पटना : जब गरीब गरीबी से हार जाते हैं तब वे नक्सलवाद का हाथ थामते हैं या मौत का। उन्हीं की कठिनाइयों के बारे में लिखने वाले सरोज दत्ता जी को भी जब नक्सल बता कर पुलिस द्वारा मार कर उन्हें फरार घोषित करके उनकी मौत की सच्चाई को दबा दिया गया था, उनकी सच्चाई को तलाश कर तथा उनके बारे में जनता को बताना ही हमारा लक्ष्य है। उक्त बातें सरोज दत्ता निर्देशक मिताली विश्वास ने हिरामन द्वारा आयोजित पटना फिल्मोत्सव के तीसरे व आखिरी दिन बेहतरीन फिल्में दिखलाने के बाद कही।
बच्चों के लिए फीचर फ़िल्म ‘फर्दीनांद’ से फिल्मोत्सव की शुरुआत हुई। जिसे कार्लोस सलदान के निर्देशन में बनाया गया है। इसे देखकर बच्चों के साथ बड़े भी अपनी हँसी को रोक नहीं पा रहे थे। उसके बाद विप्लवी कवि, राजनीतिक कार्यकर्ता तथा एक पत्रकार के रूप में सरोज दत्ता पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म जिसे कस्तूरी वसु तथा मिताली विश्वास के निर्देशन में बनाया गया है। इसमें सरोज दत्ता के अपहरण के बारे में डीबी चट्टोपाध्याय और मंजूषा चट्टोपाध्याय ने साक्षात्कार के माध्यम से उनके वृतांत को बताया है। उनकें द्वारा लिखी कविताएं, अनुवाद किये गए लेखों , नक्सलवादी मूवमेंट के बारे में भी बताया गया है। उसके बाद फिल्मकारों ने दर्शको से संवाद किया और अंत में लु शुन की कहानी पर आधारित एक नाटक ‘पागल की डायरी’ से पटना फिल्मोत्सव का समापन हुआ।
राजन कुमार