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बाथे गांव क्यों ऋणी है वाजपेयी जी का?

अरवल : कलेर प्रखंड के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 1 दिसंबर 1997 का दिन याद कर आज भी रूह कांप जाती है। तब यहां रणवीर सेना के लोगों ने 58 लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी। इस सामूहिक हत्याकांड की गूंज देश ही नहीं विदेशों सुनी गई। इस घटना के समय बिहार में लालू यादव की सरकार थी जबकि केंद्र में विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेई हुआ करते थे। घटना के बाद लक्ष्मणपुर बाथे में देश के कई बड़े नेता पहुंचे और पीड़ित परिवार से मिलकर उन्हें ढांढ़स बंधाया। लोकसभा में विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेई के भी 10 दिसंबर के दिन लक्ष्मणपुर बाथे आना तय हुआ था। लेकिन स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट थी कि अगर वे यहां आते हैं तो भाकपा माले के नेताओं द्वारा उनका विरोध किया जाएगा। इसी सूचना पर वाजपेई का 10 को आना रद्द हो गया। लेकिन अटल जी 10 दिसंबर को तो नहीं पर 11 दिसंबर को बाथे गांव पहुंच गए तथा सभी पीड़ित परिवारों से एक-एक कर मिले। उन्होंने पीड़ित परिवार को हर संभव सहायता और मुआवजा दिलाने की घोषणा की तथा पटना पहुंच कर राज्य सरकार से बात कर उसी समय इस संबंध में घोषणा करवाया। यह उनके प्रयासों का ही नतीजा रहा कि तत्काल उन्हें मुआवजा दिया गया।

अटल जी को याद कर नम हुईं गांव के दलितों की आंखें

बाथे गांव का दौरा करने के बाद उन्होंने कहा था कि यहां के लोगों को सुरक्षा के लिए अरवल को शीघ्र जिला बनाया जाना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी का यह घोषणा भी बेकार नहीं गयी। उनकी मांग के तुरत बाद ही बिहार सरकार ने विवश होकर अरवल को अनुमंडल से जिला बना दिया। एक तरह से कहा जाए तो अरवल को अनुमंडल से जिला बनवाने का श्रेय भी अटल बिहारी वाजपेयी को ही जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के निधन की खबर सुनते ही समूचे बाथे गांव में मातम छा गया है। पीड़ित परिवार के परिजन उग्रह राजवंशी, लक्ष्मण राजवंशी, अशोक राजवंशी, सत्येंद्र साव, विनोद पासवान, चंद्रप्रभा देवी, राम नारायण राम आदि सभी लोगों ने बताया कि अटल जी विपक्ष में होते हुए भी हमलोगों के लिए जो किए वह यहां सत्ता में बैठे लोग कभी नहीं कर पाते। काश आज के नेता भी अटल बिहारी वाजपेयी जैसे होते तो हम लोग न्याय के लिए इधर—उधर नहीं भटकते।
अखिलेश कुमार