क्या वेंडरों को ‘मार्ट’ में बदल पायेगी स्मार्ट सिटी?

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पटना : स्मार्ट सिटी बन जाए से हमनी के त घाटे हई। अईजा ठेलवा लगईला से कम से कम परिवार भर के खर्चा निकल जाता है। अंटा घाट पर लगईला से जे तनी-मनी हो जाए। यह बातें पटना के गांधी मैदान के ठीक सामने छोले-भटूरे बेचने वाले वेंडर ने बताई। ठेला हटाये जाने के आदेश पर व्यथा जाहिर करते हुए वेंडर कहते हैं कि इस लू में न भगवान् साथ देते हैं, और न ही सरकार। कमाना भी दूभर होता जा रहा है।
एक ओर जहाँ लोकसभा चुनाव की रैलियों में नेताओं के गाने-बाजे और जयकारों में असल आवाजें दब जा रही हैं, वहीँ विकास की परिभाषा और मूल स्वरुप भी सबके लिए सामान्य नहीं रह जाता है। कुछ मुद्दे गौण हों जाते हैं तो कुछ को विकास के लिए जरूरी त्याग का हवाला दे कर हाशिये पर रख दिया जाता है।
दरअसल, पटना को स्मार्ट सिटी बनाये जाने की कवायद शुरू हो चुकी है और इसलिए शहर के विभिन्न बाजारों और चौराहों पर वेंडरों को नोटिस जारी कर दिया गया है कि चुनाव के बाद उन्हें अपने ठेले को वेंडिंग ज़ोन में पार्क करना होगा। नगरपालिका की तरफ से जारी इस अल्टीमेटम के बाद असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत लोगों का हाव-भाव ही बदल गया है। पटना के केंद्र में बसे गाँधी मैदान के कुछ वेंडरों से जब हमने बात की तो उन्होंने दिल के राज खोले।.मोना सिनेमा के पास छोले-भटूरे बेचने वाले भाई साहब कहते हैं कि अब बहुत दिन तक यह ठेला आपको यहाँ नहीं दिखेगा। कारण पूछे जाने पर कहा कि स्मार्ट सिटी बनाने के लिए इस पूरे क्षेत्र को खाली कराया जा रहा है। सारे ठेलेवाले, मोची, छोटी-मोटी दुकानों का तम्बू उखाड़ दिया जायेगा। फिर आप सब कहाँ लगायेंगे ये ठेले। और रोजगार कैसा होगा? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि शहर के मुख्य मार्ग से तकरीबन 200 मीटर अन्दर तक वेंडिंग जोन बनाये जाने की बात कही गई है। फिलहाल, कदमकुआं और गंगा किनारे अंटा घट पर ठेला लगाने का आदेश है। पर मुश्किल ये है कि आमदनी बहुत घट जायेगी। यहां कम से कम दिन में 400-500 रुपए की बचत हों जाती थी, जिससे परिवार का खर्च सुकून से निकल जाता है। अब मुख्य मार्ग से अन्दर कौन घाट की ओर खाने आएगा।

स्मार्ट सिटी से बढ़ेगा निजीकरण

स्मार्ट सिटी बनेगा तो सबका फायदा होगा आपको नहीं लगता, के जवाब में वो कहते हैं कि अरे फायदा तो होगा ही पर लोगों को महंगाई की ज्यादा मार झेलनी पड़ेगी। वो कैसे, की गुत्थी सुलझाते हुए कहते हैं कि देखिये अभी जो लोग गाँधी मैदान किसी कारणवश आते हैं, भूख लगने पर 20-30 रुपये में छोले-भटूरे, पाव-भाजी, इडली या मोमो खा लेते हैं। और प्यास लगने पर 10 रुपये में गन्ना जूस या पानी पी लेते हैं। पर जब हम वेंडरों को यहाँ से हटा दिया जायेगा तो आप देखिएगा यहाँ आपको रिलायंस, केएफसी और अन्य बड़ी कपनियों की एयर-कंडीशनिंग दुकाने होंगी। इन दुकानों में आपको कोई भी चीज 70-80 से कम दामों में नहीं मिलेगी।

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दुकानें हटाई गई तो होगी समस्या

वे बताते हैं कि गाँधी मैदान के आस-पास तकरीबन 500 से ज्यादा ठेले वाले और 100-200 से ज्यादा छोटी दुकानें होंगी। शहर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन दुकानो के माध्यम से अपनी जरूरतों को पूरा करता है। इन दुकानों के यहाँ नहीं होने से कुछ दिनों केर लिए जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। उधोग भवन के आस-पास किताब की दुकानें भी हटाई जायेंगी जिससे कुछ विधार्थियों को भी परेशानी होगी। बड़े दुकान और व्यपारियों को कभी कोई समस्या जगह और सरकार की नहीं होती, जितना कि छोटे और मझोले व्यापारियों को।

खैर, सरकार का आदेश है और पटना को स्मार्ट सिटी बनाना विकास का मानक, तो योजना का क्रियान्वयन तो जरूरी है। हालांकि, बिहार सरकार के शहरी विकास विभाग की ओर से जारी शहर विकास योजना की रिपोर्ट के मुताबिक पटना की आबादी का 25.2 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है। उसमें भी 41.4 प्रतिशत यानी कि 3.8 लाख लोग छोटे और मझोले व्यवसाय में काम कर रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति अन्य राज्यों और अन्य बड़े शहरों भी होती है। जहाँ आबादी का बहुत बड़ा भाग असंगठित क्षेत्र में कामगार है। ऐसे में स्मार्ट सिटी जैसे ड्रीम प्रोजेक्ट को और बेहतर ढंग से लागू करने की जरूरत है।
(The total workers population of PUA is 25.2% of the total population, whereas the male worker population is 3.8 lakhs (41.4%) and that of females is 0.45 (5.8%). This is lesser than the percentage of workers population in Bihar state which is 33%. Industries are spread over the PUA whereas services and institution)

सत्यम दुबे

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