मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए याद किया जाता है और कलियुग में उनके जन्मभूमि पर हुए ऐतिहासिक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रतिफल उच्चतम न्यायालय के निर्णय के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है। राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक पुरुष हैं और अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि उस प्रतीक पुरुष के होने का साक्ष्य। न्यायप्रिय राम के देश में कई अप्रिय घटनाएं घटीं, जिनमें मानवता व न्याय को ताक पर रखा गया। इससे स्वयं राम की जन्मभूमि भी अछूती नहीं रही। 09 नवंबर 2019 को भारत के शिखर न्यायालय के निर्णय के बाद विवाद का अंत हुआ है। अब आगे का मार्ग प्रशस्त है।
राम जन्मभूमि पर रामलला ही विराजमान रहेंगे, इस पर कोर्ट का ’सुप्रीम’ फैसला आ गया है। देश में न्यायालय के निर्णय के सम्मान की बात हो रही है। भारत के निष्पक्ष न्यायापालिका की प्रशंसा हो रही है। लेकिन, विगत पांच सालों में देश की राजनीतिक परिस्थिति ने राम जन्मभूमि के पक्ष में पृष्ठभूमि तैयार की, इससे भी इनकार नहीं किया सकता। इसकी पुष्टि के लिए कुछ घटनाओं का जिक्र करना मौजूं होगा। सबसे पहले 2014 व 2019 के आमचुनावों में हिंदुत्व की छवि वाली भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत से जानादेश मिलना। 1984 में दो सांसदों से शुरू हुई भाजपा ने 1990 में राममंदिर आंदोलन को राजनीतिक मुद्दा बनाया और भाजपा के लौहपुरुष कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की थी। तब से लेकर आज तक भाजपा के चुनावी घोषणापत्रों व उसके नेताओं के भाषणों में राममंदिर एक अनिवार्य विषय की तरह शामिल रहा। ऐसे में जब यह पार्टी लगातार दो बार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई, तो जाहिर सी बात है राममंदिर के पक्ष में जनमत को बल मिला। दूसरी बात, राममंदिर आंदोलन से 30 साल से जुड़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी दो साल पहले कहा था कि न्यायालय के निर्णय का सम्मान होना चाहिए। लेकिन, यह भी सच है कि राममंदिर के लिए अनंतकाल तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते। संघ का यह कथन केंद्र की मोदी सरकार के लिए भी रिमाइंडर की तरह था। तीसरी बात, स्पष्ट बहुमत पाकर भाजपा के सामने अटल सरकार वाली कोई विवशता नहीं थी। जैसे वाजपेयी सरकार में समर्थन वापसी का भय दिखाने वाले घटक दलों के पास मोदी सरकार में वैसी कोई गुंजजाइश नहीं है। स्पष्ट बहुमत का लाभ तीन तलाक व अनुच्छेद-370 जैसे विषयों पर मोदी सरकार को मिला है। भाजपा के पास केंद्र की कुर्सी होने से जनमानस में स्युडो-सेक्यूरलिज्म की जगह राष्ट्रवादी-सेक्यूलरिज्म का भाव व्याप्त हुआ।
तीन तलाक व अनुच्छेद-370 में जहां मोदी सरकार के हाथ में सबकुछ था, वहीं रामजन्मभूमि का मामला न्यायिक था। लेकिन, सैद्धांतिक तौर पर इस विशुद्ध न्यायिक निर्णय में बदले हुए जनमानस के परोक्ष योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि भारत की न्याय प्रणाली से जुड़े लोग भी उसकी मानस का हिस्सा हैं। इसको समझने के लिए पिछले दो-तीन सालों में शीर्षस्थ न्यायालय के प्रति भारत के मानस के रुख को रिकाॅल करना आवश्यक होगा। सुप्रीम कोर्ट का वह कथन कि रामजन्मभूमि पर सुनवाई उसकी प्राथमिकता में नहीं है और 1990 में विस्थापित कश्मीरी पंडितों की याचिका पर न्यायालय का यह कहना कि इतने साल तक कहां थे? इस पर सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक प्रदर्शन हुआ था। लोगों का कहना था कि गे-लेसबियन के मुद्दे, शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश, याकूब मेनन पर याचिका या कृष्णजन्माष्टमी पर दही-हांडी की ऊंचाई तय करने जैसे मामले पर सुनवाई के लिए न्यायालय के पास समय है और राम जन्मभूमि जैसे ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण विषय पर सुनवाई के लिए समय नहीं है! भारत के हिंदू जनमानस ने ऐसे न्यायप्रणाली की आलोचना की थी। आजाद भारत में शायद पहली बार हुआ कि नेताओं व अफसरों के बाद जजों का सोशल मीडिया पर उपहास किया जाने लगा और उन पर व्यंग्यात्मक टिप्पणियां की जाने लगी। राममंदिर मामले में पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल एक जज का भी मनना है कि सोशल मीडिया के मंदिर के प्रति आग्रह का दबाव था। यह अलग बात है कि न्यायालय दबाव में नहीं, बल्कि तथ्यों व साक्ष्यों के आधार पर फैसला देता है।
