संगोष्ठी : गांधी बगैर दलित और दलित बगैर गांधी बेमतलब

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पटना : कबीर के लोग व चित्ति की ओर से आज पटना के विद्यापति भवन में बाबू जगजीवन राम की 33वीं पुण्यतिथि पर ‘गांधी और दलित’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने दलितों और समूचे भारत के लिए आजादी के सही मायनों का गांधीवादी दर्षन पेष किया। सभी इसपर एकमत थे कि जब तक देष में सामाजिक आजादी का वास्तव में आचरण नहीं होगा, तब तक देष सही अर्थों में आजाद नहीं माना जा सकता है। यही महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय, भीमराव अंबेडकर समेत लगभग अधिकतर महानुभावों का दर्षन रहा है।
संगोष्ठि में बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी, जेएनयू के प्रोफेसर आनंद कुमार, भाजपा एमएलसी डा. संजय पासवान, कार्यक्रम संचालक अमलेष राजू समेत कई गणमान्य लोगों ने अपने विचार रखे।

लोकसभा, विधानसभा में आरक्षण गांधी की देन : सुशील मोदी

इस मौके पर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि लोकसभा व विधान सभाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति को जो आरक्षण मिला हुआ है वह गांधी और अम्बेदकर की देन है। छुआछूत दूर करने, मंदिरों में दलितों के प्रवेश आदि के लिए गांधी जी के योगदान को भूलाना संभव नहीं है। गांधी-अम्बेदकर के विचारों को आज एकाकार करने की जरूरत है।

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उन्होंने कहा कि दलितों को पृथक निर्वाचन देकर उन्हें हिन्दू समाज से अलग करने की अंग्रेजों की चाल के विरोध में गांधी जी ने 1932 में यरवादा जेल में रहते हुए आमरण अनशन किया, जिसके बाद गांधी और अम्बेदकर में पूणा पैक्ट हुआ जिस पर पं. मदन मोहन मालवीय, राजा जी, जी डी बिड़ला जैसी हस्तियों ने दस्खत किया। श्री मोदी ने कहा कि विरोध के बावजूद दलितों के मंदिरों में प्रवेश के लिए गांधी जी पूरे देश में अभियान चलाते रहे। दक्षिण के सुदूरवर्ती राज्य केरल के गुरूवायु मंदिर में उन्होंने दलितों को प्रवेश दिलाया। गांधी का कहना था कि हिन्दू धर्म में छुआछूत कलंक है जो कदापि नहीं होना चाहिए।

गांधी और दलित विमर्श एक दूसरे बिना अधूरे : प्रो. आनंद कुमार

इस मौके पर प्रसिद्ध सामाजिक चिंतक एवं जेएनयू के प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि गांधी एक ऐसा विषय है, जो दलित के साथ जोड़ने से जुड़ता नहीं और तोड़ने से टूटता नहीं। उन्होंने बताया कि गांधी ने भारत का दो चेहरा देखा था, एक भारत से बाहर रहकर और एक भारत आकर। उन्होंने बताया कि नेल्सन मंडेला,मार्टिन लूथर किंग और आंग संग सु की ने अपने आंदोलन को सफल बनाने के लिए भारत की सभ्यता और गाँधी के विचारों को अपनाया, जबकि गाँधी के नजदीकी लोगों ने हीं उन्हें हाशिये पर धकेलने की कोशिश की। उन्होंने पूणा समझौता के सारे पहलु पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हमें वादी नहीं होना है,हमें गाँधी के विचारों को अपनाना पड़ेगा। हमें पहले खुद में बदलाव करने की जरूरत है। उन्होंने छुआ-छूत के बारे में कहा कि या तो छुआ-छूत रहेगा या हिन्दू धर्म। अंततः उन्होंने बिहार में एक जाति और उसपर रिसर्च के लिए एक संसथान खुलनी चाहिए।

कास्ट स्टडी एवं रिसर्च सेंटर बनाने की जरूरत : डा. संजय पासवान

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ‘कबीर के लोग’, ‘गाँधी ज्ञान मंदिर’ के संस्थापक एवं वर्तमान बिहार विधान परिसद के सदस्य डॉ संजय पासवान ने कास्ट स्टडी एंड रिसर्च सेंटर बनाने की कोशिश की बात कही। उन्होंने कहा कि जति पर शोध समय की आवयश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया बदलना है,तो उसको पहले समझना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ खास लोगों के गलत हरकत के चलते पूरे समुदाय को गलत ठहराना उचित नहीं है।

चिति के प्रान्त संयोजक कृष्णकांत ओझा ने ‘गाँधी और दलित विमर्श’ के सन्दर्भ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सिद्धांत का जिक्र करते हुए कहा कि दलित विमर्श को समेकित रूप में देखने की आयशकता है। वहीं देव नारायण प्रसाद ने कहा कि बिहार के भलाई के लिए गाँधी को पाठ्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है। कार्यक्रम का आयोजन श्गाँधी ज्ञान मंदिरश्,कबीर के लोगश्, और चिति नामक संस्था ने सम्मिलित रूप से किया। मंच का संचालन वरीय पत्रकार अमलेश राजू ने किया।