हाड़ कपकपाती ठंड से लोगों को बढ़ी परेशानी, लोगों ने प्रशासन से अलाव की व्यवस्था करने का किया मांग
मधुबनी : जिले के हरलाखी प्रखंड क्षेत्र में पिछले कई दिनों से चल रही पछुआ हवा के कारण कड़ाके की ठंड और कोहरा से आम लोग परेशान हो रहे है। कई दिनों से भगवान सूर्य का दर्शन तक नही हो पा रहा है। कड़ाके की ठंड से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। लोग अपने स्तर से अलाव जलाकर पूरा दिन काट लेते है, और शाम होते ही घरों में दुबक जाते है। ठंड के कारण प्रखण्ड क्षेत्र के अधिकांश गावों के चौक-चौराहों एवं सड़कों पर शाम ढलते ही सन्नाटा छा जाते है। बहुत जरूरी पड़ने पर ही लोग अपने घरों से निकल रहे हैं। सबसे ज्यादा ढंड से बच्चे व बुजुर्गों को परेशानी हो रही है।
चूंकि हाड़ कपकपाती ठंड से बीमार होने का खतरा बना हुआ है। चौक-चौराहों पर ठंड के कारण लोग सड़कों से कागज,प्लास्टिक चुनकर आग तापते नजर आ रहे हैं। इधर लगातार बढ़ रहे कोहरे से किसानों को भी भारी क्षति उठानी पड़ रही है। किसानों को आलु की फसलों के खराब होने का खतरा मंडराने लगा है। इधर ठंड से बचाव के लिए लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों के चौक चौराहे पर अलाव की व्यवस्था करने का मांग प्रशासन से की है।
प्रखंड सभागार में नवनिर्वाचित पंचायत के प्रतिनिधि के साथ बैठक आयोजित
मधुबनी : जिले के खजौली प्रखंड कार्यालय के सभागार में मंगलवार को प्रखंड के नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों की आयोजित बैठक को संबोधित किया। इस क्रम में उन्होंने ग्राम पंचायत के विकास को लेकर ग्रामसभा आयोजित कर वार्षिक कार्य योजना बनाने का निर्देश सभी निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों को दिया। उन्होंने सभी पंचायत प्रतिनिधियों से आपसी समन्वय बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि आपसी समन्वय से ही पंचायत का चहुमुखी विकास होगा।
वहीं कार्यपालक पदाधिकारी, पंचायत समिति खजौली सह प्रखंड पंचायत राज पदाधिकारी भरत भूषण गुप्ता ने ग्राम पंचायत विकास योजना निर्माण, नल जल योजना का सतत अनुश्रवण एवं अनुरक्षण, जल जीवन हरियाली योजना का क्रियान्वयन, वित्त वर्ष
2019-20 से 2021-22 तक का अंकेक्षक दल द्वारा अंकेक्षण, ग्रामसभा का आयोजन सहित विभिन्न विन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने सभी मुखिया से ग्राम पंचायत को व्यवस्थित करने का आग्रह किया।इस बैठक में बीडीओ मनीष कुमार, मुखिया अमरेन्द्र सिंह, अशोक सिंह, अर्जुन सिंह, जयप्रकाश मंडल, सुधिर सिंह, अजय कुमार उर्फ कोका सिंह, बब्लू महतो, सुनिता देवी, मोहन झा, रीना देवी(लेखापाल), शशी कुमारी(तकनीकी सहायक) उपस्थित थे।
अनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम से अनीमिया के ख़िलाफ़ मुहिम में मिलेगी गति
मधुबनी : अनीमिया एक गंभीर लोक स्वास्थ्य समस्या है. इससे जहाँ शिशुओं का शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध होता है. वहीँ किशोरियों एवं माताओं में कार्य करने की क्षमता में भी कमी आ जाती है. इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय पोषण अभियान के अंतर्गत ‘अनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है. बिहार सहित देश के सभी राज्यों में इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को संचालित किया जा रहा है. इस कार्यक्रम के तहत 6 विभिन्न आयु वर्ग के समूहों को चिन्हित कर उन्हें एनीमिया से मुक्त करने की पहल की गयी है।
अनीमिया में प्रतिवर्ष 3% की कमी लाने का लक्ष्य
