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सभी भारतीय भाषाएं हैं राष्ट्रभाषा : प्रो. अग्निहोत्री

नई दिल्ली : ”सभी भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं, इसलिए किसी भाषा को क्षेत्रीय भाषा और किसी को राष्ट्रीय भाषा कहना ठीक नहीं होगा। जिस दिन हमारे शिक्षकों ने भारतीय भाषाओं में पढ़ाना शुरू कर दिया, उस दिन हिन्दुस्तान अन्य देशों से बहुत आगे निकल जाएगा।” यह विचार हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने सोमवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में व्यक्त किए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की। आयोजन में प्रसिद्ध लेखिका एवं दैनिक हिंदुस्तान की कार्यकारी संपादक श्रीमती जयंती रंगनाथन मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुईं। इसके अलावा नवभारत टाइम्स, मुंबई के पूर्व संपादक श्री विश्वनाथ सचदेव, दैनिक जागरण, नई दिल्ली के सह-संपादक श्री अनंत विजय और पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सी जयशंकर बाबु ने भी वेबिनार में अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी भी विशेष तौर पर उपस्थित थे।

‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय भाषाएं’ विषय पर मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य भारतीय भाषाओं को सम्मान दिलाना है। इस दिशा में सभी लोगों को एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि भाषा, ज्ञान नहीं है, बल्कि ज्ञान तक पहुंचने की कुंजी है। इसलिए अगर विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में ज्ञान लेंगे, तो उनका संपूर्ण विकास संभव हो पाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह मां का दूध बच्चे के लिए सुपाच्य यानी आसानी से पचने वाला और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, उसी तरह मातृभाषा में लिया गया ज्ञान भी बच्चे के जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।

प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि इस नई शिक्षा नीति से भारत में ज्ञान विज्ञान की क्रांति होगी, जिसमें शिक्षकों को महत्वपूर्ण निभानी होगी।

अंग्रेजी के चक्रव्यूह से निकलेंगे आधुनिक अभिमन्यु : प्रो. संजीव शर्मा

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि अंग्रेजी का जो चक्रव्यूह हमारे चारों तरफ है, उससे बाहर आने में आधुनिक अभिमन्यु पूरी तरह से सक्षम हैं। प्रो. शर्मा ने कहा कि ये भारत के शैक्षिक पुर्नजागरण का काल है, जिसमें गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तकों के निर्माण की आवश्यकता है।

प्रो. शर्मा ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय का भाव आवश्यक है। भारतीय भाषाओं में कोई विभेद नहीं है, कोई संघर्ष नहीं है। अगर हमें भाषाओं को सींचना है, तो सभी को मिलजुलकर प्रयास करने होंगे, जिसमें महत्वपूर्ण भूमिका हिंदी भाषी लोगों को निभानी होगी।

एक बहती नदी है हिंदी : रंगनाथन

इस मौके पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए प्रसिद्ध लेखिका एवं दैनिक हिंदुस्तान की कार्यकारी संपादक जयंती रंगनाथन ने कहा कि हिंदी एक बहती नदी है। आप देखिए कि हिंदी के अखबार 30 वर्ष पहले सिर्फ 3 लाख प्रतियां छापते थे, लेकिन आज ये आंकड़ा 3 करोड़ के पार पहुंच चुका है। यही हिंदी की ताकत है।

रंगनाथन ने कहा कि तमिल मेरी मातृभाषा है, पर हिंदी मेरी कर्म भाषा है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का जोर होता है कि बच्चे स्कूल में हिंदी में न बात करें, पर अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हुए बच्चों को हमने ये सिखाया ही नहीं कि जीवन में चुनौतियों का सामना किस तरह करना है। आज हम यह भूल गए हैं कि शिक्षा का मकसद क्या है।

जिंदगी और शिक्षा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा हमें ये सिखाती है कि जिंदगी भागने का नाम नहीं, बल्कि रुकने और संभलकर चलने का नाम है। एक अच्छा नागरिक बनना और आशावादी जिंदगी जीना, यही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। रंगनाथन ने कहा कि आने वाले दिनों में ये नई शिक्षा नीति हमारे बच्चों को ज्ञान की दृष्टि से ताकतवर बनाएगी।

जोड़ती है मातृभाषा : सचदेव

नवभारत टाइम्स, मुंबई के पूर्व संपादक विश्वनाथ सचदेव ने अपने संबोधन में कहा कि अंग्रेजी के माध्यम से हम दुनिया से तो जुड़ सकते हैं, लेकिन अपने आप से नहीं जुड़ सकते। अगर हमें स्वयं से जुड़ना है, तो हमें मातृभाषा का इस्तेमाल करना ही होगा।

