पैरासाइट : परजीवी समाज की प्रतिछाया

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A scene from the movie Parasite

किसी घटना का पहली बार होना ही अपने आप में महत्वपूर्ण है। विश्व सिनेमा के सर्वाधिक प्रतिष्ठित समारोह आॅस्कर में इस वर्ष जब दक्षिण कोरिया की फिल्म जीसैंगचुंग (पैरासाइट) को ’बेस्ट पिक्चर’ का पुरस्कार मिला, तो सिनेमा जगत के लोगों का मुंह खुला का खुला रह गया। हो भी क्यों न! अकादमी अवार्ड के 92 साल के इतिहास में पहली किसी गैर-अंग्रेजी भाषा की फिल्म को बेस्ट पिक्चर का पुरस्कार मिला है। इससे पहले तक गैर-अंग्रेजी भाषा की फिल्मों को मुख्य पुरस्कार से हटकर ’बेस्ट पिक्चर इन फाॅरेन लैंग्वेज’ की श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता रहा है।

पैरासाइट की कहानी कोरिया में रहने वाले दो परिवारों की है, जिनकी आर्थिक स्थिति में काफी अंतर है। यह एक ब्लैक कॉमेडी है जिसमें सोशल स्टेट्स, महत्वाकांक्षाओं, भौतिकवाद और पितृसत्ता से जुड़े तत्व हैं। किम परिवार एक अपार्टमेंट के बेसमेंट में रहता है। रोजगार की तलाश में की-वू पार्क परिवार की बेटी को ट्यूशन पढ़ाने लगता है। धीरे-धीरे की-वू अपने पिता, मां व बहन को भी पार्क परिवार के यहां नौकरी लगवा देता है। इस तरह किम परिवार रोजगार के लिए पार्क परिवार पर निर्भर है, वहीं पार्क परिवार घरेलू कार्यों के लिए किम परिवार पर निर्भर है। जैसे परजीवी (पैरासाइट)। फिल्म का शीर्षक ’पैरासाइट’ भी इसी कथा बोध के कारण है। बौंग जून-हो की पैरासाइट हास्य की हल्की फुहारों के बीच आर्थिक असमानता की गंभीर बात कहती है। इस फिल्म की कहानी भले ही दक्षिण कोरिया की हो। लेकिन, यह भारत पर भी फिट बैठती है। छोटे कीट-पतंग अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर होते हैं, इन्हें पैरासाइट कहा जाता है। इसी तरह एक मनुष्य अपनी रोजी के लिए दूसरे मनुष्य पर निर्भर है।

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निर्देशक ने दो परिवारों की कथा को पूरे काॅन्ट्रास्ट के साथ फिल्माया है। परिवेश, परिधान, परिसंवाद और सबसे बढ़कर पटकथा में यह काॅन्ट्रास्ट उभरकर आता है। कथा-कहन के इस प्रारूप को देखकर शेक्सपियर की रचानाएं याद आती हैं, खासकर त्रासद भरे क्लाइमेक्स को देखकर। हास्य वाले दृश्य के ठीक बाद तनाव वाला दृश्य। खुशियों की घड़ी में खतरे की घंटी का बजना। काॅन्ट्रास्ट तकनीक, चुटीले संवाद, किरदारों के टकराव आदि ने पटकथा को चुस्त रखने में मदद की है। किरदारों की बुनावट पर विशेष ध्यान है। मुख्य पात्रों के चारित्रिक गुणों/अवगुणों को बिंबों, दृश्यों, संवादों के माध्यम से उभारा गया है। इससे कथा को संबल मिला है। पूरी फिल्म पर बौंग का स्पष्ट नियंत्रण है। फिल्म कहीं भी अपने मूल विषय से फिसलती नहीं है। इस प्रकार सिनेशास्त्र की बारीकियों का खयाल बौंग ने रखा है। लेकिन फिल्म के अंत में की-वू का किरदार सिनेमाघर में नैराश्य का भाव पसार देता है। हौंग क्यूंग प्यो के कैमरे ने पार्क परिवार के बेसमेंट, किम के घर में पानी घुसने आदि के दृश्यों को प्रभावशाली तरीके से शूट किया है।

दक्षिण कोरिया के दिग्गज फिल्मकार बौंग जून-हो पैरासाइट के लिए बेस्ट पिक्चर का आॅस्कर जीतकर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा दिया। बौंग दुनिया भर के उन सभी फिल्मकारों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं, जो अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में फिल्में बनाते हैं। एकैडमी अवार्ड्स की विडंबना रही है कि दुनिया के महान फिल्मकारों सत्यजीत रे, अकीरा कुरोसावा, इग्मर बर्गमैन, फ्रैंक ट्रूफो, विटिरियो डिसिका, माजिद मजिदी आदि ने अनेक कालजयी फिल्में बनायीं। लेकिन, वे आॅस्कर की बेस्ट पिक्चर वाले द्वार नहीं पहुंच पायीं। शायद, सिर्फ इस कारण से कि इन फिल्मकारों ने अंग्रेजी से इतर भाषा में अपनी फिल्में बनायीं। अब पैरासाइट ने उस बैरियर को तोड़ दिया है।

पैरासाइट को पुरस्कृत करने में दो तरह के नैरेटिव हो सकते हैं। पहला तो यह कि पैरासाइट सचमुच में इतनी महान फिल्म है, इसलिए आॅस्कर वालों को परंपरा से परे जाकर उसे बेस्ट पिक्चर की ट्राॅफी थमानी पड़ी। दूसरा पक्ष है कि आॅस्कर एक लोकप्रिय किस्म का पुरस्कार समारोह है, जो अमेरिका के व्यावसायिक सिनेमा उद्योग का अपने तरीके से प्रचार करता रहा है और आॅस्कर अंग्रेजी भाषा की परिधि से निकलकर अपने लिए व्यापक क्षितिज की तलाश में है। इस मोड़ पर पैरासाइट फिल्म की कहानी आॅस्कर, अमेरिकी फिल्म उद्योग व शेष विश्व का सिनेमा बाजार पर फिट बैठती प्रतीत हो रही है। यानी जिस प्रकार पैरासाइट फिल्म में किम परिवार व पार्क परिवार एक दूसरे पर निर्भर रहता है। उसी प्रकार की निर्भरता की गुंजाइश अमेरिकी सिने उद्योग तलाश रहा है। 21वीं सदी के आरंभ में भारतीय युवतियों को ताबड़तोड़ विश्वसुंदरी का ताज पहनाया जाना भी बाजार आधारित निर्भरता की पुष्टि की थी।

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