पटना : बिहार की कुछ सीटें 2019 के लोकसभा चुनाव में कई बड़े नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी हैं। न सिर्फ बेगूसराय, बल्कि बांका भी उन्हीं सीटों में से एक है, जहां लड़ाई त्रिकोणीय मानी जा रही है। बांका लोकसभा सीट महिलाओं की राजनीति में भागीदारी का जीवंत उदाहरण पेश करता रहा है। कहा जाता है कि महिलाओं की राजनीति में एंट्री एक सशक्त लोकतंत्र का निर्माण करती है, और बांका की जनता शुरुआती समय से ही इन्हें मौका देती रही है
बांका में 1957 में पहला आम चुनाव हुआ और सांसद चुनी गईं शकुंतला देवी।तब से बांका लगातार सुर्खियों में रहा। इस बार बांका लोकसभा सीट से महागठबंधन ने अपने सीटिंग एमपी जयप्रकाश नारायण यादव को फिर से उतारा है। हालांकि, जदयू ने एनडीए की ओर से संभावित उम्मीदवार पुतुल कुमारी का टिकट काट, उनके परिवार के धुर-विरोधी गिरिधारी यादव को मैदान में उतारा है। इससे पुतुल कुमारी नाराज़ हो गईं और निर्दलीय मैदान में उतर गईं हैं। यह लगातार बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार ने दिवंगत दिग्विजय सिंह से कुछ तल्खियों की वजह से पुतुल कुमारी का टिकट काट दिया।
बांका का चुनावी इतिहास
बांका की लड़ाई में दिलचस्प मोड़ 1996 के बाद आया। जॉर्ज फ़र्नांन्डिस के विश्वासी रहे दिवंगत दिग्विजय सिंह और राजद की ओर से आये गिरिधारी यादव में लगातार चुनाव दर चुनाव कड़ा मुकाबला होता रहा। कभी दिग्विजय सिंह तो कभी गिरिधारी यादव ने बाजी मारी। बांका दिग्विजय सिंह का गढ़ माना जाता है। यहां उनकी रियासत का प्रतीक है गिद्धौऱ का किला। 1996 में गिरिधारी यादव से हारने के बाद समता पार्टी का गठन हुआ जिसके टिकट पर दिग्विजय सिंह 1998 का लोकसभा चुनाव पहली बार जीते। 2009 में दिग्विजय सिंह तीसरी बार सांसद चुने गए पर कार्यकाल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद 2010 के उपचुनाव में उनकी पत्नी पुतुल कुमारी
निर्दलीय ही सांसद चुनी गईं। 2014 में जदयू छोड़ भाजपा में शामिल हुईं और
बांका की सीट पर कड़े मुकाबले में राजद के जयप्रकाश नारायण यादव से कम अंतर से हार गईं।
बांका का समीकरण
बांका में 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 16,87,940 मतदाता हैं। जिनमें से 56
फीसदी पुरूष तो 44 फीसदी महिला मतदाता हैं। बांका में 18 अप्रैल को मतदान है, जिसे लेकर दलों के बीच जातीय गणित से हित साधने और मुद्दों को लेकर सरगर्मी तेज़ हुई है। बांका में यादव और राजपूत आबादी ज्यादा है पर सांसद चुनने का निर्णायक फैसला अन्य पिछड़ी जातियां करती आई हैं। बांका में समस्याएं भी कम नहीं, जो इस चुनाव में प्रमुखता से उभर रही हैं। साम्राज्यवादी विरासत होने के बावजूद इस क्षेत्र में उद्योगों का अभाव और सिंचाई की बेहतर व्यवस्था का न होना भी अहम मुद्दा है।
बांका लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते है। सुल्तानगंज, अमरपुर, दोरैया,
बांका, कटोरिया और बेलहर। इन क्षेत्रों में चावल की खेती बेहतर होती है और इसलिए इसे बिहार में चावल का कटोरा भी कहा जाता है। न सिर्फ शकुंतला देवी और पुतुल कुमारी, बल्कि मनोरमा सिंह ने भी महिलाओं की राजनीतिक विरासत को यहां जीवंत रखने में बड़ी भूमिका निभाई है।
सत्यम दुबे