श्री राम विरोधी – राष्ट्र विरोधी – डाॅ० सुमन कुमार
DESK : हजारों वर्षों के तप और तपस्या के साथ लाखों वीरों के बलिदान के बाद 05 अगस्त 2020 को फिर से भारत के स्वर्णिम भविष्य का लोकार्पण श्री राम जन्म-भूमि पर श्री रामचंद्र जी के भव्य-दिव्य मंदिर का शिलान्यास होने के साथ होने जा रहा है। श्री राम भारत की आत्मा हैं, श्री राम,श्री कृष्ण के बिना भारत का कल्पना भी संभव नहीं, परंतु भारत में कुछ गद्दार जयचंदो के वजह से भारत के कण-कण में समाहित श्री राम जी के भव्य मंदिर को विदेशी लुटेरों के द्वारा षडयंत्र पूर्वक खंडित करके वहां पर उस भव्य मंदिर के ऊपरी भाग को अरबी पहचान के रूप में स्थापित लगभग 1500 ई० के आसपास में किया गया।
जिस का जोरदार विरोध भारत के हिंदुओं ने किया और लगातार इस खंडित मंदिर को पूर्ण करने और भारतीय स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए लड़ाइयां लड़ी। कितने पीढ़ियों ने अपने सर्वस्व-समर्पण के साथ श्री राम जी के भव्य मंदिर निर्माण के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दी है, परंतु भारत उस वक्त अप्रत्यक्ष रूप से पराधीन था, हालांकि भारत के स्वाभिमानी समाज ने कभी भी पराधीनता स्वीकार नहीं किया। और अपनी स्वतंत्रता को बचाकर बरकरार रखने के लिए खून की होलियां खेलें और हिंदू स्वाभिमान के परचम पत्ताका को अमर करते हुए मुसलमान आक्रांताओं के समूल नष्ट करने के संकल्प के साथ वीर शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, वीर महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जी, दानवीर भामाशाह जी जैसे भारत माता के लालों ने लगातार लड़ाइयां लड़ी व सहयोग किया। लेकिन जयचंदों के गद्दारी के परिणाम स्वरुप हमारे आराध्य प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर को खंडित किया गया।
इन सभी के बाद अंग्रेजों के शासन आई और हिंदुओं ने मुसलमानों आक्रांताओं के साथ अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए संघर्ष जारी रखा। जिसमें भगवान बिरसा मुंडा, वीर कुंवर सिंह, तात्या टोपे, बाजीराव पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई, राम प्रसाद बिस्मिल, डॉक्टर सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद,सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे असंख्य वीरों ने बलिदान देकर भारत को परतंत्रता के इन बेड़ियों से मुक्त करवाया।
भारत को जब इस 15 अगस्त 1947 को खंडित आजादी प्राप्त हुई तो भारतीय समाज ने अपने आने वाली नई शासन और शासक से भारत के स्वाभिमान और गौरव को विदेशियों द्वारा पहुंचाई गई नुकसान को ठीक करने की आस लगाई और तत्काल शासन में भारत के प्रथम गृह मंत्री व उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 16-16 बार लूटी गई सोमनाथ मंदिर को पुनर्जीवित करने की इच्छाशक्ति दिखाई और इस पर काम शुरू किया लेकिन भारत का इस वक्त भी दुर्भाग्य रहा कि अंग्रेजो के दलाल और मुसलमान मांसिकता के गुलाम जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और ऐसे राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव के प्रतीकों के जीर्णोद्धार से आनाकानी किया और मुंह फेर लिया। नेहरू ने तो बकायदा सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में तत्कालीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को भी नहीं जाने देने के लिए प्रयास किए परंतु डॉ राजेंद्र जी ने विधिवत उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए। बस क्या था यहीं से शुरू हुआ एक बार पुनः स्वतंत्र भारत में हिंदुओं का तुष्टीकरण के आधार पर हाशिए पर धकेलने का कांग्रेस का प्रयास।
