पटना : बिहार में महागठबंधन की सीटों का ऐलान कर दिया गया है। लेकिन सीटों के ऐलान में कांग्रेस का नंबर जिस तरह से कम हुआ है, वह यही दर्शाता है कि उसने राजद और अन्य घटकों के सामने घुटने टेक दिये। यही नहीं, जो गति कांग्रेस की राजद के मुकाबले हुई, कमोबेश वही हाल राजद का अन्य घटक दलों के मुकाबले दिख रहा है, जिसे कहने को तो 20 सीटें मिली लेकिन वास्तव में उसे 18 सीटें ही प्रत्यक्ष मिली हैं। क्योंकि उसे अपने कोटे से माले और शरद यादव को एडजस्ट करना होगा। देखा जाए तो महागठबंधन के सीट बंटवारे में छोटे घटक दलों ने बाजी मारी है।
महागठबंधन के सीट बंटवारे में सबसे ज्यादा हैरानी कांग्रेस की सीटों को लेकर हुआ। कुछ दिन पहले ही बिहार प्रदेश कांग्रेस ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। उसकी सूची अनुशंसा के लिए दिल्ली भी भेज दी गई थी। बस कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति को मुहर लगाना बाकी रह गया था। तभी खबर सामने आई कि अभी सिर्फ सूची भेजी गई है, और 11 सीटों पर कांग्रेस लड़ेगी या नहीं लड़ेगी, इसका फैसला अभी किया जाना है। फिर खबर आई कि राजद कांग्रेस को बिहार में 8-10 सीटों से ज्यादा देने को तैयार नहीं है। फिर ये भी खबर आई कि कांग्रेस भी 11 सीटों से कम पर झुकने को तैयार नहीं है। लेकिन इन सभी अटकलों और अफवाहों को समाप्त करते हुए सीट एलॉट कर ही दिया गया। कांग्रेस जैसी अखिल भारतीय पार्टी के लिए भी और देश, समाज तथा लोकतंत्र के लिए भी ये शर्मनाक हालात हैं। राजद जैसे क्षेत्रीय और सीमित जनाधार वाले दल के सामने कांग्रेस झुक गई। आखिरकार कांग्रेस को बिहार में 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस इस हालत में क्यों पहुंच गई, यह विश्लेषण का विषय है। कभी देश में एकमात्र राष्ट्रीय दल का खिताब पाने वाली कांग्रेस का डंका बजा करता था। फिलहाल बिहार में महागठबंधन में सभी क्षेत्रीय दल हैं और सबके अपने अपने स्वार्थ और अपनी राजनीति है। बहरहाल प्रतीत तो यही हो रहा है कि सीट बंटवारे में इन सबकी गाज कांग्रेस पर ही गिरी है।
(मधुकर योगेश)
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