सिविल सर्जन डॉ सुनील कुमार झा ने कहा कि इस अभियान के तहत 6 विभिन्न आयु वर्ग की महिलाओं को लक्षित किया गया है. कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश के लोगों को अनीमिया जैसे गंभीर रोगों से बचाव करना है. साथ ही इस कार्यक्रम के तहत एनीमिया में प्रतिवर्ष 3% की कमी लाने का लक्ष्य भी रखा गया है. इसके लिए सरकार द्वारा 6X6X6 की रणनीति के तहत 6 आयुवर्ग, 6 प्रयास एवं 6 संस्थागत व्यवस्था की गयी है. यह रणनीति आपूर्ति श्रृंखला, मांग पैदा करने और मजबूत निगरानी पर केंद्रित है. उन्होंने कहा कि खून में आयरन की कमी होने से शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है. इसके लिए सभी को आयरन एवं विटामिन ‘सी’ युक्त आहार का सेवन करना चाहिए. जिसमें आंवला, अमरुद एवं संतरे प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में मिलने वाले स्रोत हैं. उन्होंने कहा कि विटामिन ‘सी’ ही शरीर में आयरन का अवशोषण करता है. इस लिहाज से इसकी मात्रा को शरीर में संतुलित करने की जरूरत है।
इन 6 आयु वर्ग के लोगों को किया गया है लक्षित
• 6 से 59 महीने के बालक और बालिकाएं
• 5 से 9 साल के लड़के और लड़कियाँ
• 10 से 19 साल के किशोर औरकिशोरियां
• 20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएँ( जो गर्भवती या धात्री न हो)
• गर्भवती महिलाएं
• स्तनपान कराने वाली महिलाएं
प्रदान की जाती है निःशुल्क दवा
अनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत सभी 6 आयु वर्ग के लोगों में अनीमिया रोकथाम की कोशिश की जा रही है. जिसमें 6 से 59 महीने के बालक और बालिकाओं को हफ्ते में दो बार आईएफए की 1 मिलीलीटर सिरप आशा द्वारा माताओं को निःशुल्क दी जाती है. 5 से 9 साल के लड़के और लड़कियों को हर सप्ताह आईएफए की एक गुलाबी गोली दी जाती है। यह दवा प्राथमिक विद्यालय में प्रत्येक बुधवार को मध्याह्न के बाद शिक्षकों के माध्यम से निःशुल्क दी जाती है।
साथ ही 5 से 9 साल तक के वैसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं, उन्हें आशा गृह भ्रमण के दौरान उनके घर पर आईएफए की गुलाबी गोली देती हैं। 10 से 19 साल के किशोर और किशोरियों को हर हफ्ते आईएफए की 1 नीली गोली दी जाती है. जिसे विद्यालय एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों पर प्रत्येक बुधवार को भोजन के बाद शिक्षकों एवं आंगनबाड़ी सेविका के माध्यम से निःशुल्क प्रदान की जाती है. 20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं को आईएफए की एक लाल गोली हर हफ्ते आरोग्य स्थल पर आशा के माध्यम से निःशुल्क दी जाती है।
वहीं गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के चौथे महीने से प्रतिदिन खाने के लिए आईएफए की 180 गोलियाँ दी जाती है. यह दवा उन्हें ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के दिन प्रदान की जाती है. साथ ही धात्री माताओं के लिए भी प्रसव के बाद आईएफए की 180 गोली दी जाती है, जिसे उन्हें प्रतिदिन खाने की सलाह दी जाती है. इस दवा का भी वितरण ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के दिन निःशुल्क ही होता है।
सप्ताह में दो ख़ुराक दिलाएगा आपके बच्चे को खून की कमी से निज़ात
अनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत 6 माह से 59 माह तक के बच्चों को सप्ताह में दो बार आईएफए(आयरन फोलिक एसिड) सिरप देने का प्रावधान किया गया है. एक ख़ुराक में 1 मिलीलीटर यानी 8-10 बूंद होती है. सभी आशा को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सिरप की 50 मिलीलीटर की बोतलें आवश्यक मात्रा में दी जाती है। प्रथम दो सप्ताह में आशा स्वयं बच्चों को दवा पिलाकर माँ को सिखाने का प्रयास करती हैं एवं अनुपालन कार्ड भरना सिखाती हैं. दो सप्ताह के बाद का ख़ुराक माँ द्वारा स्वयं पिलाने तथा अनुपालन कार्ड में निशान लगाने के विषय में इस कार्यक्रम के दिशा-निर्देश में विशेष बल दिया गया है।
क्या कहते हैं राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-20) के अनुसार जिले में 6 मार्च से 59 वर्ष के 64.2% शहरी क्षेत्र के एवं 68.3% कुल 67.1% बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं नॉनप्रेगनेंट 15 से 49 वर्ष की शहरी क्षेत्र के 54.1% एवं ग्रामीण क्षेत्र के 58.7% कुल 57. 2%महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं वही है 15 से 49 वर्ष के गर्भवती महिला शहरी क्षेत्र 45.7%, ग्रामीण क्षेत्र के 54.3%, कुल 52.2% एनेमिया से ग्रसित हैं।
