शिक्षा के उत्थान के लिए बौने नहीं, अच्छे लोग चाहिए : रामदत्त चक्रधर
दरभंगा : भारतवर्ष में सर्वाधिक युवा उर्जा मौजूद है। जिसमे जोश भी हैं लेकिन उनके अंदर विवेक, होश एवं संस्कार लाने का दायित्व सिर्फ और सिर्फ शिक्षकों पर ही है। जिनको अपने ध्येय की ओर जागना होगा, क्योंकि आज की वर्तमान शिक्षा केवल वैभव, सामर्थ्य तो दे सकती है पर शांति, संस्कार, नैतिकता नहीं दे पाती है। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक रामदत्त चक्रधर ने सोमवार को कहीं। वे मिथिला चेतना द्वारा आयोजित समारोह को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।
उन्होंनें कहा कि आज समाज में कहने को तो लोग है परंतु लोग कैसे हैं? दूसरे शब्दों में कहें तो बौने लोगों की आवश्यकता नहीं है। शिक्षा के उत्थान के लिए सही अर्थों में अच्छे लोग चाहिए यानी जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर कार्य करने वाले मानसिकता वाले होने चाहिए। अपने यहां की शिक्षा और संस्कार कितनी उत्कृष्ट थी। इसका एक उदाहरण आशुतोष मुखर्जी नाम के अपने यहां के एक आम छात्र को जब लॉर्ड कर्जन ने विदेश में जाने के लिए कहा था तो आशुतोष मुखर्जी ने कहा कि मैं अपनी मां से बिना पूछे नहीं जाऊंगा। जिस पर लॉर्ड कर्जन ने कहा कि मैं वायसराय बोल रहा हूं मेरे आदेश से तुम्हारे मां का आदेश ज्यादा महत्वपूर्ण है, तो इस पर आशुतोष मुखर्जी ने कहा कि हां आप के आदेश से बढ़कर मेरी मां का आदेश है। वहीं एक अन्य उदाहरण अपने जय प्रकाश बाबू के संदर्भ में है जो कि एक बार पीएचडी सिर्फ इसलिए छोड़ दिए थे कि उनको पता चला कि उनकी मां बीमार है जब इस संबंध में एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं आप पीएचडी की परीक्षा क्यो छोड़ रहे हैं इस पर उन्होंने कहा कि पीएचडी मैं बाद में भी कर सकता हूं लेकिन मेरी मां बाद में नहीं आ सकेगी। एक और अन्य उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ऋषि अरविंद जो कि ₹600 की नौकरी बड़ौदा में करते थे जिन को छोड़कर मात्र ₹60 की मेहनताना पर शिक्षक बनना उन्होंने स्वीकार किया।
वही कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संस्कृत के महान विद्वान श्रीपति त्रिपाठी जी ने कुछ संस्कृत के श्लोकों का उद्धरण देते हुए बताया कि विद्या के 4 गुणों जैसे पहला अध्ययन दूसरा विद्या का ज्ञान प्राप्त करना तीसरा अपने आचरण में उसको समाहित करना उतारना फिर इनको समाहित कर गुरु की वास्तविक योग्यता प्राप्त करना। चौथा तब जाकर उसका प्रचार प्रसार करना चाहिए। क्योंकि उनका कोई भी प्रभाव नहीं रहता जो स्वंय विभूषित ना होते हुए स्वयं के आचरण में डाले बिना दूसरे को अभिवचन करते हैं।
मौके पर कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. कन्हैया चौधरी ने कहा कि आज इस कार्यक्रम में उपस्थित महान विद्वान दधीचि परंपरा के वाहक अपना सर्वस्व समर्पित कर राष्ट्र को परम वैभव पर लाने हेतु राष्ट्र यज्ञ में अपनी संपूर्ण जीवनाहुति देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक रामदत्त चक्रधर जी और संस्कृत के महान विद्वान श्रीपति त्रिपाठी जी एवं चेतना प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक विजय शाही सहित उपस्थित साक्षात मां जानकी के पुत्र पुत्री रूपी सभी आत्माजनों, जो भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए , सहयोग किए, एवं सफल संचालन किए हैं का हार्दिक अभिनंदन करते हैं।
ज्ञात हो कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के मरनोपरांत राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित होने के कारण शिक्षक दिवस 5 सितंबर को होने वाला यह कार्यक्रम सोमवार को आयोजित हुआ। इसका संचालन मिथिला चेतना दरभंगा कार्यालय से किया गया। कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन छात्राओं द्वारा स्वागत गान के पश्चात् अतिथि परिचय एवं एकल गीत के बाद मुख्य अतिथि सह कार्यक्रम के उद्बोधन कर्ता रामदत्त चक्रधर का उद्बोधन “राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका” विषय पर हुआ।
इससे पूर्व कार्यक्रम में स्वागत गान उज्जवला कुमारी, रमा कुमारी,मेघा कुमारी, अर्चना कुमारी ने गाया। एकल गीत प्रिंस कुमार, मंच संचालन सुमित सिंह एवं डॉ शंकर कुमार लाल ने तकनीकी का सफल संचालन किए ।इस मौके पर विशेष रूप से स्थानीय कार्यालय पर डॉ विमलेश कुमार, आशुतोष कुमार मनु, पिंटू भंडारी, प्रोफेसर उमेश झा, विवेक जयसवाल, सुमन सिंघानिया, पूजा कश्यप, प्रीति झा, अमन कुमार ,हेमंत मिश्रा, गोपाल जी, प्रोफेसर चक्रपाणि जी, पवन जी, अभिलाषा कुमारी, मन्नू जी सहित दर्जनों गणमान्य उपस्थित थे।
(डॉ. शंकर कुमार लाल)