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बालू के अवैध खनन से सिकुड़ती जा रही सकरी नदी

नवादा : जिले के सात बरसाती नदियों में से सकरी नदी आज किसी उद्धारक की बाट जोह रही। झारखंड के पहाड़ से निकल कर नवादा जिला तक कलकल-छलछल करती हुई पहुंची यह नदी आबादी के अत्याचार से दम तोड़ने वाली है। सकरी वस्तुत: बरसाती नदी है। पहाड़ से निकली सात धाराओं में से एक। सातों धाराएं नवादा में बहती हैं, जिनमें सकरी सबसे बड़ी है। यह नदी नवादा के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है। बावजूद इसके राजस्व के चक्कर में पिछले कुछ वर्षो से इस नदी में बालू का अवैध खनन हो रहा है। इससे नदी की गहराई बढ़ती जा रही है और बालू कम होता जा रहा है। लिहाजा, भूजल स्तर में गिरावट से पेयजल संकट भी उत्पन्न हो रहा है। अगर समय रहते अवैध खनन पर रोक नहीं लगाई गई तो नदी का अस्तित्व मिटना तय है।

नदी से निकलीं नहरें बुझाती हैं खेतों की प्यास :

सकरी नदी खेती-किसानी की समृद्धि का स्रोत है। खरीफ के सीजन में इससे करीब दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा खेतों का पटवन होता है। इसी नदी से नवादा के पौरा के पास से निकली दो नहरें पूर्वी व पश्चिमी कैनाल से करीब 65 हजार हेक्टेयर खेतों तक पानी पहुंचाया जाता है। पौरा नहर से दक्षिण व उत्तर में कई छोटी-बड़ी पईन निकली हैं। रोह इलाके के 52 गांवों का पटवन करने वाली रजाइन पईन भी इसमें से एक है। झारखंड के पठारी इलाके से निकली नदी का पानी मैदानी इलाके में आता है तो इसका वेग प्रचंड होता है। नवादा की सीमा से होते हुए यह नदी नालंदा जिले के कई हिस्सों की भी प्यास बुझाते हुए शेखपुरा व पटना जिले के टाल इलाके से होकर गंगा में समाहित हो जाती है।

अधर में अपर सकरी जलाशय परियोजना, खेत रह गए प्यासे :

पौरा कैनाल के निर्माण के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की मंशा अपर सकरी जलाशय परियोजना का निर्माण कराने की थी। इसके तहत झारखंड की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बांध बनाकर सालभर खेतों तक पानी पहुंचाना था, लेकिन उनके निधन के उपरांत योजना चुनावी मुद्दा बनकर रह गई। हाल के वर्षो में नदी जोड़ योजना में सूबे में जिन दो परियोजना की स्वीकृति के लिए राज्य सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगा रही, उसमें एक कोसी-मेची व दूसरी सकरी-नाटा नदी जोड़ योजना भी शामिल है। 55 वर्षो के बाद वैशाख में आया पानी, सुधरेगा जलस्तर :- सकरी नदी में इस साल वैशाख के महीने में पानी आया है। बुजुर्ग बताते हैं, ऐसा 55 साल बाद हुआ है। इसके पहले 1965 में बारिश के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी। इस वर्ष माना जा रहा है कि लॉकडाउन के कारण पर्यावरण के स्वच्छ होने के कारण ऐसा हुआ। इसका फायदा भूमिगत जलस्तर सुधार के रूप में दिखेगा।

नदी का उद्गम स्थल और इस पर निर्भर क्षेत्र :

भौगोलिक दृष्टि से सकरी नदी का इतिहास काफी लंबा है। इसका उद्गम झारखंड के उत्तरी छोटानागपुर के पठार इलाके से बताया जाता है। इसकी समाप्ति गंगा के तटवर्ती इलाकों में होती है। बरसात के दिनों में नदी में आने वाले पानी पर बड़ी आबादी निर्भर है। नवादा जिले के गोविदपुर, रोह, नवादा, अकबरपुर, वारिसलीगंज, काशीचक आदि इलाकों में धान की खेती इसी पर निर्भर है। इसके अलावा शेखपुरा, नालंदा व पटना जिले के बाढ़ के टाल क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं। दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा खेतों तक इसका पानी पहुंचता है।

निर्मल है सकरी का पानी :

सकरी नदी के पानी की गुणवत्ता अन्य नदियों की अपेक्षा अच्छी मानी जाती है। इसमें कहीं भी कल-कारखानों का गंदा पानी नहीं गिरने से इस प्रदूषण नहीं है।
बरसात के दिनों में नदी का लाल पानी धान की फसल के लिए प्राकृतिक उर्वरक जैसा होता है। समय-समय पर नदी में पानी आ जाने से आसपास के इलाकों का जलस्तर संतुलित रहता है।

समृद्धि का प्रतीक :

बुद्धिजीवी रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं, इस नदी के तटवर्ती इलाके के किसान काफी समृद्ध माने जाते हैं। नदी से निकली पईन फसलों की सिंचाई के लिए कारगर साबित होती है। बरसात में आने वाला लाल पानी धान की फसल के लिए अमृत के समान होता है। इस पानी से पैदावार कई गुना बढ़ जाती है।

कब रुकेगा दोहन :

कृषि प्रधान नवादा जिला में सकरी नदी किसानों की समृद्धि का प्रतीक रहा है। हाल के वर्षो में नदी जल का दोहन कुछ ज्यादा हुआ है। अत्यधिक बालू निकासी से इससे निकली पईन का अस्तित्व सिमट रहा है। इसका दोहन रोकना आवश्यक है, एमपी सिन्हा, संयोजक, आहर-पईन बचाओ अभियान।