कोरोनावायरस को लेकर उम्मीद जगा रहे ये शोध, जरुर पढ़ें
कोविड-19 को लेकर पूरी दुनिया में व्यापक रिसर्च हो रहे हैं, वायरस के स्ट्रक्चर, व्यवहार और संभावित जोखिम से लेकर टीके के विकास में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और चिकित्साविद जुटे हैं।
कोविड 19 जहां अब लगभग 180 देशों में पैर प्रसार चुका है और लगभग 7.3 लाख लोगों को इन्फेक्टेड कर चुका है, वही 34 हजार लोग दम तोड़ चुके हैं। पर इस भयावह परिस्थिति में भी कुछ ख़बर और शोध उम्मीद की किरण का प्रसार कर रहे हैं.
एमआईटी के एक रिसर्च पेपर में निम्नलिखित मुख्य बिंदु बताए गए हैं:
कोविड-19 का अधिकतम प्रसार उन देशों में है जहां औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से नीचे है। इनका कहना है कि 2019-nCoV के प्रसार के मौजूदा आंकड़ों के आधार पर हम अनुमान लगाते हैं कि उष्णकटिबंधीय देशों में इससे कम प्रसारित होने की संख्या गर्म आर्द्र परिस्थितियों के कारण हो सकती है, जिसके तहत वायरस का प्रसार धीमा हो सकता है जैसा कि अन्य वायरस के लिए देखा गया है।
इस रिसर्च में बताया जा रहा है कि 90 प्रतिशत ट्रांसमिशन उन क्षेत्रों में हुआ है जहां तापमान 3 से 13 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा है। साथ ही इन क्षेत्रों में आर्द्रता 4 से 9 ग्राम पर क्यूबिक मीटर है। 18 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ताप और 9 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा आर्द्रता वाले क्षेत्रों में इस वायरस का केस 6 % से भी कम रहा है.
एशियन देशों में मानसून के दौरान आर्द्रता 10 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा होने पर ट्रांसमिशन दर धीमा होगा।
यूएसए में इस संदर्भ में उत्तर दक्षिण अंतराल स्पष्ट दिख रहा है। जहां कम ताप वाले उत्तरी क्षेत्र में दक्षिण के अपेक्षाकृत गर्म क्षेत्रों से ज्यादा केसेज़ हैं। टेक्सास, न्यू मैक्सिको और एरिज़ोना में मामले अपेक्षाकृत बहुत कम हैं।
हालांकि इनका मानना है कि इसका यह निष्कर्ष कत्तई यह नहीं है की गर्म क्षेत्रों में इसका प्रसार नहीं ही होगा, ये 22 मार्च तक उपलब्ध सांख्यिकीय डेटा को लेकर निष्कर्ष दिया गया है, जिसमें आगे बदलाव होने की संभावना है। अभी यह पूरी तरह क्लिनिकल प्रूव्ड नहीं है।
भारत के जाने माने अंतरराष्ट्रीय विख्यात मेडिकल एक्सपर्ट पद्मश्री डॉक्टर डी नागेश्वर रेड्डी ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए अपने कल के साक्षात्कार में एमआईटी के इस अनुमान को आधार बनाया है।
नागेश्वर रेड्डी ने बताया कि इस वायरस की सीक्वेंशिंग चार देशों में हुई- इटली, अमेरिका, चीन और भारत मे। भारत मे इस जीन की सीक्वेंशिंग इटली से अलग है। भारत मे इसकी सिंगल म्यूटेशन पाया गया है, जबकि इटली में तीन तीन म्यूटेशन; जिसके कारण इटली की स्थिति बेहद चिंताजनक हो गयी। हालांकि उन्होंने इटली में इसके भयानक प्रसार के पीछे 70 वर्ष से अधिक लोगो मे इसका फैलाव, स्मोकिंग, अल्कोहलिज़्म, डायबिटीज़ आदि भी कारक रहे। हालांकि अभी स्टडी और होना अपेक्षित है।
नागेश्वर रेड्डी ने यह भी बताया कि भारत के पास दो विकल्प था- कम्प्लीट लॉकडाउन और दूसरा युद्ध स्तर पर दक्षिण कोरिया की तरह टेस्ट करवाना, दक्षिण कोरिया अपनी ‘बाली बाली'(जल्दी जल्दी) तकनीक से यह सम्भव कर पाया। दूसरा विकल्प 1 अरब 30 करोड़ जनसंख्या वाले हमारे देश मे सम्भव नहीं था, तो लॉकडाउन बेहतर विकल्प था, हालांकि इसका आर्थिक दुष्प्रभाव देश को झेलना पड़ेगा।
लॉकडाउन समाप्त करने के बाद हमे क्या करना होगा, इस प्रश्न के उत्तर में राव बताते हैं कि उसके बाद हमे बैलेंस्ड अप्रोच अपनाना होगा, आगे टेस्ट किट और सस्ते हो जाएंगे और उपलब्धता भी बढ़ जाएगी तो टेस्ट का आयोजन भी होता रहेगा और सेलेक्टिव आइसोलेशन प्रक्रिया भी चलती रहनी चाहिए, जिसमे स्वस्थ युवा पीढ़ी को छूट दी जाए और उम्रदराज और बीमार लोगो का एक्सटेंसिव जांच हो।
