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राममय सिमरिया

मोक्षदायिनी मां गंगा काशी की तरह बिहार के सिमरिया में भी उत्तरायण होकर प्रवाहित होती हंै। भारत की ज्ञान परंपरा के प्रतीक विराट हिमालय से निःसृत होने वाली गंगा इस मृत्युलोक में जहां भी उत्तरायण होती हैं, वह स्थान महान तीर्थ हो जाता है। इस दृष्टि से सिमरिया भी एक दिव्य तीर्थ ही है, जहां दिनकर जैसे कालजयी कवि का अवतरण हुआ। यहां मार्गशीर्ष यानी अगहन मास में जब राम कथा की धारा प्रवाहित होने लगी, तब इस तीर्थ के दिव्य प्रकाश से एक बार फिर देश-विदेश आलोकित हो उठा। रामकथा के माध्यम से जागृत इस तीर्थ स्थल पर ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग के संगम से भारत का जीवन दर्शन जीवंत हो उठा। लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास की परंपरा के प्रतीक संत शिरोमणी मोरारी बापू और वैदिक ऋचा ‘देवस्य पस्य काव्यम’ के प्रतिबिंब राष्ट्रकवि दिनकर के सानिध्य में यहां अध्यात्म व्यवहार में उतरता दिखा।

एकांत रहने वाले इस गंगा तट पर राम कथा के माध्यम से वैभव अपने विराट स्वरूप में दिखा। उस विराट के रोम-रोम में लोक रचा बसा था। कहा जाता है कि जहां राम की कथा होती है, वहां श्रीसुक्त में वर्णित अपनी विशेषताओं व गुणों से युक्त माता लक्ष्मी स्वतः प्रकट हो जाती हैं। सिमरिया में उसी माता लक्ष्मी के दर्शन हो रहे हैं। लोक के कल्याण के लिए आतुर माता लक्ष्मी का दर्शन। यहां भजन के साथ भोजन की भी व्यवस्था है। आॅर्गेनिक खेती से तैयार अन्न व शाक-सब्जी का ही यहां प्रयोग किया जा रहा है। यहां भंडारे में रोज करीब एक लाख लोग भोजन कर रहे हैं। इस प्रकार इस कथा के माध्यम से गंगा क्षेत्र की उर्वर मिटटी का महत्व भी स्थापित हो रहा है। किसानों को रासायनिक खाद व कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरणा मिल रही है। इस प्रकार यह विराट कथा लोगों के योगक्षेम की दिशा में भी एक प्रेरणा दे रहा हैं।
एक दिसंबर से शुरू होकर नौ दिसम्बर को संपन्न होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक महाकुम्भ की तैयारी करीब एक वर्ष पूर्व ही शुरू हो गयी थी। मुख्य यजमान बिपिन ईश्वर के मन-मस्तिष्क में जिस प्रकार की राम कथा की परिकल्पना थी उसके लिए लगभग पांच सौ एकड़ भूमि की आवश्यकता थी। स्थानीय कार्यकर्ताओं, राम भक्तांे व राष्ट्र कवि दिनकर से प्रेम करने वालों के प्रयास से असंभव लगने वाला यह काम संभव हो गया। योजना बनी और उसके अनुसार काम होने लगा। भारत के पुरुषार्थ के प्रतीक मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम की कथा के लिए तीन सौ एकड भूखंड कम लगने लगा तब स्थानीय लोगों ने अपनी खड़ी फसल को हटाकर और जमीन देने का प्रस्ताव रख दिया। इस प्रकार लगभग सोलह किलोमिटर की चैहद्दी में कार्यक्रम का अंतिम प्रारुप तैयार हुआ था। इस महाआयोजन में बिंदटोली के केवट परिवार ने श्रमदान से लेकर जमीन मुहैया कराने में योगदान देकर राम भक्ति की अपनी पुरानी परंपरा को जीवंत कर दिया।
