दिल्ली में पकी मिथिला के बीरबल झा की खिचड़ी

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पटना : मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शुमार बीरबल की कहानी में खिचड़ी कभी नहीं पक पाई थी। मगर आज के बीरबल की खिचड़ी पक भी गई और लोगों ने मकर संक्रांति पर इसके जायके का खूब लुत्फ भी उठाया। यह बीरबल कोई और नहीं, बल्कि प्रख्यात लेखक डॉ बीरबल झा हैं। मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष और लिंगुआ फैमिली के प्रमुख डॉ बीरबल झा ने इस बार मकर संक्रांति के अवसर पर दिल्ली में “खिचड़ी पे चर्चा” का एक कार्यक्रम रखा था। कार्यक्रम में शिक्षा, व्यापार, राजनीति, मीडिया समेत कई क्षेत्र से जुडे़ लोग पहुंचे थे, जिनमें कई चर्चित लेखक व साहित्यकार भी मौजूद थे।
बीरबल झा ने अपने निर्देशन में खिचड़ी का व्यंजन तैयार किया था। साथ में खिचड़ी के चार यार घी, पापड़, दही, अचार भी उपलब्ध थे। इस व्यंजन का लोगों ने खूब लुत्फ उठाया और इसकी खासियत की चर्चा की। पाग पुरुष डॉ झा ने कहा कि खिचड़ी सुपाच्य भोजन है, जो मरीजों के पथ्य से लेकर पंच सितारा होटलों के भी मेनू में आज शामिल है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी की दावत की परंपरा मिथिला में सदियों से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि खिचड़ी एक गुणकारी और जायकेदार व्यंजन है, जिसके कई रूप देखने को मिलते हैं। यह अंग्रेजी का शब्द हॉच- पॉच नहीं बल्कि फ्रेंच शब्द मिलॉन्ज का परिचायक है। मिलॉन्ज का अर्थ है मिश्रण। खिचड़ी में भी दाल, चावल, सब्जी और जायकेदार मसालों का मिश्रण होता है, जो काफी पौष्टिक होता है।

डॉ झा ने कहा कि खिचड़ी के अब कई मुहावरे बन चुके हैं, जिनका प्रयोग खानपान से इतर राजनीति, मनोरंजन, समाज समेत कई क्षेत्र में अलग-अगल अर्थों में होता है। इस मौके पर मौजूद अंग्रेजी के प्रोफेसर डॉ अरुण कुमार झा ने कहा कि आज का विचार भी अब खिचड़ी बन गया है, जो साम्यवाद, पूंजीवाद व अन्यान्य वादों को समाहित कर लिया है। वर्तमान दौर में गठबंधन की राजनीति भी तो एक प्रकार की खिचड़ी ही है।

swatva

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