मुसलिम देश में मंदिर, मसूद अजहर पर शिकंजा, फ्रांस से रफाल…मोदी हैं तो मुमकिन है
यह मोदी सरकार की विदेश नीति का दूसरा शिखर है कि आतंकवाद की नर्सरी चलाने वाला पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ गया, डोकलाम विवाद में चीन की हेकड़ी नहीं चली, संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया और जब भारत ने पड़ोसी देश के आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की, तब दुनिया ने हमारा साथ दिया।
अगर पश्चिमी देश फ्रांस से भारत राफेल जैसा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान अनुकूल शर्तों पर खरीदने में सफल रहा और तो पूर्वी देश जापान हमें बुलेट ट्रेन की सौगात देने को राजी हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इन दोनों बड़े देशों की 3-3 बार यात्रा कर यह उपलब्धि प्राप्त की। जो लोग प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं गिनते रहे और खर्च के आंकड़ों पर नजर गड़ाये रहे, उन्होंने इन श्रम-साध्य यात्राओं की दूरगामी उपलब्धियों की ओर से नजर फेर लेने का राजनीतिक दुराग्रह ही प्रकट किया।
26 मई 2014 को जब नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि तीन बार एक राज्य का मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति के पास कोई वैश्विक दृष्टि भी होगी। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर मीडिया के कथित सेक्युलर-वामपंथी समुदाय ने लगातार 12 साल तक मुहिम चलाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के बारे में जो दुराग्रह निर्मित किया था, उसके कारण राष्ट्रीय राजनीति में उनसे परहेज रखने वालों की कमी नहीं थी। अटल-आडवाणी युग के एनडीए में नीतीश कुमार और राम विलास पासवान भी मीडिया-रचित दुराग्रह के कारण मोदी को नापसंद करते थे। इसके चलते बिहार में नीतीश कुमार 17 साल की दोस्ती तोड़ कर भाजपा से अलग हो गए थे। 13 जुलाई 2013 को बिहार में एनडीए टूट गया था। उस विपरीत वातावरण में राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री-पद का प्रत्याशी घोषित करने का अद्भुत् साहस दिखाया था। निश्चय ही, भाजपा के इस बड़े फैसले के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अविचल आशीर्वाद बना रहा। संगठन के भीतर और बाहर कड़े विरोध-प्रतिरोध का सामना करते हुए मोदी जब 16 वीं लोकसभा के लिए धुआंधार प्रचार कर रहे थे, तब किसी को भरोसा नहीं था कि उन्हें बहुमत मिलेगा। मतदाताओं ने ऐसा जनादेश दिया कि सारे पूर्वानुमान धरे रह गए। जब वे अकेले भाजपा को 282 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत दिलाने में सफल हो गए और एनडीए सरकार ने सत्ता संभाल ली, तब यह सवाल उठाया जाता था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में करियर शुरू करने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव छोड़ पाएगा?
इस सवाल का उत्तर आज सबके सामने है। 55 महीने सरकार चलाने के बाद मोदी विश्व के 10 शीर्ष नेताओं में हैं। भारत की विदेश नीति का लोहा दुनिया मान रही है। अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने पाकिस्तान से श्रीलंका तक, सभी पड़ोसी देशों के शासनाध्यक्षों को आमंत्रित कर विदेश नीति के नये वास्तुशिल्प की जो आधारशिला रखी, वह अब भारत के विदेश-राजनय में बुर्ज खलीफा जैसी गगनचुंबी इमारत बन चुकी है। शुरुआत पड़ोस से कर उन्होंने संदेश दिया कि भारत के लिए पड़ोसी न केवल महत्वपूर्ण हैं, बल्कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने में पड़ोस का साथ आवश्यक है। उनकी सरकार की ओर से पड़ोस में शांति-सौहार्द और विकास के लिए यह पहला संदेश था। जब उन्होंने दुनिया की बड़ी ताकतों से रिश्ते मजबूत करने का संकल्प लिया, तब सबसे ज्यादा 5-5 बार अमेरिका और चीन का दौरा किया। वे 4-4 बार रूस, सिंगापुर, जर्मनी और नेपाल गए। इनमें दो यूरोप के बड़े देश थे, तो दो एशिया के विकासशील देश थे। अगर पश्चिमी देश फ्रांस से भारत राफेल जैसा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान अनुकूल शर्तों पर खरीदने में सफल रहा और तो पूर्वी देश जापान हमें बुलेट ट्रेन की सौगात देने को राजी हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इन दोनों बड़े देशों की 3-3 बार यात्रा कर यह उपलब्धि प्राप्त की। जो लोग प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं गिनते रहे और खर्च के आंकड़ों पर नजर गड़ाये रहे, उन्होंने इन श्रम-साध्य यात्राओं की दूरगामी उपलब्धियों की ओर से नजर फेर लेने का राजनीतिक दुराग्रह ही प्रकट किया।
