पटना : बिहार में भाजपा-जदयू की जोड़ी सुपरहिट रही है। जब-जब दोनों दल साथ मिल कर चुनावी रण में आये, तो कई जातीय और राजनीतिक गुणा—गणित फेल हो गए और बड़े-बड़े दलों को मुंह की खानी पड़ी। कहां फायदा, कहां नुकसान, इस दृष्टि से 2019 का चुनाव जदयू के लिए कई मायनों में आंख खोलने वाला भी रहा। यह एनडीए में जाने का ही फायदा रहा कि जहां बिहार में जदयू ने बड़ी बढ़त बनाई वहीं अन्य राज्यों में भी उसके विस्तार के दरवाजे खुले। एनडीए में जाने के जदयू के इस प्रयोग का अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी फायदा मिला जहां पहली बार विधानसभा में पार्टी के सात सदस्यों ने चुनाव जीतकर उत्तर—पूर्व में जदयू का झंडा बुलंद कर दिया।
अरुणाचल में जदयू को विस में मिली 7 सीटें
दरअसल, लोकसभा चुनाव के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी संपन्न हुए। विधानसभा चुनाव में एनडीए के दोनों घटक दल भाजपा और जदयू ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे। राज्य की 57 विधानसभा सीटों में से 38 सीटें भाजपा को तो वहीं 7 सीटें जदयू को मिली। जदयू यहां से पहली बार चुनावी मैदान में उतरी और पहले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से भी 3 सीटें अधिक जीतकर दूसरी सबसे बड़ी वोट प्रतिशत वाली पार्टी बन गयी। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने हालांकि इशारों-इशारों में भाजपा के साथ अरुणाचल प्रदेश में भी गठबंधन के संकेत दिए हैं। पर अभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। बहरहाल, जदयू बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव में हिस्सा ले रही है।
राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में बढ़े कदम
जाहिर है जदयू का विस्तारीकरण पार्टी को क्षेत्रीय पार्टी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की दिशा में बढ़ रहा है। इसमें एनडीए में उसका होना, काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने कुछ दिनों पहले ऐलान भी किया था कि पार्टी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ेगी, खास कर उतर-पूर्वी राज्यों में।
2005 से हिट भाजपा-जदयू की जोड़ी
मालूम हो कि 2005 में भाजपा और जदयू ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में एकदूसरे का हाथ थामा और बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार बनी जिसके मुखिया नीतीश कुमार को बनाया गया। इसके बाद से बिहार में जितने भी चुनाव हुए दोनों साथ ही आये और हर बार जुगलबंदी का लाभ मिलता रहा। 2009 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 32 सीटें मिली जिसमें 20 पर जदयू तो 12 पर भाजपा के उम्मीदवार जीते। वहीं 2005 के बाद 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा-जदयू की जोड़ी बिहार में एनडीए की सरकार बनाने में सफल रही।
कांग्रेस—राजद वाले यूपीए में शामिल होने का नुकसान
हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में आपसी विवाद के कारण दोनों ही पार्टियां अलग लड़ी और इसका बड़ा नुकसान जदयू को ही हुआ। जदयू ने सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल की। वही हाल भाजपा का 2015 के विधानसभा चुनाव में हुआ। तब जदयू ने राजद और कांग्रेस संग यूपीए का महागठबंधन बनाया और बिहार में भाजपा को दरकिनार कर राजद के साथ सरकार बनाई। हालांकि, नीतीश कुमार राजद संग सामंजस्य नहीं बिठा पाए और 2017 में वापस भाजपा संग एनडीए की सरकार बना ली। 2019 में दोनों दल 17-17 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरे और एनडीए ने 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की जिसमें जदयू की झोली में 16 सीटें आईं।
राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में जदयू की पकड़ भविष्य में एनडीए के लिए अच्छा संकेत है। फिलहाल, बिहार में 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को लोकसभा के अनुरूप ही परिणाम पाने की उम्मीद है। भाजपा-जदयू की जुगलबंदी का जादू विधानसभा में कितना असरदार होता है, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।
सत्यम दुबे