कथा स्थल पंडाल के निर्माण की जिम्मेदारी संयुक्त राज्य अमेरिका की कम्पनी मेटालिका को दी गयी। अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त इस विशाल पंडाल में आराम से बैठकर एक लाख श्रद्धालु रामकथा का आनंद ले रहे हैं। इस पंडाल के निमार्ण में जर्मनी की कम्पनी व्योम और दुबई की कम्पनी हैंन्ज ने भी तकनीकी सहयोग दिया है। आयोजन स्थल पर कई लोग ऐसे मिल जाते हैं, जो दावा करते हैं कि शहर से दूर प्रकृति की गोद में होने वाला यह आयोजन भारत ही नहीं, बल्कि दुनियां का पहला आयोजन है। इतने बड़े क्षेत्र में खड़ी अस्थायी व्यवस्था के बल पर इस प्रकार का आयोजन अब तक कहीं नहीं हुआ है। इतने बड़े साउन्ड सिस्टम का सर्वर दुनियां का पहला उदाहरण है। बीस लाख लोगों के लिए आॅर्गेनिक महाप्रसाद व लंगर की व्यवस्था आठ बड़े पांडोलों में की गई है। सारे व्यंजन देशी गाय के घी से तैयार किए गए हैं। इसका एक उद्देश्य यह भी कि हमारे लोग गो पालन और गो सेवा के महत्व को समझें।
गंगा के तट पर पांच सितारा होटलों की सुंविधाओं से युक्त स्विश काटेजों की लंबी कतार यह अहसास करा रहा है कि वनवासी श्रीराम के जीवन का अनुभव लेने के लिए देश-विदेश से साधन संपन्न लोग यहां पहुंचे हैं। इन काटेज में देश दुनियां के उद्योग पतियो के साथ ही साहित्य साधक, कला साधक व समाजसेवी भी निवास कर रहे हैं। आयोजन समिती के प्रमुख के रूप महराज कर्ण सिंह का यहां आना विशेष अर्थ रखता है। कर्ण सिंह भारतीय संस्कृति व अध्यात्म के ज्ञाता माने जाते हैं। दिनकर की जन्मभूमि पर यह भव्य आयोजन कई मायने में ऐतिहासिक सिद्ध हो रहा है। इस आयोजन के सहसंयोजक सुभाष ईश्वर कंगन कहते हैं कि इस आयोजन में भारतीय ग्राम्य जीवन की ईमानदारी, शालीनता, समाजिक समरसता का संस्कार पग-पग पर दिख रहा है। इस पुनित आयोजन को यहां के सभी लोग अपने घर का आयोजन मान रहे हैं। यही इसकी सफलता का राज है। इस पूरे क्षेत्र में महान राम भक्त केवट के वंशजों की संख्या अधिक है। उन लोगों के दिव्य भाव व सहयोग से इस आयोजन में चार चांद लग गए। समाजिक सांस्कृतिक विरासत को सहेजकर रखने की परंपरा इस आयोजन के माध्यम से मुखरित हुई। मां गांगा की पावन धारा के सानिध्य में इस अनोखे आयोजन का साक्षी बनने वालों के हृदय में जो भाव उमड़-घुमड़ रहे थे वे इस आयोजन के महत्व को बढ़ा रहे थे।

सिमरिया महान मगध व सांस्कृतिक क्षेत्र मिथिला की संगम स्थली पर बसा है। साहित्य के सूर्य दिनकर की जन्मभूमि पर इस आयोजन के माध्यम से बिहार का गौरवशाली अतीत फिर से जागृत हो उठा है। यह साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजन है। इसीलिए इसे साहित्य महाकुम्भ भी कहा गया। लेकिन, इस आयोजन की सबसे बडी बात यह है कि प्रत्येक आयोजन के लिए उसकी प्रकृति के अनुकूल मंच की भी यहां व्यवस्था की गयी है। रामकथा के लिए निर्मित भव्य मंच पर सादगी और आध्यात्मिक पवित्रता लोगों को आकर्षित करती है। वहीं सांस्कृतिक व साहित्यक मंच को उसकी प्रकृति के अनुकूल आधुनिक संसाधनों से सजाया गया है। आयोजन स्थल पर बेगूसराय व पटना जिले के गांव-गांव से झुंड में आए लोग दिख जाते हैं। उनके बीच देश-विदेश से आए लोग भी मिल जाते हैं। बेगूसराय के लोग बाहरे से आने वालों के प्रति अतिथि का भाव स्पष्ट दिख जाता है।
सिमरिया को बिहार का प्रयागराज कहा जाता है। प्रयागराज में महाप्राण निराल की ज्योति जगमगाती थी तो सिमरिया राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की किरणों से जगमगाता रहा है। सिमरिया में भी पिछले वर्ष से कुंभ का आयोजन शुरू हो गया है। लेकिन, इस बार यहां आयोजित साहित्य महाकुंभ पूरे विश्व को अद्भुत संदेश देने में सफल रहा। 1 से 9 दिसंबर तक चलने वाले इस समारोह में पूज्य मोरारी बापू ने रामकथा के माध्यम से समाज के समक्ष खड़ी समस्याओं के निदान का मार्ग दिखाया है। साहित्य महाकुंभ में विश्व के 167 देशों के एनआरआई साहित्यकार, पत्रकार और धर्मावलंबी शामिल हो रहे हैं। यहां से भारत के अध्यात्म, संस्कृति व जीवन दर्शन का संदेश लेकर ये भारतीय संस्कृति के दूत बनेंगे।