टोक्यो से लंदन तक मोदी-मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विदेश यात्रा में सरकारी खर्च पर पत्रकारों को ले जाने की परिपाटी समाप्त की और यह नई शुरुआत की कि वे जिस भी देश में गए, वहां के भारतीय प्रवासियों के साथ संवाद स्थापित कर उन्हें गौवान्वित किया। लंदन,वाशिंगटन, टोक्यो, पेरिस, बर्लिन, मास्को, सिडनी जैसे अनेक राजधानी शहरों में मोदी-मोदी के नारे लगे। विपक्ष ने इसे इवेंट मैनेजमेंट बता कर इसकी चमक फीकी करने की कोशिश की। विदेशी धरती पर प्रधानमंत्री ने हिंदी में भाषण दिया और प्रायः भारतीय परिधान में रहे। 70 साल बाद ऐसा हुआ कि किसी प्रधानमंत्री ने हर देश में बसे हजारों प्रवासी भारतीयों का भारत-प्रेम जगाया। उनसे पहले शायद ही कभी किसी प्रधानमंत्री ने विदेश यात्रा के दौरान प्रोटोकोल से बाहर निकल कर अपने हमवतन लोगों से मिलने का वक्त निकाला होगा। पत्रकारों-संपादकों को साथ न ले जाने से सरकारी पैसे की बचत तो हुई, लेकिन इसका नुकसान भी हुआ। मुफ्त की ऐश्वर्य यात्रा के अभ्यस्त संपादकों में से कई महानुभाव प्रधानमंत्री-निंदा क्लब में शामिल हो गए। महंगे होटलों का खर्च बचाने के लिए प्रधानमंत्री ने अपने कार्यक्रम ऐसे बनवाये कि रात्रि विश्राम की अवधि विमान में बीते। प्रचारक प्रधानमंत्री ने यात्राओं पर कम से कम खर्च कर बड़ी से बड़ी मंजिलें हासिल कीं।
मुसलिम देश में मंदिर और योग
हम भारत में राम मंदिर निर्माण के लिए राजनीतिक-वैधानिक और सामाजिक स्तर पर वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं, जबकि मोदी की विदेश नीति ने मात्र 4 साल के प्रयास के बाद संयुक्त अरब अमीरात जैसे मुसलिम देश की राजधानी अबू धाबी में इसी 20 अप्रैल 2019 को पहले हिंदू मंदिर का शिलान्यास करा दिया। 2015 में जब मोदी पहली बार अबू धाबी गये थे, तभी वहां की सरकार ने उनके आग्रह पर अल रहबा के पास मंदिर निर्माण की मंजूरी दी थी। उनके आग्रह पर संयुक्त राष्ट्र ने भारत के योग का महत्व स्वीकार किया और 21 जून 2015 से अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का शुभारम्भ हुआ। अब पूरी धरती पर 21 जून को 192 देशों के करोड़ों लोग सामूहिक रूप से योगाभ्यास करते हैं। इनमें मुसलिम देश भी शामिल होते हैं। भारत की सनातन संस्कृति से निसृत योग को वैश्विक स्वीकृति दिलाना क्या मोदी सरकार की मामूली उपलब्धि है?
480 समझौते, 7 सम्मान, कम खर्च
पांच साल में मोदी की 92 विदेश यात्राओं पर कुल 2021 करोड़ रुपये खर्च हुए, जबकि यूपीए-1 के समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 50 विदेश यात्राओं पर 1350 करोड़ रुपये खर्च हुए। मोदी के हर दौरे पर जहां औसतन 22 करोड़ खर्च हुए, वहीं अर्थशास्त्री पीएम की हर विदेश यात्रा लगभग 27 करोड़ की पड़ी थी। खर्चीले मनमोहन सिंह विदेश नीति को कोई धार नहीं दे पाये। मितव्ययी मोदी ने 93 विदेश यात्राएं कर ऐसे 480 समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिनसे रक्षा, व्यापार, कालेधन पर अंकुश, भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण, जल वायु संरक्षण, पेट्रोल आयात की सुगमता, मेक इन इंडिया के जरिये देश में रोजगार सृजन जैसे अनेक क्षेत्रों में भारत का हित सुरक्षित किया गया। कुल 16 साल प्रधानमंत्री रहने वाली इंदिरा गांधी ने 113 विदेश यात्राएं की थीं। पांच साल में 93 देशों की यात्रा कर मोदी ने रूस, अफगानिस्तान और सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित अन्तराष्ट्रीय स्तर के 7 पुरस्कार प्राप्त किये।
सियोल शांति पुरस्कार
चुनाव से पहले वे आखिरी विदेश यात्रा पर दक्षिण कोरिया गए थे, जहां उन्हें सियोल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। उनसे पहले यह पुरस्कार पाने वाले तीन लोग बाद में नोबेल पुरस्कार से अलंकृत हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश नीति को नई ऊंचाई दी और भारत का मान बढ़ाया। यह विदेश नीति की सफलता का दूसरा शिखर है कि आज आतंकवाद की नर्सरी चलाने वाला पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ गया, डोकलाम विवाद में चीन की हेकड़ी नहीं चली, संयुक्त राष्ट्र ने भारत की दलील स्वीकार कर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया और जब भारत ने पड़ोसी देश के आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की, दुनिया हमारे साथ थी। अच्छी बात है कि विदेश नीति के मोदी-प्रभाव को महसूस करने वालों की कमी नहीं है। जो लोग मोदी की विदेश यात्राओं पर सवाल उठाते हैं, वे विदेश में छुट्टी मनाने वाले राहुल गांधी से कुछ नहीं पूछते।
(शीघ्र प्रकाश्य स्वत्व पत्रिका के मई—2019 अंक में भी उपलब्ध)