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संघ प्रमुख के संबोधन में समर्थ भारत के निर्माण की दृष्टि, 10 बिंदुओं में समझें

अक्षय त्रितीय के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत का सम्बोधन कई अर्थों में ऐतिहासिक रहा। वे अपने संबोधन के शब्द—शब्द से विश्व सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के सर्वोच्च पद की जिम्मेदारी का बोध करा रहे थे। वहीं कोरोना जैसे वैश्विक संकट को अवसर में बदलकर समर्थ भारत के निर्माण की एक दृष्टि भी स्पष्ट दिख रही थी। इस बौद्धिक के विस्तृत क्षीतिज में तुष्टीकरण की राजनीति निष्तेज होती दिखी। वैसे उनके इस भाषण में भी हिंदू-मुस्लिम आधार पर चल रहे नैरेटिव व तुष्टीकरण की राजनीति के लिए कुछ पोषक तत्व ढूंढने का प्रयास भी मीडिया जगत में होता दिखा।

1. इस भीषण संकट के काल में संघ की गतिविधियों को स्थगित करने की बात का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एकांत में आत्मसाधना और लोकांत में परोपकार यही व्यक्ति के जीवन का और संघ कार्य का स्वरुप है।

2) संघ स्वार्थ, प्रसिद्धि या अपना डंका बजाने के लिए सेवाकार्य नहीं करता। 130 करोड़ लोगों का समाज अपना समाज है, यह अपना देश है, इसलिए हम कार्य करते हैं। जो पीडित – वो अपने, सब के लिए कार्य करना है। कोई छूटे नहीं। यही हमारा संकल्प है।

3)जितनी शक्ति- उतनी सेवा हमारी परंपरा है। इसी भाव से हमने विश्व की भी यथासंभव सहायता की है।

4) इस संकट का सामना करने में हम इस लिए सफल हो पा रहे हैं क्योंकि सरकार ने चुनौती को समझ कर तत्परता से कार्य किया और समाज ने भी उसी तत्परता से अनुसरण किया।

5) अगर कोई गलती करता है तो पूरे समूह को नहीं लपेटना, पूरे समाज से दूरी नहीं बनानी चाहिए। 130 करोड का समाज भारत माता की संतान और अपना बंधु है। समाज के प्रत्येक वर्ग का नेतृत्व अपने अपने समाज को भय और क्रोधवश होने वाले कृत्यों से बचाते हुए सकारात्मकता का वातावरण देश में निर्माण करे।परिस्थिति का लाभ उठाकर देश तोडने वाली शक्तियों के मंसूबे सफल नहीं होने देंगे। पालघर में हुए पूज्य संतों की हत्या पर दुख व्यक्त करते हुए 28 अप्रैल को उन्हें अपने अपने घरों में श्रद्धांजली देने का आहवान किया।

6) हनुमान का उदाहरण सम्मुख रखकर धृति,मति, दृष्टि, दाक्ष्य यानि सावधानी पूर्वक कार्य करें।नियम पालन जीवन का स्वभाव बने।जब तक हम इस लडाई को जीत नहीं जातेतब तक सावधानी नहीं छोडनी। भविष्य में राहत कार्य के साथ समाज को दिशा देने का कार्य भी हमें करना होगा।

7) स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग,जल एवं वृक्षों का संरक्षण, स्वच्छता, प्लास्टिक से मुक्ति , जैविक कृषि वाला हमारा आचरण बने। समाज नागरिक अनुशासन का पालन करे, यही देशभक्ति है।

8) स्वावलंबन अर्थात रोजगार मूलक, कम उर्जा का खपत करने वाली, पर्यावरण का संरक्षण करने वाली आर्थिक विकास की नीति ही अब राष्ट्र निर्माण का अगला चरण होगा।

9) शासन- प्रशासन – समाज अपनी जिम्मेदारी निभाये। समाज में त्याग और समझदारी का भाव बनाये रखना होगा। परस्पर सदभाव, संवाद और शांति से ही हम इस संकट पर विजयी होंगे। संस्कारों की निर्मिति का कार्य अपने एवं अपने परिवार के आचरण से प्रारंभ करें।

10) समाजोन्मुख प्रशासन- देशहित मूलक राजनीति- संस्कारमूलक शिक्षा और श्रेष्ठ आचरण वाले समाज के द्वारा ही हम इस संकट को अवसर बना कर भारत का उत्थान कर सकते हैं। संकट की इस घडी में अपने उदाहरण से विश्व की मानवता का नेतृत्व करने योग्य अपना देश बने यह हम सबकी भूमिका है।