सिमरिया राम कथा सह साहित्य महाकुंभ आयोजन समिति का अध्यक्ष पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. कर्ण सिंह को बनाया गया है। सिमरिया में राम कथा व साहित्य महाकुंभ का बीजारोपण कृष्ण की लीला की साक्षी राजगृह में ही हो गया था। करीब तीन वर्ष पूर्व बिहार के राजगीर के पास स्थित वीरायतन में जैन मतावलम्बियों ने मोरारी बापू की रामकथा का आयोजन किया था। यही मोरारी बापू ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मस्थली सिमरिया में रामकथा के साथ साहित्य महाकुंभ करने की इच्छा प्रकट की थी। इस विराट आयोजन का सौभाग्य बेगूसराय के मूल निवासी उद्योगपति बिपिन ईश्वर को मिला। मोरारी बापू से आदेश मिलने के तत्काल बाद ही वे सिमरिया में राम कथा व साहित्य महाकुंभ के आयोजन की तैयारी में तन्मयता से जुट गए थे। लगभग तीन वर्षों के सतत प्रयास के बाद इस अद्वितीय व विश्व प्रसिद्ध आयोजन का सपना साकार हुआ।
सिमरिया में लोगों के ठहरने की ऐसी व्यस्था की गयी है जिसमें गंगा के तट पर रहने वालों के आनंदपूर्ण जीवन का अहसास किया जा सके। इसके लिए टेंट सिटी का निर्माण कराया गया है। वैसे तो जापान और कोरिया की कंपनी ने बालू की रेत पर सुविधाओं से युक्त इस टेंट सिटी के निर्माण किया है। लेकिन, इस टेेंट से बने घर में ग्रामीण परिवेश की महक है। एक घेरे में टेंट सिटी बसाया गया है जहां सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध है। पूरा परिसर साफ-सुथरा मानो स्वच्छता का संदेश दे रहा हो। रामकथा और साहित्य महाकुंभ में नौ दिनों में करीब 1 करोड़ लोगों के पहुंचने का अनुमान है। आयोजकों ने इतने ही लोगों के लिए प्रसाद की भी व्यवस्था की है। गुजरात व अन्य स्थानों से 56 टन घी लाया गया है। प्रसाद जैविक खेती से उत्पादित अनाज से तैयार हो रहा है। प्रसाद के लिए अन्न व सब्जी की आपूर्ति के लिए पिछले वर्षों से ही मोतीहारी और समस्तीपुर में सैकड़ों एकड़ भूमि में जैविक खेती करायी गयी। इस प्रकार यह आयोजन अपने मार्ग से भटकी भारतीय कृषि को रास्ता दिखा रहा है। किसानों मंे जैविक खेती के प्रति आत्मविश्वास जागृत करने का भी यह प्रयास है। साहित्य महाकुंभ में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैन और बौद्ध सभी मतों के संत और अनुयायी शामिल हुए हैं। सिमरिया में उत्तर वाहिनी गंगा के समक्ष रामकथा का शुभारंभ करते हुए मोरारी बापू ने कहा कि इस कथा का नाम मानस आदि कवि से होगा। कथा के उत्स को निर्देशित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि यह रामकथा लोगों का, लोगों के लिए, लोगों के द्वारा आयोजित है। यह केवल और केवल रामकथा है इसमें कोई राजनीति, फलानीति नहीं है। लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास की परंपरा को याद करते हुए कहा कि यह कथा केवल स्वांतः सुखाय के लिए है। आप सब कथा में आकर भजन और भोजन करें। बिहार के राजगीर, पटना, सीतामढ़ी की कथाओं में एक मनोरथ उभरता रहा और योग बनता रहा कि राष्ट्रकवि की भूमि पर स्वांतः सुखाय अनुष्ठान किया जाय। बुद्ध, महावीर की इस भूमि पर जहां बलवंत, शीलवन्त और कलवन्त कवि दिनकर पैदा हुए, उस भूमि पर रामकथा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज यह महा मनोरथ यजमान बिपिन के माध्यम से पूर्ण हो रहा है। शब्दों के बाजीगर बापू ने कहा बिपिन का नाम निकाल भी दें तो यह महामनोरथ ईश्वर की कृपा से पूर्ण हो रहा है। अर्थात ईश्वर परिवार द्वारा यह अवसर सबको मिल पाया। दिनकर परिवार के प्रति अपनी भवना व्यक्त करते हुए बापू ने उद्घाटन कार्यक्रम में बदलाव का आग्रह किया। बापू ने कहा कि राम कथा का उद्घाटन दिनकर जी के पुत्र या पौत्र करें तो बेहतर होगा। आनन-फानन में दिनकर जी के पुत्र केदारनाथ सिंह, पुत्रवधू कल्पना सिंह और पौत्र ऋतिक उदयन को बापू की कुटिया पर बुलाया गया।