लेकिन तब तक कांग्रेस के इस हिंदू विरोधी मानसिकता को समझ चुके संघ के संस्थापक परम पूज्य डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार ने हिन्दू समाज को षड़यंत्रों से अवगत कराने और हिंदू समाज को संगठित करने के अपने संकल्पों के साथ भारत के आजादी से लगभग डेढ़ दशक पूर्व 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर चुके थे। और संघ ने आजादी के नूतन बेला में कांग्रेस के भारत विरोधी साजिशों को बहुत ही गंभीर होकर समझा और इसके निवारण के लिए अपना कार्य शुरू कर दिया।
संघ ने नेहरू के इस भारत विरोधी एजेंडे को समझकर हिंदुओं के लिए विश्व मंच पर आवाज उठाने के लिए तत्कालीन संघ के सरसंघचालक परम पूज्य सदाशिव राव गोलवलकर (गुरु जी) के उपस्थिति में विश्व हिंदू परिषद के स्थापना करके अपने राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान के लिए आवाज बुलंद करने की जिम्मेदारी दी। और आजादी के बाद से विश्व हिंदू परिषद ने देश भर के हिंदुओं के संगठित आवाज का प्रतिनिधित्व किया। भारत सरकार से नहीं होने सकने वाली हिंदू संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन की जिम्मेदारी ली। और पुन: एक बार श्री राम जन्मभूमि पर विशाल व भव्य श्री राम मंदिर निर्माण के लिए देशव्यापी आंदोलन छेड़ दी।
जिसमें देखते देखते पूरा देश संगठित होकर पूज्य अशोक सिंघल व पूज्य अवैद्यनाथ जी महाराज जी के साथ देश के लाखों-करोड़ों संतो, साधुओं के साथ हिंदुओं ने अयोध्या कूच किया जिसमें संघ के लाखों लोगों ने मजबूती से सहयोग किया और श्री राम जी पर आगाध श्रद्धा और विश्वास रखने वाले कोठारी बंधु जैसे हजारों लोगों ने अपना बलिदान दिया। लाखों-करोड़ों लोगों ने कांग्रेस शासन के इस हिंदू विरोधी मानसिकता के विरोध में जेल गए।
अंतत: हम सभी को 6 दिसंबर 1992 को कथित बाबरी ढांचे को ध्वस्त करने में सफलता प्राप्त हुए। और न्यायालय में चल रहे मुकदमे में हिंदू समाज को साल 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने श्री राम जन्म भूमि को सौंप दिया और भव्य मंदिर निर्माण की जिम्मेवारी केन्द्र की श्री नरेंद्र मोदी की सरकार को सौंप दी।
फिर क्या था हिंदू विरोधी तुष्टीकरण में शामिल तथाकथित नेताओं व जयचंदो की औलादों के पेट में दर्द शुरू हो गई और कांग्रेस के गोद में खेल रहे स्वरूपानंद जैसे बहरूपियों ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया है।
आज जो भी लोग भारत के यशश्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अयोध्या जाने का विरोध कर रहे हैं यह सभी कांग्रेसी मानसिकता के गुलाम और देश के गद्दार जालीदार टोपी लगाकर ईफ्तारी खाते और गले में क्रास लगाकर क्रिसमस की बधाई देते फिरते हैं । यह सभी अरब व वेटिकन सिटी के पैसों पर पलने वाले और सोनिया गाँधी के इशारों पर नाचने वाले गुलाम हैं। जो अपने गजवा-ए-हिन्द और धर्मांतरण के काले खेल में संलिप्त देशद्रोहीयों के भाषा बोल रहे हैं।
ये लेखक के निजी विचार हैं।
लेखक – डाॅ० सुमन कुमार ( क्षेत्रीय संगठन मंत्री, हिन्दू जागरण मंच बिहार-झारखण्ड)