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बंद को मौखिक समर्थन दे दिल्ली उड़े तेजस्वी

पटना : कृषि कानून के खिलाफ विभिन्न किसान संगठनों के आह्वान पर आयोजित आज के भारत बन्द को राजद ने सफल बताया है। राजद ने इसे अभूतपूर्व और ऐतिहासिक बताया। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने इसको लेकर बिहारवासियों को बधाई भी दे दिया।

लेकिन, राजद के सर्वेसर्वा तेजस्वी यादव आज के सीन में कहीं नहीं दिखाए दिए। जबकि, तेजस्वी ने दो दिन पहले ट्वीट कर कहा था कि डरपोक और बंधक मुख्यमंत्री की अगुवाई में चल रही बिहार की कायर और निक्कमी सरकार ने किसानों के पक्ष में आवाज उठाने के जुर्म में हम पर FIR दर्ज की है। दम है तो गिरफ़्तार करो,अगर नहीं करोगे तो इंतज़ार बाद स्वयं गिरफ़्तारी दूँगा। किसानों के लिए FIR क्या अगर फाँसी भी देना है तो दे दिजीए।

तेजस्वी ने कहा था कि किसान के बच्चे ही सीमा पर देश की रक्षा करते है और किसान के अन्न से ही देश का पेट भरता है। अगर किसान के बेटे जवान और किसान स्वयं झुक गए तो देश झुक जाएगा। हम हर संघर्ष में दृढ़ता के साथ अन्नदाताओं संग कंधे से कंधा मिलाकर खड़े है। धनदाताओं के पिछलग्गूओं बिना अन्न क्या धन खाओगे? जो व्यक्ति कड़ी मेहनत करने वाले किसान के भले की नहीं सोच सकता वह कभी भी इंसान और इंसानियत में यक़ीन नहीं कर सकता।
किसान समस्त मानव जाति का पालनहार है। जो किसान का नहीं, वह देश का हितैषी नहीं।

बताया जा रहा है कि तेजस्वी इन दिनों दिल्ली में हैं। क्योंकि, 11 दिसंबर को लालू प्रसाद के एक मामले की सुनवाई होने वाली है और उसी मामले को लेकर तेजस्वी दिल्ली में सीनियर वकील से मिलने पहुंचे हैं! यानी बंद को मौखिक समर्थन दे तेजस्वी दिल्ली पहुँच गए हैं।

बंद को लेकर राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसानों के सवाल पर इस प्रकार का भारत बन्द देखा गया, जिसे विभिन्न राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, कर्मचारी और मजदूर संगठनों के साथ हीं विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय समाजिक कार्यकर्ताओं का व्यापक समर्थन मिला और बन्द का असर छोटे-बड़े शहरों से लेकर गांवों के चौक-चौराहे तक दिखाई पड़ा।

राजद प्रवक्ता ने कहा कि यह आन्दोलन मात्र किसानों का आन्दोलन नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर पड़ने वाला है। केन्द्र द्वारा लाये गये कृषि कानून से किसान-मजदूरों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है और जब किसानों का अस्तित्व हीं नहीं रहेगा तो फिर गांवों का अस्तित्व कैसे बचेगा। इसलिए गांवों के अस्तित्व को बचाने के लिए भी हमें किसानों के आन्दोलन के साथ खड़ा होना पड़ेगा।