पटना : बिहार में कुछ चुनावी मुकाबले सत्तापक्ष के साथ-साथ बाहुबलियों की नाक का सवाल बन चुके हैं। ऐसी ही एक सीट है मुंगेर की जहां मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी और जदयू के ललन सिंह मैदान में हैं। मुंगेर लोकसभा सीट कई मायनों में अहम है। पिछली बार मोदी लहर पर सवार हो कर लोजपा की वीणा देवी ने यहां से एनडीए का परचम लहराया था। लोजपा नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने जदयू के ललन सिंह को 1,09,084 वोटों से पराजित किया था। मुंगेर लोकसभा सीट से कभी कोई भाजपा उम्मीदवार नहीं जीत सका। उसका एक बड़ा कारण है कि भाजपा अपने घटक दलों को ही यहां से उतारती आई है। इस बार मुंगेर लोकसभा सीट एक हॉटसीट बन कर उभरा है। कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी यहां से कांग्रेस की उम्मीदवार हैंं। वहीं नीतीश कुमार के बेहद करीबी जदयू के ललन सिंह एनडीए की ओर से जदयू के उम्मीदवार हैं।
अनंत—ललन में क्यों पैदा हुई दीवार
अनंत सिंह लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही मीडिया में छाए हुए हैं। बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू का टिकट न मिलने से नाराज अनंत सिंह, मोकामा से निर्दलीय ही चुनाव जीते और इसके बाद से ही जेल में नीतीश कुमार का साथ न मिलने की वजह से नाराज़ हो गए। इस चुनाव में अनंत सिंह मुंगेर से आने का पूरा मन बना चुके थे और उनका साथ दिया कांग्रेस ने। हालांकि आपराधिक छवि के कारण अनंत सिंह की जगह उनकी पत्नी नीलम देवी को टिकट दिया गया।
2009 में मुंगेर से सांसद चुने गए राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह राज्य सरकार और भाजपा के समर्थन की बदौलत वोट मांग रहे हैं। वहीं अपने चिर-परिचित और ठेठ अंदाज़ मे अनंत सिंह लोगों के बीच रहने और कार्य करने के दावों पर वोट मांग रहे हैं। मुंगेर लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं—जमालपुर, सूर्यगढ़ा, लखीसराय, मुंगेर, मोकामा, बाढ़। मुंगेर और सूर्यगढ़ा पर राजद, लखीसराय, बाढ़ पर भाजपा, जमालपुर पर जदयू और मोकामा पर निर्दलीय उम्मीदवार का कब्जा है।
मुंगेर का क्या है जतीय गणित
मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में कुल 18,71,193 मतदाता हैं, जिनमें 60 फीसदी पुरुष तो 40 फीसदी महिलाएं हैं। 29 अप्रैल को चौथे चरण में यहां मतदान है। पर इस क्षेत्र में कई मुद्दे अभी अहम बने हुए हैं। विकास की दृष्टि से इस क्षेत्र में बहुत सी संभावनाएं बनी हुई हैं। मुंगेर जिले में उद्योगों का भारी अभाव है और अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी जटिलता कायम है। जमालपुर में रेल कारखाना बदहाल स्थिति में है तो वहीं मुंगेर की सिंचाई परियोजनाएं बिल्कुल ठप पड़ गईं हैं। राज्य सरकार की सात निश्चय योजना और केंद्र सरकार की बिजली आपूर्ति योजनाओं का लाभ वृहद पैमाने पर जरूर मिला है।
1984 के बाद यहां कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं जीत सका है। ज़्यादातर लड़ाई राजद-जदयू के बीच ही देखी जाती है। 1998 के समय से यहां 2 बार राजद, 2 बार जदयू तो एक बार लोजपा की जीत हुई है। मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार सबसे अधिक हैं। वहीं यादव वोटरों के अलावा पिछड़े, अतिपिछड़े वोट निर्णायक रूप से सांसद चुनने का फैसला करते हैं।
दोनों ही सबल उम्मीदवार भूमिहार हैं। जहां एक ओर नीलम देवी को महागठबंधन के निश्चित वोटरों पर विश्वास है तो वहीं जदयू के ललन सिंह राज्य और केंद्र सरकार के कार्यों पर वोट मांगने से नहीं हिचकते। अब देखना यह है कि यहां नीतीश से बागी हुए अनंत की पत्नी जीतती हैं, या उनके करीबी ललन सिंह दंगल मार ले जाते हैं।
सत्यम दुबे