यह भी गौरतलब है कि पिछले साल दिवाली के बाद संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा था कि यह ठीक है कि राममंदिर का विषय न्यायालय में विचाराधीन है। लेकिन, कोई विकल्प नहीं रहने पर केंद्र सरकार को अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। अगर आवश्यक हुआ तो राममंदिर के लिए आंदोलन करने पर भी संघ पीछे नहीं हटेगा। चुंकि अभी यह विषय न्यायिक प्रक्रिया में है, इसलिए कुछ सीमाएं हैं। भैय्याजी के बयान के पहले संघ प्रमुख डाॅ. मोहन भागवत ने विजयादशमी के कार्यक्रम में ’अनंतकाल तक’ वाली बात कही थी और मंदिर के लिए केंद्र सरकार से कानून बनाने का आग्रह किया था। डाॅ. भागवत ने समाज के धैर्य की परीक्षा न लेने की भी नसीहत दी थी। जाहिर सी बात है कि संघ नेताओं के बयानों से हिंदू समाज में राममंदिर को लेकर नई ऊर्जा तरंग का संचार हुआ, वहीं केंद्र सरकार पर भी दबाव बना। एससी-एसटी एक्ट पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय को केंद्र की मोदी सरकार ने जिस प्रकार अध्यादेश लाकर पलट दिया था, कुछ-कुछ वैसी ही अपेक्षा विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदू संगठनों व समाज की थी।
इन सारी घटनाओं पर न्यायालय की भी नजर थी, इसमें कोई दो राय नहीं है। न्यायातंत्र में एक कहावत है- ’’जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाएड’’। राम जन्मभूमि पर डेढ़ सौ साल से डिले हो रहा था। न्याय के अभाव में समाज अराजक हो जाता है, यह बात देश के न्यायाधिशों को भी पता था। तकनीकी तौर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के द्वारा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए साक्ष्य पर्याप्त थे। साक्ष्यों को जुटाने का भगीरथी प्रयास के लिए एएसआई के पूर्व निदेशक केके मोहम्मद को श्रेय जाता है। छù सेक्यूलर मीडिया व राजनीतिक दलों ने केके मोहम्मद के कार्यों को धूमिल करने का कुत्सित प्रयास करते रहे। लेकिन, मूण्डक्य उपनिषद् के वाक्य- ’सत्यमेव जयते’ की तर्ज पर केके मोहम्मद के परिश्रम का सम्मान हुआ, जब उनके द्वारा एकत्रित साक्ष्यों को उच्चतम न्यायालय ने फैसले का आधार बनाया।
161 साल पुराने में विवाद से जुड़े लोग, तारीखें, तर्क आदि का वर्णन इस रपट में किया जा रहा है, ताकि राम जन्मभूमि पर हुए ऐतिहासिक निर्णय के सभी पहलूओं से पाठक अवगत हो सकें।
सर्वोपरि निर्णय
3 हजार साल से पुराना इतिहास
एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदाई में 13वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के अवशेष मिले हैं। उनमें कुषाण, शुंग काल से लेकर गुप्त और प्रारंभिक मध्य युग तक के अवशेष हैं। गोलाकार मंदिर सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया। प्रारंभिक मध्य युग के अवशेषों में 11-12 वीं शताब्दी की 50 मीटर उत्तर-दक्षिण इमारत का ढांचा मिला। इसके ऊपर एक और विशाल इमारत का ढांचा है, जिसका फर्श तीन बार में बना। यह रिहायशी इमारत न होकर सार्वजनिक उपयोग की इमारत थी। रिपोर्ट के अनुसार, इसी के भग्नावशेष पर वह विवादित इमारत (मस्जिद) 16वीं शताब्दी में बनी।
साक्ष्यों पर संदेह नहीं
शिखर न्यायालय ने शनिवार को अयोध्या मामले में हर पक्ष की दलीलों को केंद्रित करते हुए फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई में मिले साक्ष्यों से साबित होता है कि मस्जिद के नीचे कोई ढांचा था, जो इस्लामिक नहीं था। इसके अलावा पीठ ने हिंदू पक्ष की ओर से सौपे गए पौराणिक और विदेशी लेखकों के दस्तावेजों को भी अहम माना।
जन्मस्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं
पीठ ने हिंदू पक्षकारों की भी कई दलीलों को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि आज कानून को यह स्वीकार करना है कि अचल संपत्ति कानूनी व्यक्ति है। धार्मिकता से दिल और दिमाग विचलित होते हैं। कोर्ट यह स्थिति अख्तियार नहीं कर सकता, जिससे किसी एक धर्म की आस्था और विश्वास को प्राथमिकता मिले। इसी आधार पर कोर्ट ने हिंदू पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि पूरे जन्मस्थान को ही न्यायिक व्यक्ति माना जाए।
असाधारण शक्ति का इस्तेमाल
