भारत महान ने आधुकनिकता के साथ कदमताल कर 21वीं सदी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। लेकिन, अब भी कुछ मुद्दे हैं, जिनसे देश जूझ रहा है। आॅनर किलिंग इन्हीं में से एक है। दो साल पहले नागराज मंजुले ने मराठी फिल्म ’सैराट’ बनाई थी, जो आॅनर किलिंग विषय पर केंद्रित थी। इस फिल्म को देश-विदेश के आलोचकों की सराहना और बाॅक्स आॅफिस पर कलेक्शन, दोनों मिले थे। मात्र चार करोड़ में बनी सैराट ने मराठी सिनेमा उद्योग के लिए एक नई रेखा खंीच दी। पहली बार किसी मराठी फिल्म ने 100 करोड़ से अधिक की कमाई की। यहां बात धड़क की करनी है, तो सैराट की चर्चा क्यों? वह इसलिए क्योंकि उसी शुद्ध सैराट में मिलावट कर धड़क का निर्माण किया गया है।
हिंदी सिनेमा उद्योग में करण जौहर एक बहुत ही चतुर फिल्मकार हैं। वे किसी भी उत्पाद (फिल्म) को बेचने लायक बनाने की कला जानते हैं। ’सैराट’ की सफलता ने उन्हें भी आश्चर्यचकित कर दिया था। बस, बना डाली रीमेक। ’धड़क’ के निर्देशक शाशांक खेतान हैं, जो करण की कंपनी के लिए फिल्में बनाते आए हैं। करण ने ही उनको निर्देशक बनने का मौका दिया है। जाहिर है शाशांक पर उनका प्रभाव होगा। निर्देशक पर प्रभाव भले न हो। लेकिन, निर्माता होने के कारण फिल्म पर उनका स्पष्ट प्रभाव नजर आता है। कैसे? आइए। समझते हैं।
’सैराट’ बनाने के बाद इसके निर्देशक नागराज ने कहा था कि वे बाॅलीवुड (हिंदी सिनेमा नहीं) की तथाकथित फार्मूले को तोड़कर उसके प्रतिक्रिया के रूप में इस फिल्म को बनाया है। करण ने रीमेक के नाम पर सैराट की मौलिकता में इतनी मिलावट कर दी कि ’धड़क’ किसी टीपिकल बाॅलीवुड मसाला फिल्म बनकर रह गई। सैराट में कहानी महाराष्ट्र की थी। धड़क में इस कथा में राजस्थान के उदयपुर में सेट किया, फिर देश के कई स्थलों का भ्रमण करा दिया। राजस्थान की कहानी में एक मराठी गाना डालने का क्या तुक है, यह तो करण का दिल ही जानता होगा। मतलब कुछ भी। दूसरा उदाहरण देखिए, नायक (ईशान खट्टर) और नायिका (जाह्नवी कपूर) उदयपुर छोड़कर भागते हुए एक टूटे-फूटे मकान में शरण लेते हैं। दोनों अत्यंत विपन्नता व संकट में जी रहे हैं। लेकिन, तन पर हमेशा लद-दक वस्त्र धारण किए रहते हैं। ’सैराट’ में ये बेतुकी बातें नहीं है।
मूल कथा बस इतनी सी है काॅलेज में पढ़ने वाले एक दलित लड़के को ऊंची जाति की एक लड़की से प्रेम हो जाता है। दोनों के परिवार वालों में नाराजगी बढ़ती है और अंततः प्रेमी युगल को प्रेम करने की सजा दी जाती है। आम रोमांटिक फिल्मों के विपरीत सैराट में लड़की निर्णायक भूमिका में होती है। नागराज ने उस प्रचलित नैरेशन को बदला, जिसमें हीरो (मुख्य अभिनेता) ही सबकुछ करता है, जबकि हीरोइन (मुख्य अभिनेत्री) बस उसके पीछे-पीछे चलती है। ’सैराट’ का खुरदरापन ही उसकी खासियत है, जबकि करण ने धड़क को मखमली बनाकर कहानी की रूह को धूमिल कर दिया।
’धड़क’ के दोनों मुख्य कलाकार नए हैं। श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर ने जहां इस फिल्म से अपना करिअर शुरु किया है, वहीं ईशान की यह सिर्फ दूसरी फिल्म है। नए चेहरे होने से कहानी पर टाइपकास्ट होने का जोखिम नहीं था। निसंदेह ’धड़क’ ने ’सैराट’ की कहानी का प्रसार किया। इसके लिए प्रशंसा होनी चाहिए। लेकिन, सैराट जैसा प्रभाव नहीं छोड़ सकी।
(प्रशांत रंजन)
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बारीक नज़र…