मशहूर कोचिंग सेंटरों का आस-पास होना भी आजकल छात्रावास चला रहे परिवारों या इसे पेशे के तौर पर अपनाने वाले व्यवसायियों के लिए फायदे का सौदा बन गया है। यूँ तो छात्रावास चलाने वाले सभी संचालक कड़ी सुरक्षा और अच्छे खान-पान का दावा करतें हैं और बेशक कुछ छात्रावास काफी हद तक इन दावों को पूरा भी कर रहें हैं। पर, दूसरी ओर इनका न होना भी इन्हें कमरे का किराया बढ़ाने से रोक नहीं पाता है।
ऐसे होती है सुरक्षा!
बात हो रही है पटना के बोरिंग रोड स्थित नागेश्वर कॉलोनी में सालों से चल रहे गर्ल्स हॉस्टल्स की। यह 50 मीटर की दूरी पर ही तीन से चार अलग-अलग सुविधाओं वाले छात्रावास पटना व बाहरी छात्राओं के लिए उपलब्ध है। एक ओर जहाँ कमरे के आकार, प्रकार और किराए कुल मिलाकर एक जैसे ही हैं वही दूसरी ओर सुरक्षा व्यवस्था, खाने की गुणवत्ता अच्छे और औसत छात्रावासों को अलग करती है।
गौरतलब है कि छात्रावास चलाने वाले जो परिवार अपने छात्रावासों में रह रहीं छात्राओं की देख-रेख की ज़िम्मेदारी खुद लेते हैं वे अन्य होस्टलों के अपेक्षाकृत अच्छी व्यवस्था प्रदान करतें हैं। इसी के परिणामस्वरूप छात्राओं को हॉस्टल में सुरक्षा गार्ड के न होने का भी भय नहीं होता, क्योंकि नागेश्वर कॉलोनी में परिवारों की देखभाल में चल रहे हॉस्टलों में कई सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था है। पर, सुरक्षा गार्ड न होने की खामी को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता है।
स्थानीय लड़कियां भी हॉस्टल में
कई छात्राएँ कॉम्पटीशन की तैयारियों के लिए तो कई स्नातक डिग्री की पढ़ाई के लिए मुख्य रूप से पटना आती हैं।
कॉलोनी स्थित एक छात्रावास चला रहे परिवार ने बताया कि केवल पटना से बाहर की ही नहीं बल्कि पटना में जिन परिवारों के घर कोचिंग संस्थानों से दूर हैं, वे भी अपनी बच्चियों को स्कूटी देने की जगह हॉस्टलों में ही रखना बेहतर समझ रहें हैं जिससे आने जाने में समय की बर्बादी न हो और न ही पढ़ाई में कोई कमी रहे।
सुविधा के नाम पर दिखावा
अधिकतर छात्रावासों में पानी की अच्छी व्यवस्था, प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएं, बिजली, अग्निशामक यंत्र और अन्य मूलभूत सुविधायें हैं पर छात्र-छात्राओं की इस नगरी की थोड़ी और जाँच के बाद छात्रावासों के इन संचालकों की व्यापारिक मानसिकता भी सामने आई। बाहर से सभी सुविधाओं से लैस होने की गारंटी देने वाले कुछ छात्रावासों के दावे अंदर से खोखले ही नज़र आते हैं। यकीन मानिए, दिखावे की वार्डन का भी इंतज़ाम होता है इनके पास।
इसी इलाके के एक छात्रावास में न तो सुरक्षा व्यवस्था थी और न ही साफ-सुथरे शौचालय। 7000 रुपये के सिंगल कमरे सात कदम भी बड़े नही हैं। ऐसे में भी किन परिस्थितियों में ये छात्राएं इस तरह के हॉस्टलों का चुनाव करती हैं, ये विचारणीय है।
मजबूरी पर मनमानी
राजधानी पटना में चारों ओर बढ़ते कोचिंग संस्थानों के लिए छात्र-छात्राओं की भीड़ लाभदायक है। वहीं यह भीड़ छात्रावासों के लिए और भी फायदेमंद है, जो छात्राओं को सुरक्षा और अच्छे खान-पान का पूरा आश्वासन देते हैं और इसी आश्वासन से अभिभावक भी निश्चिंत होकर अपनी बच्चियों को यहाँ लायक बनने छोड़ जाते हैं। इसी बीच व्यवसाय की दृष्टि से बने कुछ छात्रावास उन्हें अपना परिवार बना लेते हैं, वहीं दूसरी ओर इसी भीड़ से उपजती माँग में कुछ मजबूरी पर मनमानी भी चला जाते हैं।
(भूमिका किरण)