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कर्म व संस्कार पर आधारित है वर्ण व्यव्यस्था : डॉ झा

दरभंगा : संस्कृत विश्वविद्यालय, धर्मशास्त्र विभाग द्वारा वर्णाश्रम विषय पर सोमवार को आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के मुख्य अतिथि बीआर अम्बेडकर विश्वविद्यालय  मुजफ्फरपुर के सेवानिवृत्त संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो0 इंद्रनाथ झा ने कहा कि धर्मशास्त्रों में वर्णित वर्णाश्रम को मनुवादी कहकर जो आलोचनाएं की जाती है वह सर्वथा गलत है। वस्तुतः वर्ण व्यवस्था मनुष्य के कर्मों एवं संस्कारों पर आधारित है। इसमें जन्म व जाति का कोई स्थान नहीं है।

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि मुख्य अतिथि ने बताया की वर्ण एवं जाति में पर्याप्त अंतर है। जाति मूलतः आनुवांशिक है जबकि वर्ण के मामले में कर्म प्रधान है। उन्होंने आगे कहा कि आश्रम व्यव्यस्था धर्म शास्त्रों में की गयी है जिसका तातपर्य विशुद्ध रूप से मानव का व्यक्तिगत विकास है। आश्रमो में व्यक्ति एक निश्चित समय सीमा तक केवल अध्ययन करता है। गृहस्थाश्रम में अध्ययन एवं समाज की संरचना में योगदान करता है। वाण प्रस्थाश्रम में धीरे-धीरे दुनियादारी से विरक्त होता है और सन्याश्रम में मोक्ष प्राप्त करता है।

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डीन प्रो0 शिवाकांत झा की अध्यक्षता में सम्पन्न सेमिनार के संयोजक थे प्रो0 श्रीपति त्रिपाठी। आगत अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो0 पुरेन्द्र वारिक ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो0 दिलीप कुमार झा ने किया। अध्यक्ष प्रो0 झा ने भी वर्णाश्रम की बाबत शास्रीय पक्षों को रखा तथा इसे पूरी तरह से जाति व्यवस्था से अलग माना। वहीं प्रो0 त्रिपाठी की अध्यक्षता में दूसरे सत्र में आयोजित आलेख वाचन में करीब दो दर्जन प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और सभी को उन्होंने प्रमाणपत्र भी दिया।

मौके पर प्रो0 हरेंद्र किशोर झा, प्रो0 विश्राम तिवारी, प्रो0 दयानाथ झा, डॉ घनश्याम मिश्र, डॉ रेणुका सिंहा, डॉ कुणाल कुमार झा, डॉ प्रभाष चन्द्र, डॉ सत्यवान कुमार, डॉ नन्दकिशोर चौधरी, डॉ वरुण कुमार झा, डॉ माया कुमारी, अखिलेश कुमार मिश्र, डॉ शुभेंदु पाठक, डॉ राजेश कुमार, कार्यालय सहायक विनोद कुमार मिश्र समेत कई विद्वतजन उपस्थित थे।

मुरारी ठाकुर

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