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पाणिनि के सूत्र आज भी प्रासंगिक : प्रो वीसी

दरभंगा : संस्कृत विश्वविद्यालय के बहुउद्देश्यीय भवन में व्याकरण विभाग द्वारा ‘ वृद्धिरादैच् ‘ सूत्र पर आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन करने के बाद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोवीसी प्रो चन्द्रेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि पाणिनि के सूत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि पहले। उन्होंने आशा जताई कि आज की कार्यशाला में उन्हीं सूत्रों की दमदार व्याख्या होगी और उसे नए अर्थों में परिभाषित की जाएगी। प्रोवीसी ने कार्यशाला की सफलता की कामना करते हुए आयोजकों को धन्यवाद दिया और ऐसे कार्यक्रमों की प्रासंगिकताओं की भी वकालत की। जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि प्रोक्टर प्रो0 सुरेश्वर झा ने विषय परिवर्त्तन किया और कहा कि पाणिनि के सूत्रों का एक भी वर्ण निरर्थक नहीं है। बल्कि उनके सूत्रों में आध्यात्म व विज्ञान दोनों निहित है। पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्ययी में सूत्रों की संख्या 3996 है।

उन्होंने कहा कि पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी का यह प्रथम सूत्र है। सूत्र में प्रयुक्त वृद्धि पद मंगलार्थक होने से सभी का सर्वविध विकास होगा। निवर्तमान विभागाध्यक्ष प्रो.शशिनाथ झा ने कहा कि पाणिनि के इन सूत्रों के कारण ही आज संस्कृत का स्वरूप अक्षुण्ण है। मौके पर उपस्थित विशिष्ट अतिथि राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान जयपुर परिसर के प्रो. श्रीधर मिश्र तथा सारस्वत अतिथि जगत्गुरु रमानन्दाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रो.राजधर मिश्र ने भी ‘वृद्धरादैच्’ विषय पर लम्बा चौड़ा व्याख्यान दिया। मंच संचालन प्रो.दयानाथ झा ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ विकाउ झा ने किया। दो सत्रों में चली कार्यशाला में पाणिनि के ‘वृद्धिरादैच’ सूत्र पर डा.त्रिलोक झा, डा.गोविन्दनाथ झा, डॉ प्रियंका तिवारी समेत अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे। समापन सत्र में प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी दिया गया। उद्घाटन सत्र में वैदिक मंगलाचरण प्रो.विद्येश्वर झा ने प्रस्तुत किया। कार्यशाला में डा.वौआनन्द झा, डा.फुलचन्द्र मिश्र, डा.दिलीप कुमार झा, डा.विश्राम तिवारी, डा.पुरेन्द्र वारिक, डा.बालमुकुन्द मिश्र, कुलसचिव नवीन कुमार, डॉ रामनिहोर राय समेत कई विभागों के शिक्षक व कर्मचारी उपस्थित थे।

(मुरारी ठाकुर)