धीरज व समझ मांगती है ‘७२ हूरें’
प्रशांत रंजन फिल्म अध्येता सिनेमा अपने आरंभिक दिनों से ही मानवीय, सामाजिक, रानीतिक विचारों का संवाहक रहा है। डेविड ग्रिफिथ की ’बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ (1915) से विचारों का फिल्मांकन जो शुरू हुआ, उसने आगे चलकर जर्मन अभिव्यक्तिवाद, इतालवी नवयथार्थवाद,…