रेड्डी बताते हैं कि हमे इटली, स्पेन आदि की खबरों को देखकर पैनिक होने की जरूरत नहीं है, दूसरी बात की 10 साल से छोटे बच्चों में तो इसका प्रभाव न्यूनतम है।
ब्रिटिश मनोचिकित्सक संघ ने एक रिसर्च पेपर में बताया कि लॉकडाउन और आइसोलेशन बढ़ने पर अल्कोहलिज़्म, चाइल्ड अब्यूज, सुसाइड आदि की प्रवृति बढ़ सकती है, इन चीजों पर हमें कंट्रोल करना होगा।
रेड्डी का भी मानना है कि सबसे जरूरी है मानसिक रूप से फिट होना। उनका मानना है कि मानसिक रूप से मजबूत लोगों की इम्यूनिटी भी बेहतर होती है।
टीवी और इंटरनेट पर लोगो के लगातार मरने और प्रभावित होने के खबर ने लोगो मे भय, हताशा और मनोविदलन जैसी स्थिति भी पैदा किया है, ऐसे में जरूरी है कि हम सकारात्मक खबरों की ओर भी ध्यान दें। बहुत कठिन समय है और ऐसे में भय और हताशा में भारत मे सुसाइड के भी केस आने लगे हैं।
हम पश्चिमी देश नहीं है कि हमारे पास होम कॉउंसलिंग की बड़ी टीम है, हम अपने स्तर से पॉजिटिव संदेशों का प्रसार कर पब्लिक पैनिक कम कर सकते हैं।
रेड्डी का मानना है कि अगले दो-तीन महीने में इसकी दवा और अगले 6 महीने में एक प्रॉपर वैक्सीन हम ईजाद कर लेंगे। बहुत पैनिक होने की आश्यकता नहीं है।
2013 में रसायन का नोबेल पाने वाले स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के रसायनविद माइकल लेविट का मानना है कि यह महामारी जल्द खत्म हो जाएगी क्योकि हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, जो कि इसके चेन को तोड़ने में बेहद अहम है।
परसो द लॉस एंजिलिस टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में लेविट कहा, “अभी हमारे लिए सबसे जरूरी घबराहट को काबू करना है. सब कुछ ठीक हो जाएगा.” लेविट ने मीडिया को दहशत फैलाने हेतु जिम्मेदार भी बताया। उनका मानना है कि मौतों की संख्या दर अब धीरे धीरे कम हो जाएगी।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के रॉबर्ट एच. स्मेरलिंग नोवल कोरोना वायरस के बारे में पांच अच्छी बातें बताते हैं. पहला की कोरोना वायरस परिवार के सार्स और मर्स जो कि क्रमशः 2003 और 2012 में आइडेंटिफाइड हुए थे, में मृत्यु दर जहां 10 % और 35% रहा है वही कोविड 19 में यह दर 0.7% से 4% तक है। दूसरा, बच्चे और युवा इस रोग से कम प्रभावित हो रहे हैं, पर बच्चे इस वायरस को ढोने और प्रसार करने में भाग ले रहे हैं।
तीसरा, नए केस बढ़ने की दर कम है, चौथा, इंटरनेट से जुड़ाव बना हुआ है, जिसमे खासकर शहरी क्षेत्रों में शिक्षा, जरूरत की शॉपिंग, टेली मेडिसिन आदि कंटीन्यू है। पांचवा, भविष्य के विश्वव्यापी महामारी से लड़ने के लिए क्षमता विकास, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक समस्याओं को लेकर ढेर सारे सामुदायिक और स्वयमसेवी संगठनों का अभ्युदय आदि।
बहरहाल, ‘जलजला आने वाला है’, ‘करोड़ो लोग मरने वाले हैं’, ‘इंतजार करिए’, ‘सब खत्म होने वाला है’ जैसी खबरों को ‘कीन्ह दूरी ते दंड प्रणामा’ करें।
लॉकडाउन का पूर्णतः पालन करें, भारत मे लॉकडाउन के परिणाम आने शुरू हो गए हैं, जहां इसके बिना केसेज़ 3 दिन पर दुगुने होते, अभी 5 दिन पर दुगुने हुए हैं।
और अंत में, इस महामारी पर हम विजय तो प्राप्त कर लेंगे, पर ये बड़ी सीख देकर जाएगी। भारतीय चिकित्सा, मनोविज्ञान, प्रशासनिक सँगठनात्मकता, प्रकृतिवाद, स्वच्छता, व्यावहारिक विज्ञान, श्रम क्षेत्रक मूल्यों की दृष्टि से बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है, इंतजार करें।
- डॉ. अभिनव मिश्र
[लेखक BHU के पूर्व छात्र हैं व शंखनाद सेन्टर फाॅर स्टडी रिसर्च एंड डायलॉग ,सीवान {बिहार} के मानद सदस्य हैं ]