बापू की इच्छानुसार इस महाकुंभ का उद्धाटन दिनकर के पुत्र केदार सिंह ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा ‘कोई-कोई लादे कांसा पीतल, कोई-कोई लौंग सुपारी। हम तो लादे नाम धनी सत्य नाम व्यापारी’। इस दोहे से अपनी बात शुरू करते हुए उन्होंने कहा कि यह मेरे पूर्वजन्मों के कर्मो का फल था कि मैं दिनकर जी का पुत्र हूं। दूसरा कोई अन्य पुण्यकर्म होगा, जिसके कारण मैं बापू के स्नेह का पात्र बन सका। मैं बापू का स्वागत करता हूं। भव्य मंच पर मंत्रोचार के बाद भजन के साथ मोरारी बापू की कथा शुरू हुई। प्रथम दिन की कथा हनुमान जी के संरक्षण में श्रीगणेश जी को सर्मित करने के साथ विराम हुई। बापू का स्वागत दलित बच्चों के हाथों हुआ तो कथा का अंत भी दलित बच्चों द्वारा की गई आरती से हुआ।

उद्घाटन सत्र की शुरुआत बापू को पाग पहनाने और मंगलमय दिन आज हे, पाहून छथि आयल! धनि-धनि जागल भाग हे, मन कमल फुलायल !! धुन पर मैथिली गायिका रंजना झा ने अपनी टीम के साथ की। देश और विदेशों से आए मेहमानों और साहित्य महाकुंभ में आने वाले बड़े-छोटे हर व्यक्ति का तिलक लगाकार जगह-जगह स्वागत किया जा रहा था। बिहार में इस तरह का यह पहला आयोजन है। 1-9 दिसंबर तक रामकथा और 2-8 दिसंबर तक विश्वभर से पधारे साहित्यकारों, कलाकारों और सांस्कृितककर्मियों का विचार मंथन। आयोजन की योजना जिस श्रेष्ठ विचार से बनी है उसी श्रेष्ठता की व्यवस्थाएं भी दिख रही हैं। बापू के लिए 50 एकड़ भूमि पर निर्मित कुटिया से कार्यक्रम स्थल तक की दूरी 2 किलोमीटर है। कच्चा रास्ते से होते हुए बापू कथा के लिए निर्मित करीब 4 लाख वर्ग फुट में फैले पंडाल तक पहुंचते हैं। पूरे रास्ते पर ग्रीन कारपेट बिछाया गया है। पहले तो मात्र तीन सो एकड़ भूमि पर इस आयोजन की योजना बनी थी। लेकिन, बात जब आगे बढ़ी तब लगभग 600 एकड़ भूमि पर यह कथा नगरी बस गयी।
कई देशों से लोग यहां पधारे हैं। ऐसे अतिथियों की सुविधा के लिए 850 स्विस कॉटेज का निर्माण कराया गया है। यहां 4 लाख लोग रोज भोजन करेंगे। 10 स्थानों पर 32 सौ फीट लंबा कैंटीन बनाया गया है। इसके साथ ही 500 बड़ी बसें भी यहां विभिन्न मार्ग पर चल रहे हैं, ताकि कथा स्थल पर आने-जाने वालों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। बोतल बंद पानी जल ब्राण्ड का पानी हिमाचल से मंगाया गया है।
इस पूरी व्यवस्था को ठीक से चलाने के लिए 2 हजार कर्मचारी रात-दिन काम कर रहे हैं। कथा स्थल पर सुरक्षा की पूरी गारंटी है। ड्रोन व 200 सीसीटीवी कैमरों से सुरक्षा व्यवस्था पर नजर रखी जा रही है। इसके साथ ही महत्वपूर्ण स्थनों पर 100 विशेष प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए हैं। रामकथा पंडाल के अलावा 50 हजार वर्गफीट का पंडाल गोष्ठी के लिए बनाया गया है।
