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सिवान सीट : विकास पर वर्चस्व हावी

सिवान बिहार की महत्वपूर्ण संसदीय सीट है। इसके साथ-साथ यह सिर्फ बिहार के लिए ही नहीं अपितु पूरे देश की नजर इस पर लगी रहती है। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ-साथ कई अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि के रूप में सिवान जाना जाता है। वहीं शहाबुद्दीन के आंतक का भी गवाह रहा है। लेकिन, जब क़ानूनी शिकंजा शहाबुद्दीन पर कसा, तो इनके राजनीति कैरियर पर ग्रहण लग गई। उन्होंने अपनी पत्नी को चुनावी मैदान में उतारा। इसका कोई फायदा नहीं हुआ और हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, फिर 2019 के लोकसभा के चुनाव में राजद से सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया है। जदयू की तरफ से कविता सिंह को चुनावी मैदान में उतारा गया है। दोनों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। सिवान की जनता की मानें, तो वे दो धारी तलवार के बीच अटके हैं। इसका एक कारण है कि दोनों के पति बाहुबली हैं। अगर दोनों में किसी एक की पत्नियां जीत भी जाए तो क्या? राज तो पति ही करेंगे। खैर सिवान की जनता अपना निर्णय सुना दी है।

इस बार अगर हिना शहाब जीतती है, तो राजनीति में इनकी एक अलग ही पहचान बनेगी और अगर हारती है, तो आगे भी अपने पति के बाहुबल के दम पर इन्हें चुनावी टिकट मिलता रहेगा।

1957 में सिवान संसदीय सीट आस्तित्व में आया। लोकसभा निर्वाचन के दौरान यहां के लोगों ने सांसद चुनाव के लिए पहली बार मतदान किया। इसके बाद यहां के सीट पर चुनाव होता रहा। 1996 में भाजपा के उम्मीदवार पंडित जनार्दन तिवारी को हराकर मोहम्मद शहाबुद्दीन पहली बार सांसद बने। उसके बाद सिवान की स्थिति ही बदल गई। वे लगातार चार बार सांसद रहे। 2009 व 2014 में ओमप्रकाश यादव शहाबुद्दीन को हराकर लोकसभा पहुंचे। अब यहां पर विकास के नाम पर चुनाव न हो कर यहां पर वर्चस्व की लड़ाई हो गई है। अब यहां की जनता को एक नए सूरज का इंतजार है, जो सिवान में वर्चस्व की लड़ाई न कर विकास की बात करे।

(वंदना कुमारी)