प्रशांत भूषण पर ₹1 जुर्माना नहीं, बल्कि टुकड़े-टुकड़े गैंग को सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा संदेश-पप्पू वर्मा
पटना : पटना विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य पप्पू वर्मा ने कहा कि नामी-गिरामी वकील प्रशांत भूषण अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भूषण पर एक रुपए का आर्थिक दंड लगाया है। यह छोटी राशि नहीं है, बल्कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक संदेश है। यह संदेश उन लोगों के लिए है, जो अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने संवैधानिक ढांचा पर चोट पहुंचाना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि इस संदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने जता दिया है कि कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं हो सकता, चाहे छोटा हो या चाहे वह कितना भी बड़ा हो। अवमानना के मामले में अधिकतम अर्थदंड की सजा केवल ₹2000 ही दी जा सकती है। ₹2000 के अर्थदंड की सजा दी जाती तो भी प्रशांत भूषण के लिए यह सजा समुंद्र में एक बूंद पानी के बराबर होता। सुप्रीम कोर्ट इसीलिए सबसे छोटी राशि तय किया, क्योंकि भारत में ₹1 से नीचे का सिक्का जारी होना बंद हो गया है। सही मायने में एक रुपए का ही आर्थिक दंड देकर सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया कि भविष्य में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सुप्रीम कोर्ट के साथ कोई खिलवाड़ नहीं करे। भारतवासी अदालत पर पूर्ण भरोसा करती है।
वर्मा ने जानकारी दी कि प्रशांत भूषण को लग रहा था उनके पीछे बहुत बड़े-बड़े लोग हैं। उन्हीं लोगों के कारण वे सुप्रीम कोर्ट से माफी नहीं मांगने पर अडिग थे। उन्हें भ्रम हो गया था कि उनके लोग सुप्रीम कोर्ट को भयभीत कर देंगे। हालांकि सजा सुनाए जाने की जानकारी मिलते ही लुटियन गैंग सक्रिय हो गया। प्रशांत हमेशा लुटियन गैंग को कानून का सहारा लेकर संरक्षण देते रहे हैं। भूषण को कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि वे वैसे लोगों को हमेशा संरक्षण देते रहे हैं , जो लोग देश के दुश्मन हैं।
वर्मा ने कहा कि भूषण के लोग ही, उन्हें ही पूरी तरह से बर्बाद करना चाह रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन भूषण नहीं करते तो उन्हें 3 महीने की क़ैद के साथ ही साथ 3 वर्षों तक वकालत करने से वंचित रखा जाता। इन 3 वर्षों के बीच भूषण के साथ जुड़े टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग उन्हें भूल जाते और उनकी वकालत खत्म होने के कगार पर पहुंच जाती।
वर्मा ने कहा कि हालांकि प्रशांत भूषण हमेशा से ही देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त तमाम लोगों का पैरोकार रहे हैं। भूषण काले कोट के आड़ में कानून में छेद का फायदा उठाकर देश के संवैधानिक ढांचा को चकनाचूर करने का प्रयास करते रहे हैं। लेकिन अपने-आप को फंसते हुए देख भूषण अर्थदंड की सजा सुनने के बाद मामले को समझ गए और बहुत ही चालाकी से यह कहते हुए अर्थदंड की सजा को चैलेंज देंगे, ₹1 जमा करवा देने की बात स्वीकार कर अपनी इज्जत तो बचाई ही अपने पेशे को बर्बाद होने से भी बचा लिया। लेकिन सजायाफ्ता मुजरिम करार दिए जाने के बाद प्रशांत भूषण के आने वाली पीढ़ी दशकों तक उन्हें सजा पाने वाले मुजरिम के रूप में याद करते रहेंगे और वे अपने पुरखों के लिए काला धब्बा बने रहेंगे ।