कांग्रेस की यह कैसी अहिंसा : ‘झप्पी का नाटक’ और संघ ‘संवाद’ से पलायन

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नयी दिल्ली/पटना : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय मंथन शिविर में देश के तमाम राजनीतिक दलों समेत समाज के विभिन्न वर्गों के प्रबुद्ध जनों को ‘भविष्य का भारत : संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर संवाद के लिए आमंत्रित किया था। इस शिविर में खास बात यह रही कि जहां लेखन, फिल्म, खेल और अन्य कई क्षेत्रों के प्रबुद्ध जनों ने संवाद में बढ—चढ़ कर भाग लिया वहीं कांग्रेस समेत अधिकतर राजनीतिक दलों ने पलायन वादी रुख पेश किया। ऐसे में मीडिया और आमजनों के बीच यह सवाल तैरने लगा कि क्या भारत में विपक्ष का यही बहुप्रचारित ‘सहिष्णु चेहरा’ है? क्या यह व्यवहार कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा संसद में ‘अहिंसा की झप्पी’ के आचरण से मैच करता है?

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पहले दिन राष्ट्रीय महत्व के कई मुद्दों पर विचार रखने के साथ-साथ जहां आजादी के संग्राम में कांग्रेस की भूमिका की भूरी—भूरी प्रशंसा की, वहीं उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार का नाम लिए बिना कुछ संदेश भी दिए। 2014 में देश की सत्ता पर विराजमान होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। जबकि सरसंघचालक ने साफ कहा कि संघ ‘मुक्त’ पर नहीं बल्कि ‘युक्त’ पर जोर देता है। भागवत ने कहा, ‘हम लोग सर्व लोकयुक्त वाले लोग हैं, ‘मुक्त वाले नहीं। सबको जोड़ने का हमारा प्रयास रहता है, इसलिए सबको बुलाने का प्रयास करते हैं।’

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कांग्रेस के योगदान पर उसकी ईमानदार प्रशंसा

भागवत ने कहा कि संघ की यह पद्धति है कि पूर्ण समाज को जोड़ना है, इसलिए संघ के लिए कोई पराया नहीं, जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं। संघ केवल यह चिंता करता है कि उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो। उन्होंने कहा कि आरएसएस शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है। संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों। समाज में कोई भेदभाव न हो।

बीजेपी नेता लगातार कहते रहे हैं कि पिछले 60 सालों में देश में कोई काम नहीं हुआ। बीजेपी के इस बात का संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में जवाब दिया। मोहन भागवत ने आजादी की लड़ाई में कांग्रेस की भूमिका की तारीफ की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की बदौलत देश की स्वतंत्रता के लिए सारे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ और देश को आजादी मिली। आजादी के बाद भी कांग्रेस ने देश में काम किया है।

केंद्र सरकार के लिए दिये दो बड़े संदेश

संघ प्रमुख का ये दोनों बातें कहना कहीं न कहीं मोदी सरकार के लिए संदेश माना जा रहा है। लेकिन यहां प्रश्न यह उठता है कि संघप्रमुख के संवांद से दूरी बनाकर कांग्रेस आखिर क्या दर्शाना चाहती है। लोकतंत्र की बुनियाद ही संवाद पर टिकी होती है। संघप्रमुख ने खुले दिल और पूरी ईमानदारी के साथ कांग्रेस के योगदान की प्रशंसा की। लेकिन कांग्रेस ने इस ‘संवाद’ कार्यक्रम से अलग रहकर अपने नए अहिंसक अवतार की झलक दिखला दी। ऐसे में उसके लोकतांत्रिक होने पर सवाल उठने शुरू हो जाएं तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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