स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई कोरोना के साथ एनीमिया रोकथाम में भी कारगर
मधुबनी : कोरोना संक्रमण काल में स्वच्छता एवं साफ-सफाई की जरूरत को सबने महसूस किया है। कोविड की तीसरी लहर के मद्देनजर भी लोगों से मास्क पहनने एवं हाथों की नियमित सफाई करने की अपील की जा रही है। स्वच्छता एवं साफ़-सफाई कोरोना रोकथाम के साथ एनीमिया बचाव में भी काफ़ी कारगर है. साथ ही ऐसे कई अन्य संक्रामक रोग भी हैं जो दूषित पानी के सेवन या स्वच्छता के आभाव में फैलती है। जिसमें डायरिया एवं टायफाईड प्रमुखता से शामिल होते हैं।
हुकवर्म से शरीर में संक्रमण के साथ होती है खून की कमी
हुकवर्म एक परजीवी होता है। यह दूसरे जीवित प्राणी के शरीर में जीवित रहते हैं। हुकवर्म इन्फेक्शन छोटी आंत में होता है। हुकवर्म का लार्वा त्वचा के संपर्क में आने के बाद छोटी आंत में पहुँचता है। जिसके बाद शरीर में कई तरह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। जिसमें पेट में दर्द, उल्टी का होना, भूख न लगना, शरीर में खुजली होना, वजन कम जाना एवं थकान जैसे लक्षण शामिल होते हैं. हुकवर्म के कारण शरीर में हेमोग्लोबिन यानी खून की कमी भी हो जाती है।
समान्य तौर पर यह संक्रमण गाँव में अधिक होता है जिससे छोटे बच्चे भी प्रभावित होते हैं. यह संक्रमण ज्यादातर गंदगी के कारण ही होता है. खुले में शौच करना, हाथों की अच्छी से सफाई नहीं करना एवं नंगे पाँव जमीन पर चलने से इस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इस लिहाज से साफ़-सफाई पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आँतों का वर्म विकासशील देशों के 10 फीसदी आबादी को संक्रमित करता है. जिससे एनीमिया, कुपोषण एवं बच्चों में विकास बाधित होता है।
गर्भवती महिलाएं बरतें सावधानियां
गर्भवती महिलाओं को साफ़-सफाई पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है. गर्भावस्था में खून की कमी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। हाथों की उचित साफ़-सफाई के आभाव में हुकवर्म का खतरा गर्भवती महिलाओं को भी हो सकता है एवं इससे संक्रमण के साथ खून की कमी भी हो सकती है। इस लिहाज से गर्भवती महिलाएं हर बार हाथ धोते समय साबुन या राख का उपयोग करें। बहते या बहते पानी के नीचे हाथ धोएं. भोजन को तैयार करने या खाने से पहले हाथ धोएं और किसी को खिलाने या दवाइयाँ देने से पहले भी हाथों की सफाई करें।
शौचालय जाने के बाद, शौच करने वाले व्यक्ति की सफाई करने, नाक बहने, खांसने, छींकने या किसी जानवर या जानवर के अपशिष्ट को संभालने के बाद और किसी बीमार व्यक्ति की देखभाल करने से पहले और बाद में भी हाथ धोएं। साथ ही घर में पीने के पानी को स्वच्छ रखें। पानी को उबालकर या फ़िल्टर युक्त पानी का सेवन करना जरुरी है। इससे दूषित पानी से फैलने वाले रोगों की आसानी से रोकथाम हो सकती है।
स्वच्छता एवं साफ़-सफाई वर्तमान समय की माँग
सिविल सर्जन डॉ सुनील कुमार झा ने बताया कि वर्तमान समय में स्वच्छता एवं साफ़-सफाई अनिवार्य है। इससे कोरोना संक्रमण के प्रसार को कम करने में सहयोग मिलेगा। साथ ही दूसरे संक्रामक रोगों से भी निजात मिलेगी। उन्होंने बताया कि बच्चों में डायरिया दूषित पानी एवं हाथों की साफ़-सफाई की कमी के कारण ही होते हैं. इसको लेकर आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण के दौरान हाथों की सफाई के बारे में जानकारी भी देती है. उन्होंने कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनजर यह अपील भी की कि लोग घर से निकलने से पहले मास्क का प्रयोग करें एवं जिन्होंने टीका नहीं लिया वह जरुर टीका लें. साथ ही 15 से 18 आयुवर्ग के युवा भी ख़ुद को टीकाकृत कर लें।
सुमित कुमार की रिपोर्ट