मधुबनी : बिहार की मधुबनी लोकसभा सीट बागियों का रणक्षेत्र बन गया है। राजद के बागी अली अशरफ फातमी और कांग्रेस के बागी शकील अहमद खान ने यहां से निर्दलीय और बसपा के बैनर तले खड़े होकर महागठबंधन का कपड़ा उतार दिया है। ऐसे में मधुबनी का सियासी मुकाबला चतुष्कोणीय होकर एनडीए प्रत्याशी को गर्मी में भी ‘फीलगुड’ करवा रहा है। आइए, बिहार की हॉटसीटों की 7वीं कड़ी में आज हम मधुबनी सीट का गुणा—भाग समझते हैं।
मधुबनी लोकसभा सीट का गुणा—भाग
मधुबनी को एक समय में मिथिलांचल का ‘मॉस्को’ कहा जाता था। जब देश में चहुंओर कांग्रेस का पताका लहरा रहा था, तब भी यहां लाल झंडे ने नकेल कसी हुई थी। लेकिन बाद में यह कांग्रेस का गढ़ बन गया। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में मधुबनी एक हाईप्रोफाइल सीट के रूप में उभरा है। इसका कारण महागठबंधन के घटक दलों के बागी उम्मीदवारों का इस सीट से दावा ठोंकना है। एनडीए की ओर से हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव मधुबनी से चुनाव लड़ रहे हैं।
क्यों बागी हुए फातमी और शकील अहमद?
महागठबंधन ने मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को यह सीट दी है और बद्रीनाथ पूर्वे यहां से मैदान में हैं। यही निर्णय कांग्रेस और राजद दोनों के लिए घातक साबित हो रहा है। कांग्रेस के डॉक्टर शकील अहमद जो मधुबनी से दो दफ़ा सांसद रह चुके हैं, उन्होंने पार्टी आलाकमान को निर्दलीय उतर जाने की चेतावनी दे डाली। वहीं राजद के अली अशरफ़ फ़ातमी ने भी राजद को अल्टीमेटम देने के बाद बसपा के बैनर तले चुनावी मैदान में कूदने का मन बना लिया है। दरअसल, कांग्रेस नेता शकील अहमद ने महागठबंधन के उम्मीदवार का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्याशी कमजोर है। वो एनडीए के अशोक कुमार यादव को नहीं रोक पाएगा। इसलिए मधुबनी के लोगों ने आग्रह किया कि वे यहां से चुनाव लड़ें। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को भी सुपौल में जो राजद ने किया, उसी तरह यहां से अपने प्रत्याशी को समर्थन देने की सलाह दे डाली। दरअसल, राजद ने सुपौल लोकसभा सीट पर महागठबंधन की उम्मीदवार रंजीत रंजन के बजाए अपने उम्मीदवार को समर्थन देने का मन बनाया है। और यहीं पर महागठबंधन के अंदर जिच की खबरें और पुख़्ता होती दिख रही हैं।
राजद नेता अली अशरफ फ़ातमी ने कहा कि उन्होंने पार्टी को पहले ही यहां से चुनाव लड़ने की इच्छा बता दी थी, पर पार्टी ने संज्ञान नहीं लिया। फ़ातमी ने कहा कि उन्होंने ये फैसला तेजस्वी यादव के उस बयान को देखते हुए लिया जिसमें उन्होंने कहा कि जिन्हें टिकट नहीं मिला वो स्वतंत्र हैं , वो निर्दलीय लड़ने के लिए भी स्वतंत्र हैं। खैर अब इन बातों से और इस आपसी जिच से किसका फायदा है वो तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
क्या रहा है मधुबनी का समीकरण
जब पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का एकछत्र राज था तब भी यहाँ 1967 और 1971 चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी के भोगेन्द्र झां ने परचम लहराया था। भोगेन्द्र झां मधुबनी लोकसभा सीट से सर्वाधिक 5 बार सांसद चुने गए। 1999 के बाद भाजपा यहाँ मजबूत आरटी बन कर उभरी और हुकुमदेव नारायण यादव भाजपा के ट्रम्प कार्ड बने रहे। हुकुमदेव नारायण यादव यहाँ से 4 बार सांसद चुने गए । 2014 के लोकसभा चुनाव में हालांकि जीत का अंतर काफी कम रहा और हुकुम देव नारायण यादब ने राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को तकरीबन 20000 वोटों से पराजित किया था।
मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में कुल 17,65,695 मतदाता हैं जिसमे 60 फीसदी पुरुष और 40 फीसदी महिलाएं हैं। मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 6 विधान सभा सीटें हैं -हरलाखी, बेनीपट्टी ,बिस्फी, केवटी, जाले, और मधुबनी। बिस्फी, केवटी, और मधुबनी पर राजद तो हरलाखी पर रालोसपा का कब्जा है। वहीं बेनीपट्टी पर कांग्रेस तो जाले में भाजपा के विधायक जीते हैं। इस लोकसभा चुनाव में महागठबंधन वो समीकरण तय नहीं कर पा रहा और इसका फायदा एनडीए को मिलता दिख रहा है। इस चतुष्कोणीय लड़ाई में किसका फायदा होता है, यह देखना दिलचस्प होगा।
सत्यम दुबे