उन्होंने कहा कि किसी विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षित होकर आप अपने आप को पूर्ण शिक्षित नहीं मान सकते। शिक्षा के माध्यम से हम मनुष्य बन सकें, यही शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य होना चाहिए। सचदेव ने कहा कि जब तुर्की एक रात में अपनी भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित कर सकता है, तो ये काम हमारे यहां क्यों नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि हमारा संकट ये नहीं है कि हमारी भाषा क्या होनी चाहिए, बल्कि हमारा संकट ये है कि किसी भी भाषा को सीखने का हमारा उद्देश्य क्या होना चाहिए। किसी भी शिक्षा नीति का उद्देश्य व्यक्ति को एक अच्छा इंसान बनाना होता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि क्या पढ़ाया जाए और कैसे पढ़ाया जाए। सचदेव ने कहा कि नई शिक्षा नीति ये एहसास कराती है कि मातृभाषा में भी बच्चों को शिक्षित किया जा सकता है।

हिंदी और भारतीय भाषाओं को मिलकर चलना होगा : विजय

भारतीय भाषाओं पर अपनी बात रखते हुए दैनिक जागरण, नई दिल्ली के सह-संपादक अनंत विजय ने कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाएं एक दूसरे के साथ मिलकर चलेंगी, तो दोनों मजबूत होंगी। उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा नीति के बाद अगर आप देखें, तो पहली बार एक संपूर्ण और नई शिक्षा नीति आई है। इससे पहले जितनी भी नीतियां आई हैं, उन्हें नई न कहकर संशोधित नीतियां कहना ज्यादा बेहतर होगा।

विजय ने कहा कि नई शिक्षा नीति भारत की ज्ञान परंपरा को केंद्र में रखते हुए काम करने पर जोर देती है। उन्होंने कहा कि भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है।

भारतीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तक निर्माण की चुनौतियों पर बोलते हुए विजय ने कहा कि भारत में लगभग 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं और 850 के आसपास राज्य विश्वविद्यालय हैं। अगर हम इसमें निजी विश्वविद्यालयों को भी शामिल कर लें, तो कुल मिलाकर लगभग 1,000 से अधिक विश्वविद्यालय होते हैं। अगर एक विश्वविद्यालय एक वर्ष में सिर्फ 2 पुस्तकों का भी निर्माण करे, तो एक वर्ष में लगभग 2,000 किताबें छात्रों के लिए तैयार होंगी।

विजय ने कहा कि जैसे ही आप भारत कें​द्रित पाठ्यक्रम की बात करेंगे, तो लोग विरोध में खड़े हो जाएंगे। ऐसा कहा जाएगा कि भारतीय भाषाओं में ज्ञान की बात नहीं हो सकती, अगर आपको ज्ञान की बात करनी है, तो सिर्फ अंग्रेजी में ही हो सकती है। जबकि आप देखिए कि जर्मनी में लोग संस्कृत भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तकालय किसी भी शिक्षा नीति को सफल बनाने का सबसे महत्वपूर्ण उपक्रम है।

भारतीय भाषाओं के व्यवहारिक प्रयोग की आवश्यकता : डॉ. बाबु

इस मौके पर पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सी जयशंकर बाबु ने कहा कि भारतीय भाषाओं के व्यवहारिक प्रयोग पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया की कुल भाषाओं में से एक तिहाई भाषाएं हमारे पास हैं, लेकिन हमने अब तक मुठ्ठीभर भाषाओं को शिक्षण में अपनाया है।

उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा में भाषा को लेकर शिक्षा नीति में अभी उतनी स्पष्टता नहीं है, जितनी प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर है, लेकिन हमें इससे प्रेरणा लेते हुए उच्च शिक्षा में भी भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करने चाहिए। डॉ. बाबु ने तमिलनाडु का जिक्र करते हुए कहा कि वहां राज्य की नौकरियों में मातृभाषा में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को प्राथमिकता दी जाती है, क्या ऐसी पहल अन्य राज्यों में नहीं होनी चाहिए।

डॉ. बाबु ने कहा कि तमिलनाडु में इंजीनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम तमिल भाषा में पढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। ये पहल सराहनीय है और ऐसे ही प्रयासों से भारतीय भाषाएं ताकतवर होंगी।

कार्यक्रम का संचालन भारतीय जनसंचार संस्थान की छात्र संपर्क अधिकारी विष्णुप्रिया पांडे ने किया। वेबिनार के अंत में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने इस ज्ञान यज्ञ में भाग लेने के लिए सभी वक्ताओं का धन्यवाद दिया।