पटना : पटना विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य पप्पू वर्मा ने कहा कि देश में कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के कारण देशभर के करीब-करीब सभी अदालतें ठप है। ऐसी परिस्थिति में अधिकांश अधिवक्ताओं, सभी अधिवक्ता लिपिक और वकीलों पर निर्भर टाइपिस्टों के परिवार के लोग भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं।
वर्मा ने कहा कि इस पेशे से जुड़े लोगों से मिली जानकारी के अनुसार महामारी के शुरुआती दिनों से ही सभी प्रकार के अदालतें करीब-करीब बंद है। सिर्फ जरूरी मुकदमे में वर्चुअल तरीके से सुनवाई हो रही है। वह भी ज्यादा तर जमानत के मामले में। अधिवक्ताओं एवं इस पेशे से जुड़े इनके सहयोगियों का जीवनयापन अदालत के खुले रहने पर ही निर्भर करता है। अधिवक्ता समुदाय आर्थिक उपार्जन के लिए एडवोकेट एक्ट के तहत कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकते हैं ।
बार और बेंच एक दूसरे का पूरक
पप्पू वर्मा ने कहा कि अधिवक्ताओं से दुखड़ा सुनने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि बार और बेंच एक दूसरे का पूरक है। एक के बिना दूसरा अधूरा है। अधिवक्ता ऑफिसर ऑफ द कोर्ट कहलाते हैं। लेकिन ऐसा दिखावा मात्र प्रतीत होता है। एक तरफ बेंच यानी अदालतों के अधिकारी व कर्मचारी कोर्ट में शून्य काम रहने के बावजूद वेतन व अन्य सुविधा उन्हें प्राप्त हो रही है, वहीं दूसरी ओर बार यानी अधिवक्ता समुदाय की आमदनी जीरो है। इससे प्रतीत होता है कि बार और बेंच के बीच काफी विरोधाभास है। दूसरी ओर आर्थिक रूप से काफी कमजोर हो गए अधिवक्ताओं,अधिवक्ता लिपिकों,व टाइपपिस्टो में नाराजगी है। इस महामारी के दौरान करीब-करीब कोर्ट में काम ना होने के बावजूद अदालतों पर सरकार का खर्च ज्यो का त्यों बना हुआ है। जबकि अधिकांश अधिवक्ताओं के घर चूल्हा जलाने पर आफत है।
इस बीच पप्पू वर्मा ने केंद्र सरकार से मांग किया है कि जन-वितरण प्रणाली के दुकानदारों के माध्यम से जरूरतमंद अधिवक्ताओं, अधिवक्ता लिपिको और सहयोगी टाइपिस्टो को केवल उनके अपने-अपने एसोसिएशन का पहचान पत्र के आधार पर शीघ्र ही दिसंबर माह तक के लिए राशन मुहैया कराया जाए। ताकि वे लोग तथा उनके परिवार भुखमरी का शिकार ना हो। चूंकि महामारी लंबे समय तक चलने की संभावना है। इसलिए नो वर्क ( No Work) के आधार पर वेतन में कटौती कर, कटौती की गई रुपए से ही जरूरतमंद वकीलों एवं उनके सहयोगियों को राशन मुहैया कराया जाए ताकि सरकार पर भी आर्थिक बोझ ना पड़े।