प्राच्य विद्या के उपासक शास्त्री जी की स्मृति में सम्मानित हुए साहित्य साधक
पं. रामनारायण शास्त्री स्मृति समारोह का उद्घाटन करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि शास्त्री जी ने बिहार में गुमनाम पड़े लगभग तीन हजार प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों को एकत्रित कर प्राचीन काल से चली आ रही ज्ञान परंपरा को सामने लाने का प्रयास किया था। उनके द्वारा एकत्रित ऐसी पुस्तकें व पांडुलिपियों के आधार पर भारत की प्राच्य विद्या को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि पं. रामनारायण शास्त्री स्मारक न्यास के तत्वावधान में यह 43 वां आयोजन है। शास्त्री जी के निधन के दूसरे ही वर्ष 1978 ई में उनके पुत्र अभिजीत कश्यप ने उनकी स्मृति में न्यास की स्थापना कर यह कार्य शुरू किया था। तब से यह आयोजन प्रति वर्ष होता रहा है। इस न्यास ने अब तक हजारों छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया है। वहीं, साहित्य व समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को पं. रामनारायण शास्त्री सरस्वत सम्मान से सम्मानित किया है। चौबे ने रविवार को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन सभागार में आयोजित इस समारोह का वर्चुअल उद्घाटन किया।
इस वर्ष पत्रकार व साहित्यकार डा. अरूण भगत एवं डा. शम्भू शरण सिन्हा को पं. रामनारायण शास्त्री अक्षर सम्मान से सम्मानित किया गया। वहीं श्रीमती इश्वरी देवी सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ पुरस्कार सहरसा की छात्रा सुश्री स्वाति मिश्रा को दिया गया। स्वाति 2020 के बिहार बोर्ड परीक्षा में सर्वप्रथम आयी थी। गणित विषय में उसे शतप्रतिशत अंक मिले थे।
इस अवसर पर बनारस घराने के तबलावादक निर्मल यदुवंशी एवं गायक रौशन कुमार ने उन्हें नाद श्रद्धांजलि दी।
समारोह के मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि शास्त्री जी की स्मृति में होने वाला यह आयोजन उनके व्यक्तित्व के अनुकूल व संकल्प को साकार करने वाला है।
समारोह के विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक रामदत चक्रधर ने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने जिस फुलवारी को लगाया था उसके आकर्षक पुष्प पं. रामनारायण शास्त्री थे। उनके साहित्य साधन के केंद्र में भारत राष्ट पुरूष था। उनके कार्य को आगे बढ़ाना होगा ताकि भारत की ज्ञान परंपरा और संस्कृति अपने मूल रूप में सामने आकर हमारा मार्ग प्रशस्त करे।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा कि शास्त्रीजी ने परिश्रम कर संदर्भों व प्राचीन साहित्यीक स्रोतों का जो विस्तृत भंडार एकत्रित किया है वह बड़ी पूंजी है। साहित्य सम्मेलन उनके काम को आगे बढ़ायेगा।
न्यास के अध्यख डॉ आरसी सिन्हा ने अतिथियों का स्वागत किया। वहीं न्यास के सदस्य व शास्त्रीजी के पुत्र अभिजीत कश्यप ने न्यास के आगामी कार्यक्रमों व योजना पर विस्तार से चर्चा किया। जेपी मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।