बदहवास बुद्धिजीवी कोरोना का नैरेटिव बदलने का कर रहे हैं कुत्सित प्रयास : संजय सिंह
चीन के वुहान में जन्मा कोरोना विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका को घुटने पर ला दिया है। आज वहां की स्थिति बेहद ही गंभीर बनी हुई है। मरने वालों की संख्या 22 सौ पार कर गई है। जबकि एक लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। यूरोपीय देश इटली, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, स्पेन, इंग्लैंड त्राहिमाम कर रहे हैं। हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। ब्रिटेन के राजकुमार के साथ-साथ प्रधानमंत्री भी इससे संक्रमित हो गए हैं।
न्यूयार्क में वेंडिलेटर कम पड़ गए
चीन से निकला कोरोना वायरस अबतक इटली में नौ हजार से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। यह संख्या चीन से दुगनी है, जहां इस वायरस का जन्म हुआ था। अमेरिका के न्यूयार्क की स्थिति यह है कि वेंडिलेटर कम पड़ गए हैं। कचरे की थैली का मास्क बनाया जा रहा है। अस्पताल में लोग जमीन पर लेटे हुए हैं। एक वेंटिलेटर पर चार जिंदगियां दांव पर हैं। अमेरिका जैसे विकसित व समृद्ध देश में भी 15 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर की कमी हो गई है। डॉक्टर और नर्स भी कम पड़ गए हैं। अपने विकास, धन तथा ताकत पर इतराने वाले यह सभी देश आज बेबस व असहाय बने हुए हैं।
विश्वयुद्ध से भी बड़ा है यह संकट
विश्व के इतिहास में संभवतः इससे बड़ा संकट मानव जीवन पर नहीं आया होगा। प्रथम विश्व युद्ध व द्वितीय विश्वयुद्ध से भी यह बड़ा संकट है। जो संपूर्ण मानव जीवन के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने दूसरे संबोधन में उसका जिक्र भी किया था। कोरोना का संकट भारत में भी दस्तक दे चुका है। केरल में सबसे पहले एक महिला संक्रमित पाई गई थी। तब उसको लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। दो माह के अंदर ही आज देश की तस्वीर बदली हुई है। कमोबेश भारत के सभी राज्यों में कोरोना कहर के रूप में टूट रहा है।
प्रधानमंत्री ने संभवतः गहराई का अंदाजा लगा लिया था
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभवतः भावी संकट की गहराई का अंदाजा लगा लिया था। उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में जनता कर्फ्यू का आह्वान किया था। जो पूरी तरह सफल रहा। उसी दिन उन्होंने ट्वीट कर इस बात का संकेत दिया था कि यह लंबी लड़ाई की शुरुआत है, कोरोना के खिलाफ। क्योंकि संकट को कम आंकना शक्तिशाली अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, इंग्लैंड, ईरान जैसे देशों को भारी पड़ गया। जबकि जापान और दक्षिण कोरिया ने समय के साथ अपनी तैयारी कर कोरोना के प्रभाव को काबू में रखा।
कोरोना के कहर का नैरेटिव बदलने का प्रयास शुरू
प्रधानमंत्री ने संकट की विकरालता को देखते हुए तैयारी के साथ-साथ पूरे देश में 21 दिन की लॉक डाउन की घोषणा कर दी। सभी राज्यों ने इस निर्णय को स्वीकारा और सराहना भी की। लॉक डाउन पहले दिन से ही सफल दिखने लगा। दो दिन के बाद ठीक-ठाक से लागू हो गया लेकिन संभवतः यही बात देश के कुछ बदहवास बुद्धिजीवियों व मीडिया के एक छोटे तबके को रास नहीं आई। नरेंद्र मोदी से खार खाये ऐसे बुद्धिजीवी व मीडिया के एक वर्ग ने कोरोना के कहर का नैरेटिव बदलने का प्रयास शुरू कर दिया।
जनता को उकसाने की भरपूर कोशिश
दो चैनल विशेष ने इसको खूब हवा दी। जिसका असर भी दिखा। हजारों लोग दिल्ली- यूपी के बॉर्डर पर आ गए। कोरोना संकट के बजाय पलायन, मजदूरी, मजदूर,प्रवासी मुद्दा बनने लगा। मतलब यहां से नैरेटिव चेंज करने की कोशिश हुई। इन बुद्धिजीवियों और मीडिया के वर्ग को हारे व थके हुए दल व उसके नेता ने हवा दी। दरअसल, इन लोगों का यह कॉकटेल ही है। ऐसे लोग देश की सुरक्षा व आम लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। धारा 370 से लेकर संशोधित नागरिकता कानून तक इन लोगों ने जनता को उकसाने की भरपूर कोशिश की। वही कोशिश अब इसमें भी देखने को मिल रही है। यह बात दीगर है कि उनकी यह कोशिश सफल नहीं होगी।
सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना को कंट्रोल करने का इकलौता उपाय
यह संकट बहुत बड़ा व गहरा है। कोरोना न राजा देखेगा न रंक, न हिंदू देखेगा न मुसलमान, न पक्ष देखेगा और न विपक्ष। सबको अपनी चपेट में लेगा। सारी दुनिया जानती है कि सोशल डिस्टेंसिंग ही फिलहाल कोरोना को कंट्रोल करने का इकलौता उपाय है। अगर लॉक डाउन सफल नहीं रहा तो फिर देश में महामारी फैलेगी। फिर दुनिया की सबसे बड़ी मानव त्रासदी देखने को मिल सकती है। लेकिन, कोरोना के संकट को कमतर बताने की कोशिश करने वाले लोग खिलवाड़ कर रहे हैं, लोगों की जान के साथ। अच्छी बात यह है कि आम लोग इस बात को समझ रहे हैं और बदहवास बुद्धिजीवियों की खतरनाक सोच को वे सफल नहीं होने देंगे।