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भारत में अदालतों से न्याय मिलने में होती है देरी – पप्पू वर्मा

पटना : पटना विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य पप्पू वर्मा ने भारत की न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि भारत में अदालतों से न्याय मिलने में देरी होती है।साथ ही पुलिस विभाग द्वारा भी त्रुटिपूर्ण अनुसंधान की जाती है। इस वजह से ही भारत में अपराधिक वारदातों में वृद्धि हो रही है।

अपराधिक मामले में दोषियों को न्यायालय से सजा मिलने में होती है देरी

पप्पू वर्मा ने कहा कि अपराधिक मामले में दोषियों को न्यायालय से सजा मिलने में देरी होती है। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद पुलिस अनुसंधान व न्यायालय में ट्रायल समाप्त होने तक के समयकाल में नामजद अपराधी इस दौरान कई कांडों को अंजाम दे चुके होता है। उन्होंने कहा कि जेल में रहते हुए कैदियों द्वारा जेल के बाहर अपने गुर्गों के माध्यम से व्यापारियों से रंगदारी वसूली उनकी हत्या करवाना,और लूट की घटनाओं को अंजाम दिलवाना, क्षेत्रों में दहशत का माहौल पैदा करवाना इत्यादि वारदातें लगातार जारी रहता है ।

अपने को सुरक्षित रखने के लिए जेल में ही रहना पसंद करते अपराधी

वर्मा ने कहा कि जेल में रहते हुए अपराधियों द्वारा बाहर में कोई भी कांड करवाना बगैर जेल अधिकारियों की मिलीभगत से संभव नहीं है। ऐसे कांडों के लिए सबसे बड़ा दोषी जेल अधीक्षक और जेलर होता है। जिसके कारण अनेकों अपराधी अपने को सुरक्षित रखने के लिए जेल में ही रहना पसंद करते हैं। देश में अनेकों ऐसे अपराधी हैं जो एक ही मामले में बगैर सजा पाए जेल में है और जेल में रहकर ही दर्जनों अपराधिक घटनाओं को अंजाम दिलवा चुके हैं। दुख इस बात की है कि देश के 72 वर्षों के आजादी के बाद भी आज भी कानून में कमजोर कड़ी रहने के कारण अपराधियों में कानून का भय नहीं उत्पन्न हो रहा है। जिसके कारण आदतन अपराधी,अपराध करने और करवाने में कामयाब हो रहे हैं।

अपराध पर पूरी तरह अंकुश लगाने के लिए भारतीय कानूनों में बड़े परिवर्तन की आवश्यकता

इस बीच पप्पू वर्मा ने केंद्र सरकार से मांग करते हुए कहा कि अपराध पर पूरी तरह अंकुश लगाने के लिए भारतीय कानूनों में बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत में सीआरपीसी में संशोधन किया जाए।साथ ही विशेष अधिनियम की तरह सभी मामलों में त्वरित ट्रायल की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा न्यायालय में गवाह द्वारा अपने पूर्व के बयान से पलट जाने पर गवाह पर नियमानुसार तुरंत कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित हो, साक्ष्य अधिनियम में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को जोड़ा जाए। पुलिस अनुसंधान वैज्ञानिक पद्धति से हो तथा डायरी में पुख्ता साक्ष्य की व्यवस्था हो ताकि अपराधी रिहा ना हो पाए। डायरी में पुख्ता साक्ष्य नहीं देने पर अनुसंधानकर्ता को गंभीर दंड देने की व्यवस्था की जाए। दंड का सिद्धांत में बदलाव हो ताकि अपराधी में डर पैदा हो।.