पटना: कोरोना संक्रमण में प्रदेश के बड़े अस्पताल का काला चेहरा सामने आया है। ऐसे बहुत से परिवार हैं, जो निजी अस्पतालों की मनमानी और तानाशाही का शिकार हो रहे हैं। बीमारी दूर करने वाले अस्पताल भी अब मरीजों के जिन्दगी पर ग्रहण लगा रहे हैं। इलाज के नाम कई दिनों तक मरीजों को बंधक बनाया जाता है।
ताजा मामला है आईजीएमएस (IGIMS) का जहाँ अस्पताल प्रबंधन पर इलाज के नाम पर मरीजों को बंधक बनाने का आरोप लगाया गया है। भागलपुर के कहलगांव निवासी अनिकेत पांडेय ने बताय कि उनके पिता साहेब दयाल पांडेय को किडनी से संबंधित समस्या थी। स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद परिवारवालों ने उनको लेकर IGIMS पहुंचे। इलाज के लिए भर्ती करने के बाद कोरोना जांच के नाम पर अस्पताल प्रशासन ने 3 दिनों तक अँधेरे में रखा।
अनिकेत ने बताया कि बार-बार आग्रह के बाद भी मरीज को डायलिसिस पर नहीं रखा गया। जब स्थिति नाजुक होने लगी तो IGIMS ने एम्स रेफर कर दिया। जहाँ किडनी से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए डयलिसिस की व्यवस्था ही नहीं है। इसके बाद एम्स ने मरीज साहेब दयाल पांडेय को एनएमसीएच रेफर कर दिया। जहाँ आज सुबह उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें कोरोना संक्रमित बताया गया।
मरीज के परिजन ने बताया कि मृत्यु होने के बाद भी उन्हें जानकारी नहीं दी गई। इस बारे में जब अस्पातल कर्मियों से सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि आपके द्वारा जो नंबर उपलब्ध कराया गया है उसपे संपर्क नहीं हो रहा है। इस बारे में अनिकेत ने बताया कि ऐसा नहीं है, अस्पताल इस मामले में बदतमीजी कर रहा है।
अनिकेत ने IGIMS और NMCH के निदेशक पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश के कुछ नामी अस्पताल स्वास्थ्य विभाग से जुड़े नेताओं और अधिकारियों के फ़ोन को नोटिस नहीं लेते हैं। इमरजेंसी रहने पर भी राजधानी के बड़े अस्पताल नोटिस नहीं लेते हैं। हालांकि यह चर्चा आम है कि प्रदेश के अधिकांश अस्पताल स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों को नोटिस नहीं लेते हैं। नोटिस लेते हैं तो सिर्फ आलाकमान के कार्यालय को !
बता दें कि कुछ दिनों पहले जीपी के प्रमुख सहयोगी रहे हरिशंकर शर्मा को IGIMS में भर्ती कराया गया था। जहाँ उनका इलाज ठीक तरीके से नहीं हो पा रहा था। स्थिति बिगड़ने के बाद उन्हें पारस में भर्ती कराया गया। जहाँ काफी खर्च के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका।