पटना : छोटी-छोटी सावधानियों से हम अपने पर्यवारण को बचा सकते हैं। धरती को विषैला बनने से भी बचाया जा सकता है। बच्चे स्कूल पानी की बोतल लेकर जाते हैं और लौटकर थर्मस में बचा पानी बेसिन में फेंक देते हैं। लेकिन उसी बचे हुए पानी को यदि पेड़-पौधों में डाल दिया जाए तो पेड़ को पानी मिल जायेगा। इससे धरती सुरक्षित रहेगी और पर्यावरण को भी जीवन मिल जायेगा।
उक्त बातें बिहार स्टेट पॉल्यूशन बोर्ड के निदेशक नवीन कुमार ने आईएमए हॉल में ई-वेस्ट पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही। “करो संभव” नाम की संस्था ने इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर लोगों में जानकारी बढ़ाने को लेकर यह कार्यक्रम किया था।
नवीन कुमार ने कहा कि हमने ऐसी जीवनशैली अपना ली है जो सुख-सुविधाओं से तो लैस है, पर उसके उपभोग करने के बाद के परिणाम से हम बिल्कुल बेखबर हैं। उन्होंने कहा कि आदमी तो मेट्रो में भी वही रहता है, जो गांव में रहता है, या फिर शहरों में रहता है। लेकिन अलग-अलग शहरों में परिणाम में इतना अंतर क्यों होता है। सीधा सा जबाब है हमारा तौर-तरीका इसके लिए जिम्मेदार है। कुछ स्टेप्स बड़े आसान हैं जिसे हम सब अपनाकर एक स्वच्छ भारत का निर्माण कर सकते हैं। कचरा मुक्त, प्लास्टिक मुक्त और सुंदर पर्यावरण के निर्माण की ज़िम्मेदारी किसी एक संस्था, व्यक्ति या सरकार की नहीं है, बल्कि पूरे सिविल सोसाइटी को इसके लिए आगे आना होगा।
उन्होंने कहा कि जब हम घर का कचरा फेकें तो सही जगह पर फेकें ताकि रीसाइक्लिंग प्रोसेस में वो चला जाए। जब भी घर से बाहर निकलें तो थैला लेकर निकलें। प्लास्टिक में कोई
भी समान न लें। जब भी बैटरी खरीदें तो पुरानी होने पर उसे डीलर को ही बेचें। भले पैसे कम मिलें। डीलर पुरानी बैटरी की रीसाइकलिंग करेगा। वहीं दूसरे वेंडर उसका यूज़ गलत ढंग से करते हैं। रूम से बाहर निकलते वक्त चलते हुए पंखे, जलते हुए बल्ब को बुझा दिया करें। ऐसा करने से एक यूनिट बिजली भी आप बचा लेते हैं तो समझिए कि आपने पूरी दुनिया की सेवा कर दी। एक यूनिट बिजली बचाने में एक केजी कोयला बचता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति ऐसा करे तो कितना बड़ा परिवर्तन दुनिया में आएगा। फ़ूड सिक्योरिटी की बात हो रही है। प्रतिदिन दुनिया में बीस से तीस प्रतिशत भोजन बर्बाद हो जाता है। यदि हम उतना ही भोजन लें जितना खाना हो तो इससे भी दुनिया में बहुत बडी क्रांति आ सकती है।
वहीं तरुमित्र के फादर राबर्ट एथिकल ने कहा कि अब रीसाइक्लिंग का ही ज़माना आ गया है।
प्रकृति में उपलब्ध संसाधन का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। प्रकृति से हम ले तो बहुत कुछ रहे हैं, लेकिन उसके सुव्यवस्थित होने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। फादर ने कहा कि ई-वेस्ट आज एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। समय रहते रीसाइकलिंग की प्रक्रिया को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि पुराने कंप्यूटर, मोबाइल, पुरानी बैटरी आदि बहुत बड़ी संख्या में लोग यूं ही फेंक देते हैं। इससे पर्यवारण को बहुत नुकसान पहुंचता है। आजकल बहुत सारी कंपनियां पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामानों को ले रही हैं और उनका रीसाइक्लिंग करती हैं। पटना में 2017 से ये चल रहा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पटना की आबादी 25 लाख है। यदि पच्चीस लाख में से 15 लाख लोग भी एक बैटरी का इस्तेमाल करते हैं तो सोचिए साल में कितना बैटरी लोग इस्तेमाल करके फेक देते हैं। उन बैटरी की जगह चार्ज़बल बैटरी का भी लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। इन बैटरी में इतने ज़हरीले रासायन होते हैं जो धरती को बहुत नुकसान पहुंचाता है। वारिश का पानी इनसे होते हुए धरती के अंदर जाता है तो वो भूगर्भीय जल भी खतरनाक हो जाता है। इसलिए ई-वेस्ट पर लोगों में जनजागरण की बड़ी आवश्यकता है।
(मानस दुबे)