समाप्ति के कगार पर है।