पं. जसराज की इतनी अनदेखी क्यों? राहत इंदौरी में आखिर मीडिया को क्या दिखा!
स्वत्व डेस्क : अभी हाल में कला और साहित्य में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले दो शख्सियतों कर निधन हुआ है। एक मशहूर शायर राहत इंदौरी और दूसरे भारतीय शास्त्रीय गायन की आत्मा पं. जसराज। लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया ने जिस अंदाज में अपना हिडन एजेंडा उनकी खबरों और कवरेज में पेश किया, वह काफी चौंकाने वाला है। जिस राहत इंदौरी ने भारत के पक्ष—विपक्ष सभी के चहेते रहे दिवंगत पीएम अटल बिहारी वाजपेयी पर उन्हें अपनी शायरी में परोक्ष रूप से अपनानित करने वाले शेर कहे, उन्हें मीडिया के एक खास वर्ग ने फ्रंट पेट पर मास्टहेड बनाया। वहीं पं जसराज के निधन पर उसी मीडिया हाउस ने उन्हें 6 ठे पेज पर भी बमुश्किल जगह दी वह भी काफी नीचे।
” द टाइम्स आफ इंडिया ” ने राहत के निधन की खबर 12 अगस्त 2020 को अखबार के मास्टहेड पर लगाई। दूसरी तरफ भारतीय शास्रीय संगीत के शिखर पुरुष पद्म विभूषण पंडित जसराज का निधन उसी टाइम्स (18 अगस्त, ’20) के लिए छठे पेज पर सबसे नीचे छपने लायक खबर थी।
जसराज को अटलजी ने “रसराज” कहा था और 2006 में नासा ने उनके नाम पर एक नये नक्षत्र का नामकरण किया था। संगीत के प्रति जसराज का समर्पण, उनके योगदान और पूरी दुनिया में उनको मिले सम्मान के आगे इंदौरी की कोई बिसात नहीं थी। लेकिन शायद ‘टाइम्स’के लिए इंदौरी का भाजपा का मुहँफट विरोधी होना और एक खास समुदाय और विचारधारा का होना ही बड़ी बात थी।
कोई अखबार अपने नाम में ‘इंडिया’ या ‘हिंदू’ लिखने भर से हमारी राष्ट्रीय चेतना का प्रतिनिधि नहीं हो जाता। बल्कि ऐसे नामों की ओट में भारत विरोधी एजेंडा चलाना आसान होता है। वैसे, 1838 में अंग्रेजों ने अपना एजेंडा चलाने के लिए ही द टाइम्स आफ इंडिया का प्रकाशन शुरू किया था। आजादी के बाद एक खास तबीयत वाले लोगों ने अंग्रेजों की जगह ले ली और हम इसके हिंदुस्तानी हो जाने का भ्रम पाले रखे।
हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर होटल चलाने वाले सभी राम-भक्त थोड़ी होते हैं। अखबार हो या होटल, अब सब धंधा है। टाइम्स ने ही प्रिंटलाइन में पहली बार खुद को ‘प्राडक्ट’ घोषित किया था। भारत और भारतीयता के खिलाफ इस तरह एजेंडा चलाने वालों को ठीक से पहचानने और इनकी मंशा से सावधान रहने की जरूरत है।