जाड़े की मुलायम धूप भला किसे पसंद नहीं। पटना जैसे घने बसावट वाले मोहल्लों में खुले आसमान के नीचे धूप कम ही नसीब होती है। ऐसे में गांधी मैदान इस कमी को पूरा करता है। ठंढ के मौसम में छुट्टियों के समय बड़े—बुजुर्ग गांधी मैदान में आकर धूप का आनंद लेते हुए मित्रों या परिवार के सदस्यों के साथ खुशनुमा पल गुजारते हैं, तो वहीं विंटर वैकेशन में स्कूल—कॉलेज बंद रहने के कारण बच्चे गुनगुनी धूप में जी भरकर खेलते हैं। लेकिन, खुशियों के इन लम्हों पर हर वक्त मौत मंडराती है।
बीच शहर में गांधी मैदान जैसा बड़ा और खुला इलाका दूसरा कोई नहीं है। मैदान में बैठकर गप मारना या बच्चों का खेलना तक तो सही है। लेकिन, इस खुली जगह का कुछ लोग गलत इस्तेमाल करते हैं। तेज गति से बाइक, स्कूटी और कार चलाते हुए गांधी मैदान के चारों ओर चक्कर काटते हैं। मैदान के बीच से जो सड़के गुजरती हैं, वहां तो ये लोग गाड़ियां दौड़ाते ही है, इसके साथ—साथ खुला मैदान होने के कारण जिधर गाड़ी की स्टीयरिंग घूम गई, उधर ही गाड़ी दौड़ा देते हैं।
गांधी मैदान में प्राय: आने वाले बुजुर्ग अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि नौसिखिए लोग ड्राइविंग सीखने के मकसद से गांधी मैदान में वाहन दौड़ाते हैं। इनसे एक्सीडेंट होने का ज्यादा खतरा रहता है।
गांधी मैदान के आसपास के मोहल्लों के हजारों बच्चे क्रिकेट आदि खेलने आते हैं। कुछ बच्चों ने बातचीत में बताया कि क्रिकेट खेलने के दौरान गेंद पकड़ने के लिए तेजी से भागते हैं, ऐसे में यह डर हमेशा बना होता है कि कहीं कोई बाइक या कार से धक्का नहीं लग जाए। कदमकुंआ क्षेत्र से आए बच्चों ने बताया कि नौसिखिए चालकों के अलावा बाइकर्स गैंग के लड़के भी रैश—बाइकिंग करते हैं। इनसे ज्यादा खतरा रहता है।
गांधी मैदान में आने वालों को दु:ख इस बात का है कि आए दिन बाइक व कार वाले अवैध रूप में गांधी मैदान में रैश ड्राइविंग करते हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से इनको रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती। यह हालत तब है, जब प्रशासन के बड़े अधिकारियों के आवास या कार्यालय गांधी मैदान के विसिनिटी में ही है।