भगवान महावीर के अंहिसा में छिपा है पर्यावरण संरक्षण का संदेश
‘अहिंसा’ का परिचायक जैन धर्म अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिए संपूर्ण विश्व में पहचाना जाता है। अहिंसा के प्रवर्त्तक भगवान् महावीर ने मिट्टी, पानी,अग्नि,वायु और वनस्पति को एक इंद्रीय जीव मानते हुए ब्रह्मांड में इसका अस्तित्व बताया है और कहा— ”सभी जीवों के अस्तित्व की रक्षा करनेवाला ही पर्यावरण की रक्षा और उसके प्रति समुचित न्याय कर सकता है।”
अहिंसा का सिद्धांत आत्मशुद्धि के साथ—साथ प्रर्यावरण शुद्धि का भी है, क्योंकि इसका प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
आज विश्व में सुविधावादी दृष्टिकोण के कारण भौतिक सुविधाओं के संसाधनों के निर्माण की होड मची है, जो अनावश्यक हिंसा का कारण बन प्रर्यावरण का संतुलन बिगाड रही है। अहिंसा के सिद्धांत को ताक पर रखकर प्रर्यावरण प्रदूषण का स्थायी हल नहीं निकाला जा सकता। संसार में जितने भी जीव हैं वे एक-दूसरे का उपकार करके ही जिवित रह सकते हैं, अपकार कर कदापि नहीं। ऐसे में यह तो मानना ही होगा कि प्रर्यावरण विज्ञान और अहिंसा मे अभिन्नता है और सामंजस्य का सूत्र है अहिंसा।
चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर ने ‘अहिंसा’ को परिभाषित करते हुए कहा था कि आत्मा में राग-द्वेष की भावना की उत्पत्ति होना ही हिंसा है और प्रदूषण भी अन्यतम प्रदूषणों का कारण बनता है। जहां राग-द्वेष नहीं, वहां कोई भी समस्या नही . मानसिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याएं भी मूलतः राग-द्वेष से उत्पन्न होती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ओजोन छतरी में छेद हो गया है जिससे धरती दिन ब दिन गर्म होती जा रही है _ भौतिक उन्नति,अनियंत्रित आबादी और उसकी जरूरतों की पूर्ति के साथ-साथ कल-कारखानों से निकलने वाली , बेवजह का शोर-शराबा , प्रेशर हार्न और म्यूजिक सिस्टम से निकलने वाला हानिकारक ध्वनी प्रदूषण और गैस ने वायुमंडल और नदियों में जहर घोलते हुए ” ग्लोवल वार्मिंग ” की चेतावनी को नजरंदाज कर विश्व को खतरे में डाल दिया है , फलस्वरूप नित नए घातक रोगों और वायरस से शिकार हो असमय जीवन , काल के गाल में समा जाता है _
आज विश्व के हालात को देखते हुए जरूरत है भगवान् महावीर के महत्त्वपूर्ण चार सूत्रों को अपनाने की
(क) जगत के सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव
(ख) गुणीजनों के प्रति आदर भाव
(ग) दुखियों के प्रति करूणा भाव
(घ) शत्रुओं के प्रति समता का भाव
यदि उपरोक्त चारों सूत्रों को अपना लिया जाय तो फिर शासन, प्रशासन और अनुशासन की जरूरत ही नहीं पडेगी।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी महाराज ने कहा था— “भौतिक वस्तुओं में मिलावट और प्रदूषण से ज्यादा हमारे विचारों और दृष्टिकोण में मिलावट होती है , अतः वैचारिक प्रदूषण सबसे ज्यादा घातक और खतरनाक होता है।” अहिंसा के साथ संपूर्ण मानव जाति का अस्तित्व जुड़ा हुआ है , यह बचेगी तभी धरती पर जीवन का अस्तित्व बचेगा। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैन धर्म और उसके आचरण से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने कहा था “विश्व में किसी भी धर्म ने ‘अहिंसा’ की इतनी सूक्ष्म और व्यापक परिभाषा नहीं की जितनी जैन धर्म में की गई है।”
यही कारण है कि आज २६१९ वर्षों बाद भी भारत वर्ष में भगवान् महावीर के दिव्य संदेश को विश्व संदेश “महावीर जयंती” के रूप में और ०२,अक्टूबर बापू के जन्मदिन को “अहिंसा दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति और मशहूर वैज्ञानिक डा० एपीजे अब्दुल कलाम अहिंसामयी धर्म से प्रभावित हो शाकाहार को अपनाया और आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज से मिल उनकी जीवनचर्या को देख दंग रह गए। संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों ने भी अहिंसामय धर्म के भगवान् महावीर के सिद्धांतों को गहनता से समझा और सराहा है। भगवान् महावीर की दिव्य वाणी का घोष था जीव मात्र में स्वतंत्र आत्मा का अस्तित्व मौजूद है, सभी जीवों को जीने का उतना ही अधिकार है; जितना मनुष्य को . अतः ” स्वयं जिओ और दूसरों को भी जिने दो “का सिद्धांत ही जैन धर्म का मूल सिद्धांत है जिसे जीवन में धारण कर हम पर्यावरण को प्रदूषण से बचाकर खुद के साथ साथ आने वाली पीढ़ी और विश्व को खुशहाल बना सकते हैं।
बी.के. जैन
(फोटो जर्नलिस्ट एवं आर्टिस्ट)