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिली असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार को मस्जिद के लिए जमीन देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अयोध्या के निश्चित भागों के अधिग्रहण कानून, 1993 की धारा 6 और 7 के तहत कार्ययोजना बनाई जाए, जिसमें धारा 6 के तहत एक ट्रस्ट का गठन किया जाए। इस ट्रस्ट में मंदिर का प्रबंधन और उससे जुड़े मसलों का हल होगा। अदालत ने यह भी कहा कि वह तय करे कि निर्मोही अखाड़े को प्रतिनिधित्व कैसे दिया जाए।
पधारे थे नानक
अदालत ने कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए सन 1510-11 में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अयोध्या की यात्रा की थी, जो हिंदुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है कि यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है।
राम चबूतरा अहम
खम्भों के आधार मतलब खम्भों का निचला हिस्सा कच्ची ईंटों से बना हुआ था। खुदाई में सभी खम्भे एक कतार में मिले थे। एक दूसरे से लगभग 3.5 मीटर दूर। खुदाई के दौरान राम चबूतरे के नीचे पलस्तर किया हुआ चबूतरा मिला था। यह 21 गुना 7 फीट पत्थर का बना था। इससे 3.5 फीट की ऊंचाई पर 4.75 गुना 4.75 फीट की ऊंचाई पर दूसरा चबूतरा मिला। इस पर सीढ़ियां थीं जो नीचे की ओर जाती थीं। रिपोर्ट के निष्कर्ष में उन्होंने किसी नाम का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन आखिरी पैराग्राफ में उन्होंने लिखा है कि पश्चिमी दिशा की दीवार, खम्भों के अवशेषों और खुदाई में मिली चीजों से ये पता चलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर मौजूद था।
50 विशाल खंम्भों ने दावा पुख्ता किया
एएसआई ने दो खंडों में विस्तृत रिपोर्ट, फोटोग्राफ, नक्शे और ग्राफिक अदालत में पेश किए थे। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि खुदाई में जो चीजें मिलीं, उनमें सजावटी ईंटें, दैवीय युगल, आमलक, द्वार चैखट, ईंटों का गोलाकार मंदिर, जल निकास का परनाला और एक विशाल इमारत से जुड़े 50 खंभे शामिल हैं। दैवीय युगल की तुलना शिव-पार्वती और गोलाकार मंदिर की तुलना पुराने शिव मंदिर से की गई है। यह सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया है। इसके अलावा मगरमच्छ, घोड़ा, यक्षिणी, कलश, हाथी, सर्प आदि से जुड़े टुकड़े भी मिले।
मंदिर के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज का गठन होगा
उच्चतम न्यायालय ने मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया है। केंद्र को सौंपी गई कार्य योजना 1993 में बने अधिग्रहण कानून की धारा छह और सात के अंतर्गत होगी। धारा छह में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट गठित करने की बात है, जिसके संचालन के लिए एक बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज होगा। ट्रस्ट मंदिर निर्माण करेगा और संस्कृति मंत्रालय नोडल एजेंसी की भूमिका निभाएगा। निर्माण के देखरेख की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकार दोनों की होगी।
इस पर राजी
1. मस्जिद को ढहाया जाना कानून का उल्लंघन
संविधान पीठ ने कहा कि 1949 में मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रखा जाना एक गलत और अपवित्र काम था। छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना कानून का उल्लंघन था।
2. रामलला विराजमान को न्यायिक व्यक्ति माना
अदालत रामलला को ही विवादित जमीन का मालिक माना है। ये रामलला ना तो कोई संस्था है और ना ही कोई ट्रस्ट, यहां बात स्वयं भगवान राम के बाल स्वरूप की हो रही है। यानी अदालत ने रामलला को न्यायिक व्यक्ति माना है।
3. विवादित स्थान पर 16वीं सदी की मस्जिद
अयोध्या में विवादित स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी, जिसका निर्माण बाबर के सेनापति मीर बाकी ने किया था और जिसे कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था।
4. तीन सदस्यीय मध्यस्थता टीम की तारीफ
संविधान पीठ ने विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले जस्टिस कलिफुल्ला, श्रीराम पंचू और श्रीश्री रविशंकर की प्रशंसा की। तीन सदस्यीय कमेटी ने विवाद का कोर्ट के बाहर हल निकालने की कोशिश की थी।
इस पर नाराजी
1. मंदिर गिराकर मस्जिद बनाने के सबूत नहीं
संविधान पीठ ने कहा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि मस्जिद के नीचे प्राचीन मंदिर था लेकिन एएसआई यह नहीं बता पाया कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई थी।
