पटना : जेल, बेल, परिवार और सिपहसालारों की जंग में बुरी तरह घिर गए हैं। एक तो जेल का जीवन, दूसरे हाईकोर्ट से बेल की टूटी उम्मीद। उसपर बेटों के बीच विरासत की लड़ाई और अब उसपर पार्टी के दो पुराने दिग्गजों की अदावत। अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी कैसे पार घाट लगेगी, लालू को यह चिंता खाये जा रही है।
तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच की दूरी कम करने के लिए उन्होंने रामचंद्र पूर्वे का पत्ता साफ कर जगदानंद को प्रदेश राजद का अध्यक्ष बनाया। लेकिन ऐसा कर वे नई मुसीबत में फंस गए। एक को मनाओं तो दूजा..दूजे को ठीक करो तो तीजा…रूठ जा रहा है।
रघुवंश बाबू बने लालू की नई मुसीबत
राजद के पुराने और दिग्गज नेता रघुवंश प्रसाद सिंह लालू के लिए नई मुसीबत बन गए हैं। संगठन के कामकाज में अनुशासन के मसले पर रघुवंश सिंह और नए प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह में अनबन शुरू हो गई है। ऐसे में एक बार फिर राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने लालू के लिए आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी को एकजुट रखने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। एक तो वे खुद जेल में हैं। दूसरे, हाईकोर्ट ने उनकी बेल भी रिजेक्ट कर दी। ऐसे में बेटों के बिखराव के बीच रघुवंश बाबू की चुनौती ने लालू को तोड़ कर रख दिया है।
जगदानंद के तौर तरीकों की मुखालफत
राजद के नए प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के तौर-तरीके पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह को रास नहीं आ रहे। बिना लाग-लपेट के रघुवंश ने कह दिया कि पार्टी ऐसे नहीं चलती है। कार्यकर्ताओं से कर्मचारियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता। अब सवाल है कि अपनी बात साफ रखने के लिए मशहूर रघुवंश सिंह ने ऐसा क्यों बोला?
राजद में कद छोटा होने का सता रहा दंश
दरअसल, रघुवंश सिंह को लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी के भीतर अपना कद छोटा होने का डर सताने लगा है। उसपर उन्हीं की बिरादरी से आने वाले और उन्हीं की तरह समाजवाद पृष्ठभूमि वाले जगदानंद सिंह के हाथ में प्रदेश राजद की कमान आ जाने से रघुवंश असहज हो गए हैं। इस सबके बीच जगदानंद की कार्यशैली नापसंद करने वालों के लिए रघुवंश बाबू एकमात्र सहारा नजर आ रहे हैं। ऐसे में वे नए नेतृत्व की शिकायतें लेकर रघुवंश बाबू के पास पहुंचने लगे। बस रघुवंश सिंह को इसमें मौका नजर आया और उन्होंने जगदानंद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। रघुवंश सिंह ने मीडिया में बयान दिया— ‘उनके पास लोग फरियाद लेकर आ रहे हैं तो वह चुप कैसे रह सकते हैं?
जेल और बेल के झटके से नुकसान
मालूम हो कि रघुवंश और जगदानंद की सियासी अदावत नई नहीं है। दोनों पहले भी टकराते रहे हैं। हालांकि खुलकर कभी सामने नहीं आए। किंतु अंदर की अदावत से लालू भी वाकिफ हैं। फिर भी उनकी ओर से दोनों को एक करने की कभी कोशिश नहीं की गई। यह लालू की राजनीति की स्टाइल हो सकती है। किंतु ताजा विवाद से राजद के नुकसान की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। लालू जेल में हैं और अभी पार्टी में एकता की दरकार है। लालू बाहर रहते तो सब मैनेज कर लेते। लेकिन जेल और बेल की बेड़ियों ने उन्हें मजबूर कर रखा है।
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