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वनवासी भारत के सच्चे सपूत : डॉ. मोहन सिंह

पटना : वनवासी भाई सच्चे अर्थों में भारत माता के सपूत होते हैं। जब—जब देश की रक्षा की बात आती है, वनवासी भाई जान हथेली पर रखकर आगे खड़े होते हैं। पहले मुगलों जैसे विदेशी आक्रमणकारी और बाद में अंग्रेजों ने यह भ्रम फैला दिया कि वनवासी शेष भारतीयों से पृथक हैं। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र कार्यवाह डॉ मोहन सिंह ने गुरुवार को कहीं। वनवासी कल्याण आश्रम के 67वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे।

डॉ सिंह ने कहा कि अंग्रेजों ने जब पहली जनगणना कराई उसी में यह कुचक्र रचा कि वनों में रहने वाले लोग शेष भारतवासियों से अलग हैं और उनको ट्राईबल का कर संबोधित किया, जबकि सच्चाई यह है कि वे वनवासी हैं, जो पूर्णरूपेण भारतीय हैं। यह मात्र भौगोलिक क्षेत्र की बात है कि भारत के कुछ लोग वनों में रहते हैं, कुछ मैदानी इलाकों में रहते हैं, कुछ तटीय इलाकों में रहते हैं या कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करते हैं। इन सब विविधताओं के बावजूद सत्य यही है कि वे सब भारत माता के पुत्र हैं, जो अपने राष्ट्र को परम वैभव तक ले जाने के लिए कृतसंकल्प है।

अंग्रेजों ने दूसरा कुचक्र रचा कि सिखों को अलग करके हिंदू समाज से एक बड़े वर्ग को काट दिया। सिख के रूप में उनकी जनगणना की और उसी कुचक्र को आगे बढ़ाते हुए सिख समुदाय को पृथकवादी बनाते हुए उसं खालिस्तान आंदोलन तक ले गए। लेकिन, भारत का मानस इतना कंगाल नहीं है कि इन चक्रों को ना समझ सके। इस राष्ट्र के लोगों ने समय-समय पर ऐसे तोड़ने वाली शक्तियों को करारा जवाब दिया है।

सैकड़ों वर्षों से वनवासी भाइयों के बीच या भ्रम फैलाया गया कि शेष भारत के लोग से अलग हैं। इस भ्रम को तोड़ने के लिए के उद्देश्य से 67 वर्ष पहले वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना हुई और इतने वर्षों में यह संस्था वनवासी भाइयों के बीच रहकर उनके कल्याण हेतु कार्य कर रही है।

वनवासी कल्याण आश्रम के स्थापना दिवस समारोह में उपस्थित लोग

डॉ सिंह ने स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के सैकड़ों ऐसे पुत्र हुए हैं जिन्होंने आधुनिक काल से लेकर प्राचीन काल तक में भारत को एक राष्ट्रपुरुष के रूप में उत्थान करने के लिए प्रयास किए हैं। उन्होंने कहा कि वनवासी समाज में भी हजारों साल से कई संत, ऋषि, महात्मा और महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय-समय पर भारत माता के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया है। ऐसे सर्वस्वअंशदानी समाज को भारत से अलग कैसे माना जा सकता है?

राम जन्मभूमि पर हुए ताजा निर्णय को का स्वागत करते हुए डॉ सिंह ने कहा कि रामलला की खातिर सैकड़ों वर्षों तक हिंदू समाज ने संघर्ष किया और धैर्य के साथ प्रतीक्षा की और उसका प्रतिफल जब मिला, तो उसे पूरे संयम के साथ स्वीकार किया या हिंदू समाज की विशेषता है।

मौके पर वनवासी कल्याण आश्रम के संगठन महामंत्री प्रदीप कुमार ने संगठन के वर्तमान कार्यरूपों की व्याख्या की और चल रहे कायों पर प्रकाश डाला।