2. मुस्लिम पक्षकारों की एएसआई रिपोर्ट पर आपत्ति खारिज
सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों ने एएसआई की रिपोर्ट खारिज कर दी थी। अदालत ने उनकी दलील को अतार्किक बताते हुए कहा कि एएसआई की रिपोर्ट विज्ञान पर आधारित है। उस पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है।
3. मस्जिद पर बिना बाधा के कब्जे की दलील नहीं मानी
अदालत ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड यह साबित नहीं कर पाया कि विवादित जगह पर उसका बिना किसी बाधा के लंबे समय तक कब्जा रहा। बोर्ड ने दावा किया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ी जाती है और उसका लंबे समय से कब्जा है।
4. विवादित भूमि रिकॉर्ड में सरकारी जमीन
भूमि पर सदियों से कब्जे का मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज। पीठ ने कहा, विवादित जमीन रेवेन्यू रिकॉर्ड में सरकारी जमीन के तौर पर चिह्नित थी। यह सबूत मिले हैं कि राम चबूतरा और सीता रसोई पर हिंदू 1857 से पहले भी यहां पूजा करते थे।
उस दिन 06.12.1992
10ः30 – भाजपा व विहिप के नेता पूजा के लिए स्थल तक पहुंचे। कारसेवा शुरू।
11ः45 – फैजाबाद के डीएम और एसपी ने रामजन्मभूमि परिसर का दौरा किया।
12ः00 – कारसेवकों ने विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़कर सुरक्षा घेरा तोड़ने का संकेत दिया।
02ः00 – पहला गुंबद गिरा
05ः00 – मुख्य गुंबद ध्वस्त
06ः30 – यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू। सीएम कल्याण सिंह का इस्तीफा।
07ः30 – मूर्तियां स्थापित कर अस्थायी मंदिर का निर्माण शुरू
इस दिन 09.11.2019
161 साल के विवाद पर 42 मिनट में फैसला
10.30 – बजे फैसले की कॉपी पर संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए
10.31 – शिया वक्फ बोर्ड की जमीन पर नियंत्रण की याचिका खारिज कर दी गई (सर्वसम्मति से)
10.32 – मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुनाना शुरू किया, बोले- करीब आधा घंटा लगेगा
10.38 – जस्टिस गोगोई ने कहा, धार्मिक तथ्यों नहीं, बल्कि एएसआई की रिपोर्ट को ध्यान में रखकर कोर्ट फैसला ले रहा है, मस्जिद कब बनी स्पष्ट नहीं
10.39 – निर्मोही अखाड़े का दावा भी खारिज, कहा-निर्मोही अखाड़ा शबैत नहीं यानी उसे प्रबंधन का अधिकार नहीं
10.41 – जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं।
10.44 – पुरातत्व विभाग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसने पाया कि नीचे हिंदू मंदिर पाया गया, गुंबद के नीचे वो समतल की स्थिति में था, हिंदू अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं।
10.45 – एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक, खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी। एएसआई यह नहीं बताया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई, मुस्लिम गवाहों ने भी माना, दोनों पक्ष पूजा करते थे
10.54 – यह सबूत मिले हैं कि राम चबूतरा और सीता रसोई पर हिंदू अंग्रेजों के जमाने से पहले भी पूजा करते थे। रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य बताते हैं कि विवादित जमीन का बाहरी हिस्सा हिंदुओं के अधीन था
10.55 – मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि खाली जगह पर मस्जिद नहीं बनी थी, सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना असंभव है
10.59 – 1856-57 से पहले आंतरिक अहाते पर हिंदुओं पर कोई रोक नहीं थी, संघर्ष की वजह से वहां शांतिपूर्ण पूजा के लिए रेलिंग बनाई गई
11.00 – मुस्लिमों का बाहरी अहाते पर कोई अधिकार नहीं रहा। सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सबूत नहीं दे पाया कि यहां उसके एकमात्र अधिकार है
11.05 – मुस्लिमों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी। संविधान कभी धर्म से भेदभाव नहीं करता
11.07 – केंद्र सरकार तीन महीने में योजना तैयार करेगी, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी का गठन होगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अहम जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाए। फिलहाल अधिकृत जमीन का कब्जा रिसीवर के पास रहेगा
11.11 – विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए। मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाएगी सरकार। पांच जजों ने एकमत से दिया फैसला