रामकथा सह साहित्य महाकुंभ के तीसरे दिन के बाद से कथावाचक पूज्य मोरारी बापू को सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगीं। कथा में सिमरिया की पावन धरती पर अविरल बहती गंगा की धारा के साथ रामनाम की अविरल बह रही धारा की चर्चा अक्सर हो जाती है। तीसरे दिन की कथा के आरम्भ में पूज्य बापू ने स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को उनके जन्मदिवस पर सहृदय नमन किया। पूज्य बापू ने बिहार की सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक, शैक्षणिक व्यवस्था से चर्चा करते हुए कहा कि यह प्रदेश न केवल अध्यात्म से परिपूर्ण है, बल्कि यहां की हर विधा अपने आप में एक मिसाल है।.राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की चर्चा करते हुए पूज्य बापू ने कहा कि दिनकर सरकार और जनता दोनों के करीब रहे। उन्हें ‘आजादी कवि’ की संज्ञा से विभूषित करते हुऐ उन्होंने कहा कि दिनकर संघर्ष व समर्पण की प्रतिमूर्ति रहे इसलिए आज भी उनका साहित्य आजाद फिजाओं में घुला आम जनमानस की स्मृति तक पहुंचा हुआ है। उन्होंने कहा कि आजादी के पूर्व महात्मा गांधी ने जिस सामाजिक परिवर्तन को एक नया स्वरूप दिया उसी को साहित्य के माध्यम से दिनकर ने समृद्ध किया और उन्होंने साहित्य को जीवन का आधार बनाकर जीवन के विभिन्न आयामों को एक साथ प्रस्तुत कर अमर हो गए। आयोजन समिति के संयोजक सुभाष कुमार कंगन ने बताया कि रामकथा में देश के विभिन्न भागों से आये हुए श्रद्धालुओं एवं नित्य रामकथा का श्रवण करने वाले लोगों को सर्वश्रेष्ठ सुविधा के साथ समुचित महाप्रसाद के वितरण की मुक्कमल व्यवस्था की गई है।

साहित्य महाकुंभ

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि पर उनकी स्मृति में नौ दिवसीय रामकथा सह साहित्य महाकुंभ में शामिल होने के लिए मोरारी बापू का जब बेगूसराय की धरती पर आगमन हुआ तब सूर्य अपने मार्तण्ड रूप में थे। दिन के मध्य वेला में यानी 12 बजे मोरारी बापू का दिनकर की जन्मभूमि आना एक सुखद संयोग है। इसके बाद बापू ने सर्वप्रथम साहित्य के सूर्य की जन्मस्थली सिमरिया गांव जाकर उनके पैतृक घर को नमन किया। फिर मोक्षदायिनी मां गंगा में स्नान कर बापू अपनी कुटिया में विश्राम करने चले गए। बापू अपने तय समयानुसार कथा पंडाल पहुंच गए। बापू के आयोजन स्थल में पहुंचते ही जय सियाराम जय सियाराम के उच्चारणों से सम्पूर्ण परिसर गूंज उठा। बिंद जाति के 15 लड़के लड़कियों द्वारा बापू पर पुष्पवर्षा कर उनका स्वागत किया गया। इसके बाद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के पुत्र केदारनाथ सिंह उनकी धर्मपत्नी व पुत्र के साथ यजमान बिपिन ईश्वर द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। दीप प्रज्ज्वलन के बाद साथ कथा का औपचारिक शुभारंभ हो गया।
रामकथा वाचक परमपूज्य मोरारी बापू ने रामकथा प्रारम्भ करने से पहले राष्ट्रकवि दिनकर की भूमि सिमरिया को नमन करते हुए दिनकर को बलवंत शीलवंत व कलवंत बताते हुए कहा कि मैंने पहले सरस्वती की वंदना की और अब गंगा की वंदना के साथ रामकथा को प्रारम्भ कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि लीलायें अभिनय है जिसमें कोई जरूरी नहीं कि पात्र का चरित्र उसके अनुरूप हो लेकिन चरित में यह आवश्यक है कि उसके अनुरूप कथा अभिनय और आचरण हो। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस ‘नाना पुराण निगमागम सम्मत’ एक सर्वस्पर्शी, सर्वग्राही एवं सर्वकल्याणकारी कथा है जिसमे सम्पूर्ण देश की संस्कृति, आचरण एवं मर्यादित जीवनशैली का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि तुलसी का रामायण लोकभाषा लोकभूषा लोकआचरण का सर्वोत्तम स्वानतः सुखाय समग्र ग्रंथ है। रामचरितमानस देश के आखिरी व्यक्ति से लेकर सर्वशक्तिमान कल्याणकारी राजा तक की कथा है। इसीलिए रामकथा परमकल्याणकारी है।