‘नोटा की नोटिस’ से बेचैन हुए नेताजी, पढ़ें कैसे?

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पटना : बिहार में एनडीए भले प्रचंड बहुमत से लौटा हो, पर कुछ आंकड़े सभी दलों के दांत खट्टे कर सकते हैं। देशभर के चुनाव नतीजों में बिहार में सर्वाधिक सवा आठ लाख वोट नोटा को मिले। यानी सवा 8 लाख वोटरों ने उपयुक्त में से किसी भी प्रत्याशी को वोट देना उचित नहीं समझा। कई लोकसभा सीटों पर तो नोटा वोट तीसरे नंबर पर रहा। बिहार के गोपालगंज लोकसभा सीट पर सबसे अधिक 51 हजार 660 वोट नोटा में गिराए गए। वहीँ दूसरे नंबर पर पश्चिमी चंपारण रहा जहां 45 हजार 699 नोटा वोटर पाए गए।

राजद नीत महागठबंधन को बड़ी चेतावनी

बिहार में इतनी अधिक संख्या में नोटा वोट का गिरना महागठबंधन के लिए कुछ ज्यादा चिंता का विषय हो सकता है। दरअसल, महागठबंधन द्वारा उतारे गए 40 उम्मीदवारों को कई सीटों पर जनता की ओर से नकारे जाने का संकेत मिला है। बिहार में एनडीए के तमाम घटक दलों को बम्पर वोट मिले। जबकि महागठबंधन के घटक दलों के वोट प्रतिशत में काफी गिरावट देखने को मिला। खासकर राजद और कांग्रेस के वोटों में। राजद 19 सीटों पर चुनावी मैदान में था और इस वजह से उसका वोट प्रतिशत 20 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत पर आ गया है। इस चुनाव में महागठबंधन के अन्दर आपसी कलह की वजह से योग्य उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिल पाया। नतीजा वोटरों में पार्टी और उतारे गए प्रत्याशी के प्रति नाराजगी दिखी। कहा तो यह भी जा रहा है कि यही नाराजगी और राजद के पारंपरिक वोटर सही प्रत्याशी न उतारे जाने की वजह से नोटा की ओर रुख कर गए। मधेपुरा, किशनगंज, कटिहार, भागलपुर जो कभी महागठबंधन के घटक दलों के गढ़ माने जाते थे, वहां नोटा वोटरों की संख्या लगातार बढ़ी।

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सवर्ण बहुल इलाको में भी खूब पड़े नोटा मत

बिहार में सवर्ण बहुल इलाकों में भी नोटा की संख्या में काफ़ी इजाफा हुआ है। गोपालगंज और प.चम्पारण के अलावा वाल्मीकिनगर, पूर्वी चंपारण, बक्सर और सारण में नोटा वोटरों की संख्या बढ़ी है। वाल्मीकिनगर में 34338, पूर्वी चंपारण में 22706, बक्सर में 16379, सारण में 28267 और महाराजगंज में 22168 वोट नोटा में पड़े।

मत प्रतिशत बढ़ाने में नोटा का भी योगदान

दरअसल, बिहार में मत प्रतिशत तो बढ़ा पर बढ़ता मत प्रतिशत ही प्रत्याशी और पार्टियों पर भारी पड़ने लगा। नोटा वोट की जरूरत मतदाता को तभी पड़ती है जब उनके पास मौजूद उम्मीदवारों में से कोई बेहतर विकल्प न हो। मतदाता साफ़-सुथरी छवि और कर्मठ उम्मीदवार चुनने की कोशिश करते हैं और जब वे किसी भी उम्मीदवार को उसके अनुकूल नहीं पाते तो नोटा का विकल्प चुनते हैं। मतलब साफ है कि जो मत प्रतिशत बढ़ा, उसमें नोटा का भी बड़ा हिस्सा शामिल है।

आन्ध्र में भाजपा कांग्रेस से ज्यादा वोट नोटा को

आन्ध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनाव संग हुए। दोनों ही चुनावों में उम्मीद के अनुरूप भाजपा और कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। पर बड़ी बात तो यह है कि लोकसभा और विधानसभा दोनों में ही नोटा का वोट प्रतिशत देश की 2 बड़़ी पार्टियों से भी अधिक रहा। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 0.96 प्रतिशत वोट तो 1.29 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले जबकि नोटा के पक्ष में 1.50 प्रतिशत मत पड़े। वहीँ विधानसभा चुनाव में भाजपा को 0.54 प्रतिशत, कांग्रेस को 1.17 प्रतिशत मत मिले और नोटा यहां भी 1.28 प्रतिशत के साथ आगे रही।

नोटा का सबक एनडीए के लिए भी

बिहार में कई सीटों पर नोटा वोट तीसरे नंबर पर रहा। पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चम्पारण, अररिया, जमुई, सारण, आरा, नवादा, समस्तीपुर और भागलपुर में एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशियों के बाद सबसे अधिक वोट नोटा को मिले। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के लिए नोटा भारी चिंता का विषय बनकर उभरा है। राजनीतिक दलों के सामने आत्ममंथन की स्थिति आन पड़ी है। बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां जल्द शुरू की जायेेंगी। महागठबंधन के घटक दलों के लिए मौजूदा चुनाव परिणाम एक सबक की तरह हैं। उन्हें सोचना होगा कि पारंपरिक वोटर क्यों बिदके और नोटा में क्यों तब्दील हो गए?

सत्यम दुबे

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