पटना : केंद्रीय मंत्री एवं रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने उनके बयान को लेकर शुरू हुई राजनीतिक सरगर्मी पर सोमवार को कहा कि ‘खीर’ शब्द का गलत अर्थ निकाला गया। उन्होंने किसी पार्टी विशेष का नाम तक नहीं लिया था, और मीडिया ने बयान को तोड़—मरोड़ कर पेश कर दिया। श्री कुशवाहा ने कहा कि उन्होंने अपने बयान में यह नहीं कहा कि राष्ट्रीय जनता दल का दूध और भारतीय जनता पार्टी की चीनी मिलेगी तो स्वादिष्ट खीर बनेगी। मैंने पूरे समाज से समर्थन मांगा है। मैने सामाजिक एकता की बात कही इसलिए कृपया मेरे बयान को किसी जाति, समुदाय या पार्टी विशेष से न जोड़ा जाये।
मालूम हो कि कुशवाहा ने बीपी मंडल की 100 वीं जयंती पर शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा था, “यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाये तो खीर बन सकती है, लेकिन खीर के लिए छोटी जाति और दबे-कुचले समाज का पंचमेवा भी चाहिए। तब खीर जैसा स्वादिष्ट व्यंजन बन सकता है। यही सामाजिक न्याय की परिभाषा है।” उनके इस बयान को राजनीतिक गलियारे में रालोसपा के वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव राजद के साथ लड़ने के संकेत के तौर पर देखा गया।
इस पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने ट्वीट कर उनके विचारों का समर्थन भी किया था। लेकिन राजद के सहयोगी हम नेता जीतन राम मांझी ने राजद महागठबंधन में सीएम पद पर नो वैकेंसी की बात कह दी। उधर एनडीए ने भी कुशवाहा के विचारों से किनारा करते हुए उनके समीकरणों पर कहा कि ‘दूध’ और ‘कुश’ तथा ‘पंचमेवा’ सभी दलों में शामिल हैं। इनपर किसी एक दल या पार्टी का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है।
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