नालंदा : नई फसल कटने के साथ ही धान से बनने वाला चूड़ा इन दिनों बिहार में एक नए अवतार में सामने आ रहा है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। गांवों में चूड़ अब बिहारी फास्ट फूड के तौर पर अपनी पहचान बना रहा है। अपनी सोंधी खुशबू के कारण ग्रामीणों का यह पसंदीदा फास्ट फूड के रूप में जाना जाने लगा है। सीजन शुरू होते ही नालंदा के ग्रामीण इलाकों में लोगों के नाश्ते में तथा चौक—चौराहों पर सभी दुकानों में चूड़ा मिश्रित आइटम ही ज्यादातर इस्तेमाल होते हैं। लोगों के जायके में चूड़े के इस मुकाम का ट्रेंड हाल के तीन—चार वर्षों से देखा जा रहा है। जब लोगों की आदत बदलती है, तो मांग भी बढ़ती है और उस मांग की पूर्ति के साधन भी जुटने लगते हैं। नया नए धान के कटने के साथ ही चूड़ा मिल भी जगह—जगह लग गए हैं और किसानों की भीड़ इन मिलों पर दिखनी शुरू हो गई है।
कैसे तैयार होता है चूड़ा
परंपरागत रूप से चूड़ा तैयार करने की विधि में धान को फटक कर, ओसा कर साफ करके पानी में 24 से 48 घंटे तक फुलने के लिए डाला जाता है। उसके बाद पानी से निकालकर आठ से 10 घंटे के लिए टोकरी में धान को रखा जाता है ताकि सारा पानी निकल जाए। तदुपरांत स्थानीय चूड़ा मिल में किसान उसे ले जाकर चूड़ा बनने के लिए दे देते हैं। जहां चूड़ा मिल में लगे एक विशेष प्रकार के चूल्हे जिसे डमरू कहा जाता है में तीन से 5 किलो धान की घानियो में उसे भूना जाता है और फिर मशीन जिसे डाला या चकरी कहते हैं, में डालकर चूड़ा तैयार किया जाता है। मिल संचालक अशोक कुमार ने बताया कि 100 किलो धान में 54 से 55 किलो चूड़ा तैयार होता है। अभी 350 रूपये में 100 किलो धान से जुड़ा बनाने का रेट वर्तमान में चल रहा है।
चूड़े का प्रकार
वैसे तो ग्रामीणों में हरा चूड़ा सबसे पसंदीदा होता है पर सुगंधित चूड़ा, लंबे धान का चूड़ा व देसी चूड़ा की भी अपनी एक अलग पहचान है। वैसे तो ग्रामीण फास्ट फूड के रूप में चूड़े की डिमांड साल भर तक रहती है, परंतु मकर सक्रांति पर्व को लेकर 14 जनवरी तक बिहार सहित अन्य राज्यों में चूड़े की विशेष डिमांड रहती है।
जानकार बताते हैं कि पुराने ग्रामीण परिवेश में ढेकी, उखड़ी, समाट व ठकुरा से परंपरागत तरीके से चूड़ा निर्माण किया जाता था जो अब लुप्तप्राय हो गया है। अब हर जगह ग्रामीण स्तर पर मिलों ने जगह ले ली है। सावन माह में बाबाधाम के प्रसाद के रूप में चूड़े का भोग लगाया जाता है जो आज तक प्रचलित है पर्व त्योहारों में भी चूड़े का प्रयोग होता रहता है।
कुमुद रंजन सिंह