ठीक दो साल पहले यानी अगस्त—2016 में मुदस्सर अजीज ने हास्य फिल्म ‘हैप्पी भाग जाएगी’ निर्देशित किया था। डायना पेंटी, अभय देओल, जिम्मी शेरगिल जैसे मंझोले फिल्म स्टारों को लेकर मात्र बीस करोड़ में बनी इस फिल्म ने सीमित स्क्रीन पर रिलीज होकर मुनाफा कमाया था। बस, निर्मातों ने टाइटल भुनाने की ठान ली। अजीज ने ‘दुल्हा मिल गया’ जैसे हादसे से निर्देशकीय पारी की शुरूआत की थी। 2016 में हैप्पी ने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। बस, मन बहक गया और दो साल बाद (2018) ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ के रूप में उन्होंने एक और हादसा रच दिया। फिल्म को मिले ठंडे रिस्पांस को देखकर निर्माता अब शायद उसका तीसरा भाग नहीं बनाने की समझदारी दिखाएंगे। यानी हैप्पी…सीरीज की फिल्में निर्माण चक्र से भाग जाएगी।
हैप्पी के पहले भाग में एक तर्कपूर्ण प्रेम कथा को सीमा पार पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में हास्य की चाशनी में डूबोकर परोसा गया था। हैप्पी—2 में हैप्पी (सोनाक्षी सिन्हा) को पाकिस्तान के बजाय चीन भगाया गया। लेकिन, वहां हैप्पी—1 की हैप्पी (डायना पेंटी) भी पहुंच गई। दो—दो हैप्पी को लेकर गड़बड़झाला शुरू होता है। इसी को कहानी का रूप देकर फिल्मा लिया गया। मतलब कुछ भी परोस देना है।
पहले में पाकिस्तान और उर्दू थी, तो इस बार चीन और चीनी है। जबर्दस्ती बुनी गई कहानी में बीच—बीच में कुछ हंसी के फव्वारे हैं। लेकिन, वे उंट के मुंह में जीरा के समान हैं। उस पर सोनाक्षी का भावहीन संवाद आदायगी हंसी को खिलने नहीं देती। जिम्मी और पीयूष पहले भाग वाले अंदाज में भी हैं। वैसे जिन लोगों ने हैप्पी—1 नहीं भी देखा हो, वे भी ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’ देख सकते हैं, क्योंकि दोनों में कोई ढंग का तारतम्य जैसी कोई बात है ही नहीं।
फिल्मकारों को यह समझना चाहिए कि किसी फिल्म का सिक्वल सिर्फ इसलिए नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि उसका पहला भाग हिट रहा है। वरना, हैप्पी—2 जैसा हादसा आगे भी होता रहेगा।
(प्रशांत रंजन)