कहते है आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। छात्र रमाशंकर दुबे जब अपनी साइकिल से रात के समय कहीं जाता था, तब अंधेरे में उसे बहुत परेशानी होती थी। इस समस्या का समाधान करने के लिए उसने आविष्कार करने का निश्चय किया। उसके इस विचार का परिवार के लोगों ने पहले विरोध किया। लेकिन, वह अपने विचार पर अडिग रहा। इरादे से हौसले को उड़ान मिलती है। मढ़ौरा बड़ा नौतन निवासी 20 वर्षीय रमाशंकर दुबे ने इसे सच करके दिखाया।
साइकिल में बाइक जैसी सुविधा
छह साल पहले मैट्रिक परीक्षा पास करने पर उसके पिता ने उसे एक रेंजर साइकिल खरीद कर दी थी। तब उसके पास नयी रेंजर साइकिल का होना भी बड़ी बात थी। लेकिन, साइकिल में बाइक जैसी सुविधा का अभाव उसे खटकता था। तभी उसके दिमाग में अपनी साइकिल में भी बाइक जैसी हेड और बैक लाइट लगाने की बात सूझी। बचपन से इलेक्ट्राॅनिक्स से स्वाभाविक जुड़ाव होने के कारण वह इसे पूरा करने के प्रयास में जुट गया। 2014 से पढ़ाई के साथ-साथ अपने प्रयास में जुटा रहा। अब उसने ऐसी साइकिल बना ली है, जिसमें बाइक जैसी सभी लाइट की सुविधाएं हैं। रात में हेड लाइट के साथ बैक लाइट भी जलता है। लेफ्ट-राइट इंडिकेटर भी काम करता है। इतना ही नहीं बाइक के जैसा हॉर्न भी बजता है।
जुगाड़ तकनीक और खर्च मात्र 550 रुपये
यह सब कुछ उसने जुगाड़ से विकसित किया है और इस कार्य को पूरा करने में उसके मात्र 550 रुपए ही खर्च हुए हंै।
रमाशंकर अमनौर एचआर कॉलेज में बीए पार्ट वन का छात्र है। चार भाइयों में सबसे छोटा रमाशंकर एक सामान्य परिवार से आता है। कृषक पिता प्रभुनाथ दुबे दो साल पहले गुजर चुके हैं। तीन भाई खेती और मजदूरी करके ही किसी तरह परिवार का भरण पोषण करते हैं। रमाशंकर को बचपन से इलेक्ट्राॅनिक्स सामान से स्वाभाविक लगाव था। पिता ने जब उसे बाइक खरीद कर दी थी तभी से जानता था की वे बाइक खरीदने की हैसियत नहीं रखते है। उसके मन में यह कसक थी तभी उसने अपनी साइकिल में ही बाइक की सुविधा लगाने की सोच ली। यह सोच इंटर में आते आते जिद में बदल गया जो आज कामयाबी के रूप मे सामने है ।
रमाशंकर ने चार्जेबल लालटेन की 4-4 वोल्ट बैट्री से अपने सपने को साकार किया है। इस बैट्री को उसने सीट के नीचे एक चेंबर लगाकर फीट किया है। डिजिटल लाइट, हार्न, पावर कीट, बैक लाइट,रेगुलेटर,कम्प्यूटर माउस बटन चार्जिग कीट, ओवर लाइट हेलोजन और तार का उपयोग कर उसने अपनी साइकिल में बाइक जैसी सुविधाएं बना लीं। उसने सभी हैंडलिंग बटन स्विच हैंडल पर बाइक जैसे ही लगाये जो साइकिल चलते समय भी आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। यह सिस्टम रिचार्जेबल बैट्री से संचालित होता है। ढ़ाई घंटे में एक बार चार्ज बैट्री से आठ घंटा लगातार लाइट जलाया जा सकता है। वहीं हार्न आदि का प्रयोग करने पर छः घंटे बैटरी चलती है। रमाशंकर ने साइकिल में तार और यंत्रों को इस तरह से लगाया है, जो साइकिल के लुक को प्रभावित नहीं करती। इसके हेड लाइट की रौशनी एक तीन बैट्री के टार्च से भी अधिक होती है।
अपने जुगाड़ को अंजाम तक पहुंचाने में रमाशंकर को चार साल लगे। कई बार उसे असफलता मिली। लेकिन वह हार नहीं माना और गलतियों को सुधार कर आगे सोचता रहा। रमाशंकर कहते हैं कि उसे मदद मिली तो वह और भी कई आविष्कार करना चाहता है।
(संजीव कुमार)